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नमस्कार दोस्तों ,
आशा है कि आप सब लोग स्वस्थ और प्रसन्न होंगे यह हमारा नए साल का पहला पोस्ट है तो हमारी तरफ से आप सभी लोगों को नए वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं आज मैं आप लोगों को मेंडल के आनुवंशिकता सिद्धांत के बारे में बताने जा रहा हूं।
प्रथम दृष्ट्या हमको यह पता होना चाहिए कि आनुवंशिकता होती क्या है,
पीढ़ी दर पीढ़ी मनुष्य या किसी जीव के लक्षणों में समानता ही उसकी अनुवांशिकता कहलाती है
अर्थात माता-पिता के जो लक्षण संतान में दिखाई देती हैं वह उसकी आनुवांशिकता ही है। विज्ञान की जिस शाखा के अंतर्गत वंशागति या आनुवंशिकता का अध्ययन किया जाता है उसे आनुवंशिकी(genetics) कहते हैं।
यद्यपि जीवो में अनु वंशी लक्षणों की समानता और भिन्नताओं की उपस्थिति का आभास तो ग्रीस देशों में बहुत साल पहले ईसा पूर्व में ही हो गया था। आनुवंशिकी के बारे में दार्शनिक पाइथागोरस, अरस्तु आदि महान व्यक्तियों के द्वारा जानकारी हो चुकी थी परंतु आनुवंशिकी की प्रक्रिया क्या है इसके बारे में किसी को जानकारी नहीं थी।
कई 100 साल के बाद वैज्ञानिक जॉन मेंडल ने वंशागति के मूल नियम बनाकर आधुनिक अनुवांशिकी की नींव रखी ।इसलिए मेंडल को आनुवंशिकी का पिता कहा जाता है इनकी सारी खोजों का वर्णन पुस्तक
एनिमल प्रोसीडिंग ऑफ द नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी ऑफ द ब्रुन्न
में छपी परंतु किसी ने कई सालों तक इनकी महान कार्य पर ध्यान नहीं दिया और सन 1900 में जर्मनी के कार्ल र्कोरेंस ,पोलैंड के ह्यूगो डी व्रीज तथा ऑस्ट्रिया में एरिक वोन शैरमेक ने इन पर ध्यान दिया और पुनः खोज की ।
आनुवंशिकता के बारे में वैज्ञानिक जॉन मेंडल ने बहुत ही सरल और सटीक प्रयोग के द्वारा बताया है। चूंकि जीन शब्द की खोज मेंडल के प्रयोग के बाद हुई थी इसलिए मेंडल ने जीन शब्द की जगह अपने प्रयोग में कारक शब्द का प्रयोग किया था।
मेंडल ने वंशागति के नियम मटर के पौधे पर प्रयोग सिद्धि के द्वारा दिए।
मेंडल ने मटर के पौधे का चयन इसलिए किया क्योंकि मटर की फसल दो-तीन महीने की होती है और इसे संभालना सुगम होता है इसमें पुष्प द्विलिंगी या उभयलिंगी होते हैं जिससे स्वपरागण आसानी से हो जाता है और मटर के पौधे का जीवनचक्र लघु अवधि का होता है अतः पीढ़ी के परिणाम जल्दी प्राप्त कर सकते हैं ।
मेंडल जब अपनी बागानों में घूम रहे थे तो उन्होंने कुछ मटर के दानों को बो दिया और जब वह पौधे बनकर उगे तो उन्होंने कुछ भिन्न प्रकार के लक्षणों को परिलक्षित किया उन पौधों में कुछ पौधे लंबे थे तो कुछ पौधे बौने थे कुछ पौधों के फूलों का रंग बैगनी था तो कुछ फूलों का रंग सफेद था तथा फूलों की स्थिति किन्ही किन्ही पौधों में शीर्ष पर थी तो किन्ही पौधों में मध्य में थी फली का आकार भी भिन्न-भिन्न पाया ,किन्ही पौधों में फली फूली हुई थी तो किसी में सिकुड़ी हुई थी। जब पौधे हरे थे तो फली का रंग हरा था और फसल के पक जाने पर फली का रंग पीला हो गया था इसी प्रकार दाने का रंग भी हरे से पीला हो गया था। कुछ दानों का आकार गोल था तो कुछ दानों का झुर्रीदार दार था अर्थात मुरझाया हुआ था।
महान गणितज्ञ और वैज्ञानिक जॉन मेंडल ने इन सभी लक्षणों का गहन अध्ययन कर पुस्तक में लिखवाया और इस आधार पर कार्ल कोरेंस तथा ह्यूगो डी व्रीज ने 3 नियमों में समाहित कर दिया-
(1) प्रभाविता का नियम
(2) पृथक्करण का नियम
(3)स्वतंत्र अवयुह्न का नियम
प्रभाविता का नियम --
पौधों के वे लक्षण जो उनकी संतानों में परिलक्षित हो रहे थे उन लक्षणों को प्रभावी लक्षण कहा गया जो कि स्पष्ट रूप से जनक पीढ़ी से समानता रखते थे
अतः जब किसी लक्षण के विपरीत कारक साथ-साथ हो तो केवल प्रभावी कारक ही प्रत्यक्ष रूप से दृश्य रूप में प्रकट होते हैं और कुछ दृश्य रूप में प्रकट नहीं होते हैं इस प्रकार जो लक्षण प्रकट होते हैं अर्थात दिखाई देते हैं उन्हें ही प्रभावी लक्षण कहते हैं और जो लक्षण दिखाई नहीं देते हैं वो अप्रभावी लक्षण कहलाते हैं ।
जो लक्षण प्रकट होते हैं उन्हें फीनोटाइप कहा जाता है और जो लक्षण प्रकट दिखाई नहीं देते उन्हें जीनोटाइप कहा जाता है ।
इस प्रकार मेंडल के इस निष्कर्ष को कॉल कोरेन्स ने 1901 में प्रभाविता के नियम के नाम से घोषित किया।
प्रयोग में जब लंबे पौधे का बौने पौधे के साथ संकरण कराया गया और उनके बीजों को जब बोया गया तो पहली पीढ़ी में सारे पौधे लंबे उत्पन्न हो गए, पौधों का लंबा होना ही प्रभावी लक्षण है।
प्रथक्करण का नियम -
और जब इन पहली पीढ़ी के लंबे पौधों में पर परागण हुआ तो दूसरी पीढ़ी के पौधों में जनक पीढ़ी के समान शुद्ध लक्षण देखने को मिले अर्थात कुछ शुद्ध लंबे पौधे, कुछ शुद्ध बौने पौधे और कुछ संकर लंबे पौधे प्राप्त हुए।
चूंकि दूसरी पीढ़ी में शुद्ध बौने और शुद्ध लंबे पौधे प्राप्त हुए हैं इसलिए इस नियम को युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहते हैं।
कार्ल कोरेंस ने मेंडल के तीसरे निष्कर्ष को पृथक्करण का नियम घोषित किया जिसके अनुसार
एक आनुवंशिक लक्षण की विभिन्नताऔ अर्थात तुलनात्मक रूपों के कारक कितनी ही समय के लिए साथ साथ रहे परंतु वह अपरिवर्तित रहते हैं अर्थात शुद्ध बने रहते हैं। इनके फीनोटाइप का अनुपात 3:1
स्वतंत्र अवयुह्न का नियम -
मेंडल का प्रथम और द्वितीय नियम तो 1 जीन की वंशागति पर आधारित था परंतु यह नियम दो जीन की वंशागति पर आधारित है।
इस नियम के अनुसार एक आनुवंशिक लक्षण का प्रबल कारक स्वतंत्र रूप से दूसरे के प्रबल कारक से ही नहीं अपितु अप्रवल कारक से भी मिल सकता है और एक का प्रबल कारक दूसरे के अप्रवल कारक से ही नहीं अपितु प्रबल कारक से भी मिल सकता है मेंडल के इस निष्कर्ष को कॉल करें इसमें मेंडल के स्वतंत्र अवयुहन या विन्यास के नियम के रूप में घोषित किया इसे law of free recombination भी कहते हैं।
इनमे फीनोटिप अनुपात 9:3:3:1 होता है ।
इस प्रकार मेंडल ने अनुवंशकी के बारे में विस्तार से वर्णन कर आने वाले हम लोगों को महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की जिसकी सहायता से हम चिकित्सा के क्षेत्र में अभूतपूर्व उपलब्धि हासिल की ।
मेरे द्वारा दी गई जानकारी आपको कैसे लगी ,,,
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