The wonders of Swami Dayanandaji

in #my6 years ago

In Mahabharata, religion had been won, but it was so big
Gnani, Danny and Shurama came to work, that in fact India
Fall began after the Mahabharata only. Reading of scriptures and scriptures
The brave warrior like Dronacharya Jas Vidya and Bhishma and Karna
Work had been done.Then people like dark night like small lights
Only to believe in the sun. Those who had read a little, they were called scholars
Engaged Simple force warriors started to be called. Gradual decline
Had it gone, disappearance and force disappeared. Disaffection
Also increased When this condition happens, the saliva of foreigners
Started dripping His eyes turned towards this gold bird. The
What was there; Sometimes Alexander invades, sometimes
Gajnavi takes pledge to make thousands of slaves, and ever
Gauriyyas Chandra defeats Prithviraj. Ehshya
And where Jaychand did not take care of country or religion, there
Not even heard of your daughter Sanyogita. Though coming
He also showed a picture of a terrible time, that in India
Chumbs on the throat of the cow, the temple will be demolished
Will not be known of Chotti and Janeu, the children of the sage
Woe will be the plague of orphans and your name will always be
Will be tarnished for. But Jaychand did not accept one,
The result of this is that the sequence of Sanyogita is fulfilled.
Vedas began to be called songs of ghadriyas, Hindu religion understood the raw thread
Taken. The sage children started to be called cowardly and nimble.
He did not believe in himself. Unfortunately this
There was a glimpse of hope in despair. Originally born Gujarat
Happened in Who knew that this child, the world's transgression
Will give and remove India from the fabric of darkness, then the knowledge route
Will bring on God's glory is immense. Guru Virajanand
By keeping Dayanand a Brahmachari, he gave full education of Vedas. Education
After receiving the flag of the Vedas alone, according to the commandment of the guru.
And jumped into the ground. Know this from
It is possible that Dayanand, how many scholars, wise people, wise and
He was a man, that he alone voice against the whole world
Pointed out Neither did they have any support, nor did they have money, only
Strong faith was on God and the Veda.




महाभारत में धर्म की जय हुई थी, परन्तु उसमें इतने बड़ेबड़े
ज्ञानी, दानी एवं शूरमा काम आए थे, कि वास्तव में भारत का
पतन महाभारत के बाद ही से आरंभ हुआ । वेद व शास्त्र के पढ़ने
वाले द्रोणाचार्य जैस विद्वान् एवं भीष्म व कर्ण जैसे बहादुर योद्धा
काम आ चुके थे ।तब लोग अंधेरी रात की तरह छोटे-छोटे दीपकों
को ही सूर्य मान बैठे। जो थोड़ा पढ़े थे, वे ही विद्वान् कहलाने
लगे । साधारण बल वाले योद्धा कहलाने लगे । धीरे-धीरे अवनति
होती गईविद्या तथा बल का लोप होता गया । आपस में वैमनस्य
भी बढ़ता गया । जब यह दशा हो गईतो विदेशियों की लार
टपकने लगी । उनकी दृष्टि इस सोने की चिड़िया की ओर पड़ी । द
बसफिर क्या था; कभी सिकन्दर आक्रमण करता है, कभी
गजनवी लूटमार कर सहस्त्रों गुलाम बना ले जाता है, और कभी
गौरीजयचन्द को मिलाकर पृथ्वीराज को परास्त करता है । ईष्र्या
व इष में जयचन्द ने जहाँ देश वा धर्म का ध्यान नहीं रखा, वहाँ
अपनी पुत्री संयोगिता की भी नहीं सुनी। यद्यपि आने वाले
भयानक समय का चित्र भी उसने दिखा दिया था, कि भारत में
गऊओं के गले पर छुरी चलेगी, मन्दिर ढाये जाएंगेधर्म की पुस्तकें
जलाई जायेंगीचोटी व जनेऊ का पता भी न लगेगा, ऋषि सन्तान
हाहाकार पुकारेगी, अनाथों की दुर्दशा होगी और तुम्हारा नाम सदा
के लिये कलंकित हो जायेगा । परन्तु जयचन्द ने एक न मानी,
जिसका फल यह हुआ कि संयोगिता की पेशीनगोई पूरी हुई ।
वेद गड़रियों के गीत कहलाने लगे, हिन्दू धर्म कच्चा धागा समझ
लिया गया । ऋषि सन्तान कायर व निकम्मी कही जाने लगी ।
उसको अपने ऊपर भी विश्वास न रह गया । अकस्मात् इस
निराशा में पुनः आशा की झलक हुई । मूलशंकर का जन्म गुजरात
में हुआ । कौन जानता था कि, यह बालक, संसार की काया पलट
देगा और भारत को अंधकार के गढ़े से निकाल फिर ज्ञानमार्ग
पर लायेगा । ईश्वर की महिमा अपार है। गुरु विरजानन्द ने
दयानन्द को ब्रह्मचारी रख कर वेदशास्त्रों की पूर्ण शिक्षा दी । शिक्षा
पाने के पश्चात् वे गुरु की आज्ञानुसार अकेले ही वेदों का झण्डा।
लेकर मैदान में कूद पड़े । इस बात का पता इसी से लगाया जा
सकता है कि, दयानन्द कितने विद्वान, वैर्यवान्, ज्ञानी एवं
पुरुषार्थी थे कि, उन्होंने सारी दुनिया के खिलाफ अकेले ही आवाज
उठाई। न उनका कोई सहयोग था, न उनके पास धन था, केवल
दृढ़ विश्वास ईश्वर और वेद पर था ।




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स्वामी दयानंद एक महान आत्मा थे। उनका वर्णन शब्दो मे बया करना नामुमकिन है इन बातों के लिए धन्यवाद और मुझे खुशी हुई इस बात से की स्वामीजी का आदर करने वाले लोग आज की भीड़ में है

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