अंधाधुंध औद्योगिकरण से कराहती वसुंधरा [प्रविष्टि - 2, खून की गंगा में तिरती मेरी किश्ती]

in #india5 years ago (edited)

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“आगामी परिणामों से बेखबर, हम उसी डाल को काट रहे हैं,
जिस पर बैठे हुए हैं!”

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आज हर छोटी चीज़ के औद्योगिकरण से एवं उद्योगपतियों के बढ़ते स्वार्थ से अनेक गंभीर समस्याएं उत्पन्न हुई है और निरंतर विकराल रूप लेती जा रही है जैसे – वनावरण का अंधाधुंध विनाश, वायु प्रदूषण, जल संसाधनों का दोहन एवं प्रदूषण, रोगों एवं बीमारियों का बढ़ता प्रकोप, हिंसा और अत्याचार की बढ़ती प्रवृत्ति, जैविक-असंतुलन, मृदा-क्षरण एवं प्रदूषण, मानव के जीवन के लिए कृषि-योग्य भूमि का घटना, अनेक वन्य प्रजातियों की विलुप्ति, ग्लोबल-वार्मिंग आदि। अनेक गंभीर और अस्तित्वगत समस्याओं से हमारी प्यारी माँ वसुंधरा कराह रही है। परंतु हमारे खुद का अस्तित्व भी उसकी इन दर्द-भरी कराहों को कम करने की जगह उसके खून से लथपथ घांवों पर नमक छिड़कने का ही काम कर रहा है। ऐसे में प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि इतनी सारी गंभीर एवं वृहत् स्तर की समस्याओं के समाधान में मुझ अकेले अदने-से आदमी का क्या बस है? अगर शुरुआत करना चाहूँ भी, तो कहाँ से?

इतनी विशालकाय दानवी समस्याओं के समक्ष अपने आपको तुच्छ, निशक्त एवं असमर्थ समझना एक स्वाभाविक एवं सामान्य प्रतिक्रिया है। अतः हम बेबस हो इन कटु सच्चाइयों के आगे अपने घुटने टेकने को मजबूर हो जाते हैं और इन्हें अनदेखा कर जीवन जीने की आदत डाल देते हैं। शनै: शनै: हम इनके प्रति संवेदनहीन हो जाते हैं। यह आज की वास्तविकता है। या यों कहें कि अब तक थी। अब आगे नहीं। क्योंकि आपके हाथ में अब यह पुस्तक आ गई है। जी हाँ, मैं इन सभी समस्याओं का आपको एक बेहद ही सरल और सटीक उपाय बताने जा रहा हूँ जो न केवल इन समस्याओं के समाधान में कारगर होगा, बल्कि आपके व्यक्तित्व को निखारकर एकदम नया रूप दे देगा – शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति, उर्जावान, सक्रिय व आत्मविश्वासी व्यक्तित्व तो महज़ इसके कुछ उप-उत्पाद स्वरूप हैं। और इन सबके लिए आपको कुछ विशेष प्रयास की आवश्यकता भी नहीं है। बशर्ते आप इसे थोड़ा गहराई से समझने के लिए खुले दिलो-दिमाग से तत्पर हों।

सर्वप्रथम आपको अपनी खोई हुई प्राकृतिक व मानवीय संवेदनशीलता पुनः प्राप्त करनी होगी। संवेदनहीन मानव तो एक जिंदा-लाश की तरह है, एक मृत, प्रतिक्रियाहीन दीवार की भांति है। मानवीय संवेदनाएं जीवन का पर्याय है, जीवन का आलिंगन है। हमारी अनुभूतियाँ ही तो हमें यथार्थ से रुबरू कराती है, हमारे विचारों को प्रभावित करती है। और हमारे विचार ही हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करते हैं। अतः अंतर्मन में उठ रही संवेदनाओं के प्रति कभी उदासीन रवैया नहीं अपनाना चाहिये। बल्कि आप जितने संवेदनशील हैं, उतने ही जीवंत हैं। आपकी संवेदनाएं आपकी जीवंतता का मापक हैं, आपके जीवत्व का प्रमाण हैं।

यदि आप पूर्ण तटस्थता एवं निष्पक्षता बरतते हुए, खुले दिल-ओ-दिमाग से आगे दिए गए तथ्यों पर गौर करेंगें एवं उनके कारणों-परिणामों की परस्पर निर्भरता पर तनिक गहनता से विचार करेंगें तो निश्चय ही आपकी स्वाभाविक मानवीय संवेदनाएं स्वतः ही जागृत हो जायेगी। अगर अधिक विचार न कर पाएं तब भी आगे के पन्नों को थोड़ा गहराई से पढ़ते चले जायें। आप जितनी विस्तारपूर्वक जानकारी लेंगे, उतनी ही आपकी रुचि, भावनाएं और संवेदनाएं जागृत होंगी। तभी आप सामान्य-सी लगने वाली प्रक्रियाओं में अन्तर्निहित असामान्यताओं को ठीक से पहचान पाएंगे। किसी भी समस्या के समाधान से पहले उस समस्या को ठीक-ठीक पहचानना आवश्यक है।

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अगले अंक में पढ़ें: प्रविष्टि – 3 खौफनाक मौत के कारखाने और लाशों से सजे बाज़ार

धन्यवाद!

सस्नेह,
आशुतोष निरवद्याचारी

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