सुख : स्वरूप और चिन्तन (भाग # २) | Happiness : Nature and Thought (Part # 2)

in #life6 years ago

सुख : स्वरूप और चिन्तन (भाग # २) | Happiness : Nature and Thought (Part # 2)

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सरोवर का सुंदर तीर । एक भौंरा तथा एक गुबरीला । भ्रमर कमल-कोष से मकरन्द पान करने वाला तथा गुबरीला गोबर में रहने वाला । किन्तु संयोग से दोनों में मैत्री हो गई । एक दिन भ्रमर ने गुबरीले को आमन्त्रित किया ।

“भाई गुबरीले ! इक दिन मेरे घर चलो । देखो कि मैं कितने सुंदर स्थान में रहता हूँ ।”

गुबरीले ने उत्तर दिया – “कैसी बातें करते हो मित्र ! भला गोबर से भी उत्तम पदार्थ इस संसार में कोई हो सकता है क्या ?”

भ्रमर ने मंद मुस्कराहट और मधुर गुंजन सहित कहा – “मित्र ! चलकर देखो तो सही । एक बार अपने मित्र का कहना भी मान लो ।”

मित्रता का सम्मान रखते हुए गुबरीले ने भ्रमर के घर जाना स्वीकार तो कर लिया, किन्तु चलते-चलते उसने गोबर की एक गोली अपने मुख में यह सोचकर रख ली कि क्या पता फिर कभी गोबर खाने को मिले या न मिले ?

जिसका मन जिससे मिला, उसको वही सुहाय ।

द्राक्षा गुच्छ को छोड़कर, काग नीबोली खाय ।।

अत: गुबरीला अपने भ्रमर मित्र के साथ कमलवन में जा पहुंचा । वहां की छटा और सुंगधिपूर्ण वातावरण का क्या कहना । कुछ देर के स्वागत सत्कार के पश्चात भ्रमर ने गुबरीले से पूछा – “कहो बंधु ! तुम्हें यहां कैसा लगा ?”
किन्तु गुबरीले की तो हालत खराब थी । कमल पुष्पों की भीनी-भीनी सुगन्ध के कारण उसे गोबर की दुर्गन्ध पूरी तरह नहीं आ रही थी । इससे उसका मन विकल हो रहा था । अथवा ऐसा कहें कि गोबर की दुर्गन्ध के कारण उसे कमल की सुगन्ध का अनुभव नहीं हो रहा था । कुछ भी हो वह तो यही सोच रहा था कि हाय, मैं कहां आ फंसा ? उसने उत्तर दिया – “बन्धु ! तुमने मुझे स्वर्ग के समान गोबर के ढेर में से निकालकर यहां किस नरक में ला पटका ? मुझे तो तुम कृपा कर मेरे ही स्थान पर शीघ्र पहूँचा दो ।”

भ्रमर विचारवान था । उसने ध्यान से देखा तो जान गया कि गुबरीले के मुख में गोबर की गोली दबी पड़ी है । मंद मधुर गुंजन के साथ उसने कहा – “मित्र गुबरीले, तुम रहे गुबरीले के गुबरीले । अरे, इस सुंदर मनोहारी कमलवन में आकर भी तुमसे यह गोबर न छूटा ? जरा इसे फ़ेंक दो, मेरा कहा मानों और फिर कहो कि तुम्हें यहां कैसा प्रतीत होता है ।”

गुबरीले ने बड़े दुःख के साथ अपनी प्रिय वस्तु मुंह से निकालकर थूक दी । मुख शुद्ध किया । इसके पश्चात कुछ ही देर में उसे कमल पुष्पों की मन्द-मन्द, मधुर-मधुर आत्मा को प्रफुल्लित कर देने वाली सुरभि का अनुभव होने लगा । वह तो मानों चमत्कृत-सा हो गया ।

भ्रमर ने पूछा – “कहो मित्र ! अब अपने घर जाना चाहते हो ।”

गुबरीले को ज्ञान हो गया था, उसने उत्तर दिया – “अरे बंधू ! अब परिहास न करो । ऐसा कौन मुर्ख होगा जो इस स्वर्ग का त्याग कर उस नरक में जाना चाहेगा ?”

अत: धन, सन्तान इत्यादि इस संसार में गोबर के समान है । उसका त्याग कर यदि हम अपनी आत्मा के अनन्त सुखमय कमल की सुगन्ध ग्रहण करें तो सच्चा सुख प्राप्त हो सकता है । सांसारिक प्रलोभनों में आकर्षण तभी तक है जब तक हमने अपनी आत्मा के स्वरूप को नहीं जाना है । उस आत्म-स्वरूप को जानकर हमें अभिलाषा को समाप्त करना चाहिए । अभिलाषा समाप्त होगी तो आनन्द का उदय होगा ।

प्रत्येक मानव को अपने जीवन का वास्तविक मूल्यांकन करना चाहिए । तत्त्व को जानना चाहिए । तत्त्व के ज्ञान के अभाव में सच्चे और शाश्वत सुख की आशा करना आकाश-कुसुम की अभिलाषा करना है ।

इस तत्व ज्ञान के अभाव में मनुष्य कितने भ्रम में पड़ा रहता है तथा कैसा अभिमान करने लगता है इसका उदाहरण घनश्यामदास बिड़ला के एक संस्मरण से प्रकट होता है ।

इसके बारे में अब अगली पोस्ट में बात करेंगे ।
इससे जुडी पिछली पोस्ट का जुडाव है (The link of the previous post is )
https://steemit.com/life/@mehta/or-happiness-nature-and-thought-part-1

The translation of this post by the help of Google language tools.

Beautiful arrow of the lake A bumblebee and a hawk Makarand drinker from the defective lotus and living in Gobrala dung. But coincidentally, there was friendship between the two. One day, Dehrama invited Gubrile.

"Brother! Come my house a day See how beautiful I live in. "

Gubrile answered - "How do you talk to friends! Better substance than good dung can anybody in this world? "

Delusional said with low smile and sweet humor- "Friend! Walk and see if right. Even once your friend says. "

Respecting friendship, Gubrile accepted the confusion, but on the go, he kept a pillow of dung in his mouth and thought that whether it was found to be eaten again or not?

The one whose mind was found by that is the same.

Except grape clusters, eat cork niboli .

Hence, Gubrala has reached Kamalvan with his confused friend. What to say about the tangled and cozy atmosphere there. After a few receptions, Ghumar asked Gubrile - "Say brother! How do you like here? "
But the condition of the gaberila was bad. Due to the soothing fragrance of lotus flowers, it was not fully deodorant of cow dung. With this, his mind was getting distorted. Or say that because of the debris of cow dung, he was not feeling the aroma of lotus. Anything, he was just thinking that, where did I get trapped? He replied - "Bandh! Where did you get me out of a heap of dung like a paradise in hell? Please, please, please come to my place quickly. "

Was a delusional thinker. When he looked carefully, he realized that the cowboy shot in the mouth of Gobrali was buried. With a sweet melodious humor, she said - "Friend Gubberley, you are a gaberileo. Hey, even after coming to this beautiful Manohari Kamalawan, you did not miss this dung? Just throw it, say my words and then say how you feel here. "

Gubrile spit out his favorite object with great sadness and spit it out Face cleaned. After this, in a short while, he started experiencing the beauty of the lotus flowers, the melodious, sweet-spirited soul. He became like a miracle.

The illusionist asked - "Say friend! Now you want to go home. "

Gobrile had become knowledge, he replied - "Hey brother! Now do not joke. Who would be a fool who would want to go to this hell after leaving this paradise? "

So wealth, children etc. are like dung in this world. If we accept the fragrance of the eternal Sukhmani lotus of our soul, then we can get true happiness. Attraction in worldly temptations is only as long as we have not known the nature of our soul. Knowing that self-image, we must eliminate desire. If the desire ends, then the joy will be born.

Every human should have a realistic evaluation of his life. Know the principle In the absence of the knowledge of the essence, the desire of true and eternal happiness is the desire of Akash-Kusum.

In this absence of knowledge, how many confusions of man are confused and how proud it is that an example of this is manifested by a memoir of Ghanshyamadas Birla.

Now talk about it in the next post.

सुख की Steeming

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great post and wonderful picture mate

दया धर्म अपना ले तु बंदे,
झूठ - पाप को त्याग।
मोह माया को छोड़कर,
अपना ले तू वैराग।।

कामयाब इंसान खुश रहे ना रहे .....
खुश रहने वाला इंसान जरूर कामयाब होता है।

इसलिए हमेशा सुखी रहो।

कामयाबी हासिल करने के लिए खुदको उसके काबिल बनाना आवश्यक है
वर्ना जब कुम्हार बर्तन बना कर ठोकता है के यह सही बना है या नहीं
अगर गलती से वो बर्तन टूट जाये तो उसे बाजार नहीं बल्कि कोई कोना ही नसीब होता है
इसलिए कामयाबी हासिल करने के लिए खुदको काबिल बनाना बोहोत ही जरूरी है

नमस्कार @mehta ji हमेशा की तरह आज फिर आपकी इस पोस्ट ने मेरे ह्रदय को छू लिया , बेहद खूबसूरत एवं ज्ञानवर्धक कहानी थी भोरे और गुबरेले की । god bless u.

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Perfact Hai buddy. bahut hi acha blog banaya hai !!!

‌‌‌सुख और दुख जीवन में एक साथ रहते है।

Gerat post nic salok जिसका मन जिससे मिला, उसको वही सुहाय ।

द्राक्षा गुच्छ को छोड़कर, काग नीबोली खाय ।।

Mehta Saab Kea bat he brother your very lucky man

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