हमारा परम धर्म : दान ---- (भाग – ४)

in #life6 years ago

हमारा परम धर्म : दान ---- (भाग – ४)

वस्तुस्थिति के निदर्शन की दृष्टि से दान के ये चार प्रकार मुख्य रूप से कहे गए है । वैसे तो दान धर्म की सीमा बहुत ही विशाल है । कोई भी ऐसा कार्य जो किसी को सुख पहुचाने वाला हो, शांति प्रदान करने वाला हो, वह सब दान के अंतर्गत आ जाता है । भगवान महावीर ने पुण्य की व्याख्या करते हुए फरमाया है – अन्न, जल, धर्मशाला, वस्त्र आदि के दान से मनुष्य को स्वर्गादी सुखदान पुण्य की प्राप्ति होती है ।
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दान का यह उपयुक्त संक्षिप्त विवेचन जो हमने प्रस्तुत किया है उससे उन लोगों को समझ में आ जाना चाहिए जो यह कहते हैं कि “जैन धर्म तो निष्क्रिय धर्म है । उसकी सीमा केवल व्यक्तिगत तप और त्याग ही है । जन-कल्याण के लिए उसके पास कोई क्रियात्मक उपदेश नहीं है ।” यह वास्तविकता नहीं है । तनिक भी विचार करने की क्षमता अथवा विवेक बुद्धि रखने वाला व्यक्ति यह जान सकता है कि जैन-धर्म में दान के स्वरुप का यह जो विवेचन है वह जैन धर्म की सक्रियता ही सिद्ध करता है, निष्क्रियता नहीं । दान के रूप में जनकल्याण के क्षेत्र में जैनधर्म ने जो विचारधारा जगत को प्रदान की है वह अद्वितीय है । अनुपम है । बेजोड़ है ।

इस स्थान पर एक और स्पष्ट बात हमें समझ लेना अनिवार्य है । कुछ लोग यह कहते है कि दान धर्म उत्तम तो अवश्य है किन्तु उसका अधिकारी केवल सुपात्र ही है । और सुपात्र एकमात्र साधु ही होता है – अत: साधु के अतिरिक्त किसी अन्य निर्धन, दु:खी संसारी प्राणी को दान देना अधर्म है, धर्म नहीं । संसारी जीव कुपात्र है । कुपात्र को दान देना भव-भ्रमण का कारण है ।

ऐसी धारणा रखने वाले लोग शास्त्र के अर्थ का अनर्थ करने वाले हैं । यह तर्क सर्वथा असंगत तर्क है । विचार करने की बात है कि क्या सुपात्र केवल साधु ही है ? सदाचार पूर्वक जीवन यापन करने वाला संसारी जीव सुपात्र क्यों नहीं है ? कोई भी सदाचारी प्राणी सुपात्र है, फिर चाहे वह साधु हो या संसारी । किसी भी निर्धन एवं दु:खी व्यक्ति को, जो सदाचार पूर्वक चलता है, दान दिया जाना चाहिए । स्वयं भगवान महावीर ने जैनत्व का मुख्य लक्षण यह बताया है – “दुखी को देखकर अनुकम्पा भाव लाना और यथाशक्य उसका दुःख दूर करने का प्रयत्न करना ।”

यह ठीक ही है कि सुपात्र को दान अवश्य देना चाहिए, उसका बहुत महत्त्व है परन्तु यदि संकट काल हो तो किसी भी प्राणी को सहायता अवश्य पहुंचाई जानी चाहिए । वहां फिर सुपात्र, कुपात्र का विचार करते बैठे रहना धर्म नहीं कहा जा सकता । ऐसा कोई भी धर्म संसार में नहीं हो सकता जो दु:खी प्राणी की सहायता करने का विरोध करता हो । कम-से-कम जैनधर्म में तो ऐसा है ही नहीं, जैनधर्म का आधार ही भगवान के कथनानुसार अनुकम्पा है । यह धर्म प्राणी मात्र के कल्याण की भावना लेकर ही इस धराधाम पर अवतीर्ण हुआ है –

“दयामय ! ऐसी मति हो जाय,

त्रिजगत की कल्याण कामना,

दिन-दिन बढती जाय ... ।”

किसी भी दु:खी प्राणी को देखकर हमारे मन में मानव मात्र के ह्रदय में दया की लहर उठती है, उठनी चाहिए । इस लहर को, इस उत्तम भावना को किसी विशेष जाति, विशेष राष्ट्र, विशेष पंथ, विशेष समुदाय, विशेष व्यक्ति तक ही सीमित रखना मानवता का गला घोंटना कहला सकता है । आप कल्पना कीजिए की यदि कोई गरीब भूख से, जिसके प्राण निकलना ही चाहते हों ऐसा दुखियारा आदमी यदि आपकी सामने आता है और एक रोटी के लिए आपके सामने हाथ फैलता है तो आपका क्या धर्म होता है ? क्या आप उसके प्राणों की रक्षा करने के बजाए शास्त्र खोलकर बांचने बैठेगे ? उसकी सहायता करना आपका धर्म है ।

कुछ लोगों का अथवा दर्शनशास्त्रियों का यह तर्क तो सर्वथा असंगत एवं हास्यास्पद ही है कि संसार में जितने भी लंगड़े-लूले, दरिद्र, कोढ़ी इत्यादि लोग हैं वे प्रभु के कोप के कारण हैं । ईश्वर उन्हें दण्ड दे रहा है । अत: उनकी सहायता करके उन्हें सुख-शान्ति प्रदान करना ईश्वर की इच्छा का विरोध करना है । ईश्वर जिन्हें पापी समझकर दण्ड देता है उन्हें अपनी सजा भुगतने देना चाहिए ।

ऐसे महापंडितो के अनुसार तो यही अर्थ निकला कि ईश्वर मारता है, तुम भी मारो । ऐसा कुतर्क, ऐसी मिथ्या धारणा किसी भी सच्चे मानव के गले में कैसे उतर सकेगी ? ईश्वर किसी को दण्ड देता है, यह धारणा ही मिथ्या है । ईश्वर तो वीतराग है, रागद्वेष से परे है । वह क्यों बेचारे जीवों को दुःख देगा ।

यदि ईश्वर दण्ड भी दे रहा हो फिर भी दु:खी प्राणी की सहायता करना हमारा परम धर्म है । जैनधर्म तो दुखी प्राणियों की सहायता प्रत्येक स्थिति में करने की प्रेरणा देगा, भले ही साक्षात् स्वयं ईश्वर भी सामने आ जाएं । मानव को अपनी अन्तरात्मा की आवाज को सुनना चाहिए । मानव की अन्तरात्मा किसी भी दु:खी प्राणी को दुःख में देखकर द्रवित होगी ही । उसके अतिरिक्त अन्य कुछ हो ही नहीं सकता । इसके अलावा, इससे पृथक अन्य कोई धर्म भूतल पर नही है । दान सर्वथा शुद्ध, निस्वार्थ दयाभावना एवं विनम्रता पूर्वक किया जाना चाहिए । तभी उसका वास्तविक महत्त्व है । तभी उसका सुधर्म प्राप्त हो सकता है । दान देने के पीछे यश की कामना अनहि रखनी चाहिए । समाज और संसार में प्रशंसा प्राप्त हो, ऐसी भावना नहीं होनी चाहिए । विनम्र होकर दान देना ही श्रेष्ठ दान है ।

पिछली तीनों पोस्टों का जुड़ाव है https://busy.org/@mehta/pnmud
https://busy.org/@mehta/7q2yrt
https://busy.org/@mehta/5wuw5f

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बेहतर पोस्ट के लिए धन्यवाद मेहताजी। यदि इस बात को सच मान लिया जाय कि ईश्वर जिसे दंड दे रहा हैं, उस पर हमें दया नहीं करनी चाहिए, तो ये भी सच हैं कि उस प्राणी के प्रति हमारे मन में दयाभाव भी ईश्वर का ही आदेश हैं। और ईश्वर के आदेश को नहीं मानना भी पाप हैं।
आपका पुनः आभार

sir ji ,mera manna hai ki sab kuch agar ishwar kar raha hai to paap ka bhagidar bhi phi ishwar hi hoga na.Sab ki alag soch hoti hai ,aur usi soch ke parinam ka aur karm ka vo hi bhagidar hota hai.

ये बहुत बड़ी बहस हैं ashok roy. इसके लिए अध्यात्म के गूढ़ रहस्यो को जानना पड़ेगा।

दान वही व्यक्ति कर सकता है जिसके मन में दूसरों के प्रति प्रेम-भाव है। बिना दान के व्यक्ति पशुओं के समान है, क्योंकि दान और दया-भाव ही हमें पशुओं से अलग करता है।
दान तो हमारे अन्तर्मन में निहित है जो समय आने पर स्वयं ही दिखाई देता है।
जैन धर्म एक पवित्र धर्म है जो हमें दान करने की शिक्षा देता है। इसलिए हमेशा दान करते रहिये।

Bhai mere daan karne ke liye ,jeb garam hona chaiye .Prem se khali kya hoga

Aapki baat bilkul sahi hai ki khali prem se kya hoga uske liye rs. Bhi hone chahiye. Sirf rs. dene ko hi daan nii kahte, daan karne ke aur bhi tarike hai hai jaise dusro ki help krna sur bhi bahut. Bas aapko unhe samajhna aana chahiye.
Reply krne ke liye Thanks

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@mehta
धन्यवाद् सर आप के द्वारा लिखे लेख से मुझे बहुत कुछ सिखने को मिला , दान के ऊपर आप के इन लेखो से ये समझ आ गया अगर हम इस काबिल है की हम किसी की सहायता कर सकते है तो हमको बिना किसी हिचकिटाहट के कर देनी चाहिए सब कुछ यही रह जायेगा हमारे साथ कुछ नहीं जायेगा।
''तिन समान कोई और नहि, जो देते सुख दान
सबसे करते प्रेम सदा, औरन देते मान।'
- @kabirdas

Dan bahut hi uttam h kintu dan bhao purwak hona chahiy, dan ke liye koi supatra ya kupatra jaisi sthiti ni honi chahiy awasykta vivasta hi dan ke liye nirbhar karti h awaskyta padne par sabko dan ki awaskyata padti h. dekha jay to is jeev jagat me bina koi dan liye aur bina koi dan diye rah hi ni sakta h chahe wah kisi bhi prakar ka dan ho. ek vistrit rup me soche to sara sansar dan kar raha h aur le bhi raha h. jo jaisa h us roop me kar raha h aur le raha h. dan keval dhan ko man lena hi dan ke bare me hamari jankari adhuri hogi aur dan ka mahatv jo ham logo tak pahuchana chahte h wah adhura hoga. ant me(mehta (70)) ji ko bahut bahut dhanywad aur ap sabhi se anurodh mujh par bhi ashirwad banay aur margdarshan ka ausar pradan kare

दान करना एक बहुत अच्छा कार्य है। जैसे कि धन दान भोजन दान वस्त्र दान। परंतु आवश्यकता के अनुसार दान करना चाहिए। जैसे भूखे को भोजन का और जिसके पास वस्त्र न हो उसके लिए वस्त्रो का।

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Fully agreed bro ,daan mandiro me bhagvan ko na kare , garibo me kare

हा बिल्कुल सही कहा आपने

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@mehta बिलकुल सही ,हर एक सदाचारी प्राणी सुपात्र है, फिर चाहे वह साधु हो या संसारी । किसी भी निर्धन एवं दु:खी व्यक्ति को, जो सदाचार पूर्वक चलता है, दान दिया जाना चाहिए ।इस पोस्ट के लिए धन्यवाद !

Bilkul sahi bro ,👍👍👍👍
Mere vichar se ,humlogo ko mandiro me daan karna band karna chaiye.Balki daan garib aur zarooratmand logo to daan karna chaiye .

जीवन के मूल्य उसकी अवधि में नहीं है, लेकिन इसके दान में है
आप क्योंकि तुम कितनी देर तक रहने के महत्वपूर्ण नहीं हैं,
आप कैसे प्रभावी रहने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

log showoff karne ke liye daan karte hai aajkal ,phir pic FB me load kardete hai .

Aap sab ko shamil nahi kar skte.
Sirf India m 131 crore log hai aur aapne fb pe kitni video dekhi hogi 50,100,200,500 . aap khud compare kr skte hai

True bro 👍👍👍👍,
sab waise nahi hote.I hate people having double standards .Saamne kuch , online kuch actual worst .

Bilkul shi...
Humko bus khud acha bna rhna pdega.
Aur dusro ki help krte rhna hoga.
Baki bhagwan k haath...

hume bhi koi daanveer upvote daan kar de bhai .......

Thank you for sharing come and check my blog and upvote my content https://steemit.com/@parmpal007
Bhai help krde yrr meri bhi earnings shuru ho jaye gi

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