Importance of sacraments

in #india6 years ago

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Sanskars are of utmost importance in human life.
Sanskar means improvement, refinement or purification
Relates to the inner improvement of human. If our
If the inner purification becomes pure, then purify purify yourself
It comes Significance of various occasions of rites
And provide purity. Emphasis on rites
Giving that life development is the only spiritual manifestation
Is from Types of Sanskar - Mainly Sanskar Char
Is of type.

1. World Sanskar

2. Environment Sanskar

3. Educational Sanskar

4. Working Sanskar

1. World Sanskar-

In each seed, their sacraments remain hidden. Just as common seeds of mango will be born. This is the same thing in human life as well as the hereditary qualities of the parents, the same will be done for his children too, try the human race's caste rites
Of course they will be revealed. This is the world's ritual.

2. Environment Sanskar-

In the environment in which human beings grow and grow, the same sacrament forms in his mind. Good rites come while staying in good company while bad people stay in bad company
Sanskar is coming. Survival of good rites
Environment is of particular importance.

3 Educational Sanskar-

Children should be given education in childhood. He submits the root of belief in his mind. This is the reason why a person is not able to forget about the things of childhood when he is wrong. Even childhood educational
Life is active even after being sacraments
Seems to be And also suffer its consequences
Falls. This is why the children's upbringing and their
Special attention should be given on education.

4. Work Sanskar-

The child who learns the same work as is done in the house. Even the parents and family members also learn the activities and colloquial language. In fact, the rites of previous births, the environment of the home, the education of friends and colleagues also in the human mind
Good bad new and subtle instances arise
is. These very strong good values ​​also arise.
Is there. It is also a fact that our growth
Pre-birth has an important role in the construction. that's why
The one born of the same womb, a monk is a robber
becomes . When a goodwill emerges in mind
The body and the action also change. And this
Bhavodaya sanskar becomes. Sanskar is the only one
There is subtle power which also after death
Goes to the other body. This feeling from one mind to another
Going into the mind becomes a samskar of society. That's why
Santo has repeatedly directed to do satsang. is.
Human life is controlled by past rituals
is. On the other hand, to earn new auspicious sacraments
Auspicious opportunity is available. Only
Good values ​​should be accepted only.
The rest in the next part

मानव जीवन में संस्कारों का अत्यंत महत्व है।
संस्कार का अर्थ है सुधार, शोधन या शुद्धिसंस्कार
मानव के भीतरी सुधार से संबंधित है। अगर हमारा
अंत:करण शुद्ध हो जाए तो बाहरी शुद्धि स्वमेव हो
आ जाती है । संस्कार जीवन के विभिन्न अवसरों को महत्व
एवं पवित्रता प्रदान करते है । संस्कार इस बात पर जोर
देते है कि जीवन विकास केवल आत्मिक अभिव्यक्ति
से है। संस्कार के प्रकार - मुख्य रूप से संस्कार चार
प्रकार के होते है।

1. जागतिक संस्कार

2. वातावरण संस्कार

3. शिक्षागत संस्कार

4. कार्यगत संस्कार।

1. जागतिक संस्कार-

प्रत्येक बीज में अपने संस्कार छिपे रहते है। जैसे आम के बीज से आम पैदा होगा। यही बात मानव जीवन में भी है माता-पिता के जैसे वंशानुगत गुण होंगे वैसे ही उसकी संतान के भी होंगे कितना भी प्रयास करें मनुष्य के जातिगत संस्कार
अवश्य ही प्रकट हो जायेंगे । यही जागतिक संस्कार है।

2. वातावरण संस्कार-

मानव जिस वातावरण में जन्म लेकर बड़ा होता है, वैसा ही संस्कार उसके मन में बनता है। अच्छी संगति में रहने पर अच्छे संस्कार आते है जबकि बुरी संगति में रहने पर बुरे
संस्कार आते है। अच्छे संस्कार के पैदा होने में परिवेशव
वातावरण का विशेष महत्व है ।

3 शिक्षागत संस्कार-

बच्चे को बचपन में जैसी शिक्षा दी जाये। वही उसके मन में विश्वास रूप में हुई जड़ जमा देती है। यही कारण है कि मनुष्य बडा होकर भी बचपन की बातें को गलत होने पर भुला नहीं पाता है। यहाँ तक कि बाल्यकाल के शिक्षागत
संस्कारों से ही बड़ा होने पर भी जीवन क्रियाशील
होने लगता है। और उसका दुश्परिणाम भी भुगतना
पडता है। इसीलियें बच्चों के लालन-पालन व उसकी
शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए।

4. कार्यगत संस्कार-

जिस घर में जैसा कार्य किया जाता है, बच्चा भी उसी कार्य को सीखता है। यहाँ तक की माता-पिता या परिवार जनों के क्रियाकलाप व बोलचाल भी बच्चे हूबहू सीख जाते है । वस्तुत: पूर्व जन्म के संस्कार, घर के वातावरण का, शिक्षा मित्रों से व सहयोगियों के संस्कारों का भी मानव के मन में
अच्छी बुरी नवीन व सूक्ष्म वृतियों उत्पन्न होती रहती
है। इन्ही की दृढ़ता से ही अच्छे बुरे संस्कार भी पैदा
होते है। यह भी एक तथ्य है कि हमारी वृतियों के
निर्माण में पूर्व जन्म की महत्वपूर्ण भूमिका है। तभी तो
एक ही गर्भ से उत्पन्न संताने, एक साधु तो एक डाकू
बन जाता है । मन में किसी शुभभाव के उदय होने पर
शरीर व क्रिया में भी परिवर्तन हो जाता है । तथा यही
भावोदय संस्कार बन जाते है। संस्कार ही एकमात्र
सूक्ष्म शक्ति है जो मृत्यु के पश्चात भी जीव के साथ
दूसरे शरीर में जाती है। यही भाव एक मन से दूसरे
मन में जाकर समाज का संस्कार बन जाता है। इसीलिए
संतो ने बार-बार सत्संग करने का निदेश दिया । है।
मानव जीवन जहाँ पूर्व के संस्कारों से नियन्त्रित रहता।
है। वहीं उसे नये शुभ संस्कारों को भी अर्जित करने
का शुभ अवसर प्राप्त होता है। अतमनुष्य मात्र को
अच्छे संस्कारों को ही ग्रहण करना चाहिए ।
शेष अगले भाग में

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Nice article ..

sanskar sehi human life acha or behtar ho sakte hain...

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sanskaar ! well i did find that pretty helpful :D
methinks your tendencies MUST lead you to the right path! of having a RIGHT GURU!

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