Shree krishana and dayanand
कृष्ण और दयानन्द में सबसे बड़ी समानता तो यह थी कि इन
दोनों ने ही चारों वर्णाश्रमों के कर्तव्यों का पालन भलीभाँति किया
था। कृष्ण तब ब्राह्मण का कर्तव्य पालन कर रहे थे। जब वे गीता
का उपदेश अर्जुन में उदासीनता आ गई थी तब उसे अपने कर्तव्य
का बोध करवाकर युद्ध के लिये तैयार किया था। पौराणिक लोग
गीता को चारों वेदों का सार मानते हैं पर ऐसा नहीं। वेद मानवमात्र के लिये पूर्ण ज्ञान है गीता में कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के समय कर्तव्य का बोध करवाने में जितने विषयों पर चर्चा करनी पड़ी थी
वह सब ज्ञान गीता में है। इसमें विशेष रूप से आत्मा की अमरता
का बोध कराया गया है। फिर भी गीता का महत्त्व इस बात से
प्रदर्शित होता है कि गीता का जितनी भाषाओं में अनुवाद हुआ है।
उतना ही किसी धार्मिक ग्रन्थ का नहीं हुआ। जितने गीता पर
भाष्य व टिकाएँ लिखी गई है उतनी किसी अन्य ग्रन्थ पर नहीं
लिखी गई। लोकमान्य तिलक का गीता रहस्य' और विनोबा जी
का गीता का भाष्य अति विख्यात है। महात्मा गाँधी भी गीता और रामायण का नित्य पाठ करते थे। इसी से गीता की लोकप्रियता का अनुमान लगाया जा सकता है। इसी भाँति महर्षि दयानन्द तो ब्राह्मण कुल में पैदा हुए ही थे और उनके पाण्डित्य का दर्शन उनके लिये साहित्य से होता है। महर्षि ने वैसे तो बहुत पुस्तकें लिखी परन्तु उनमें "सत्यार्थप्रकाश" प्रमुख है। यह एक वेदानुकूल सर्वोच्च ग्रन्थ है। इसमें ईश्वरजीवप्रकृति के सही स्वरूप को दर्शाया है। इसमें महर्षि ने मनुष्य के कत्तव्यों व अकत्तव्यों का पूरा बोध करवाया है इसलिये यह एक अद्वितीयअनोखा व अनुपम ग्रन्थ है। इसका भी विश्व की अधिकतर भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। इसमें महर्षि ने धार्मिक, चारित्रिक व सामाजिक उत्थान के साथ-साथ राजनीति पर भी काफी प्रकाश डाला है। उस समय जब अंग्रेज भारतीयों पर क्रूरतम अत्याचार कर रहे थे तब महर्षि ने लिखा था विदेशी शासक चाहे जितना भी अच्छा हो, मातापिता के तुल्य सुखदायी हो फिर भी उससे स्वदेशी शासक कहीं अच्छा होता है। गीता के आत्मा की अमरता का उपदेश और सत्यार्थप्रकाश के इस देशभक्ति के पाठ से हजारों क्रान्तिकारियों ने देश के लियेअपना जीवन भेंट चढ़ाने की प्रेरणा ली।
Ek baar punh padhro
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