अहम् सवाल: क्या कत्लखानों को प्रतिबंधित करने पर गौ-हत्या रूक सकती है?

in #hindi6 years ago (edited)

भारत में कत्लखानों का प्रबल विरोध

लंबे समय से भारतवर्ष में गौ-हत्या के खिलाफ अभियान चलाये जा रहे हैं और इसका सबसे प्रबल समाधान कत्लखानों को प्रतिबंधित करना समझा जाता रहा है। इसी कारण कत्लखानों को बंद करने के लिए कई अभियान चलाये गए और अभी भी चलाये जा रहे हैं।

राजनितिक स्तर पर भी ये संघर्ष भारतीय राजनेताओं को अपने पक्ष में करने में सफल रहा है। अतः राजनितिक स्तर पर भी गौ-रक्षा हेतु गौ-वध को प्रतिबंधित करने संबंधी कई निर्णय लिए गए।

अनेक आंदोलनों, विरोध-प्रदर्शनों आदि के अलावा ये मुद्दा अनेक बार न्यायलयों में भी पहुंचा और कई विधि-विशेषज्ञों ने भी जबरदस्त वकालत कर न्यायालयों को भी इस प्रकार के आदेश पारित करने पर विवश किया।

परिणामवश, आज अधिकाँश भारतीय राज्यों में गौ-वध को प्रतिबंधित करने बाबत कोई न कोई कानून भी बना हुआ है।

परंतु क्या गाय अपनी जान बचा पायेगी?


इतने प्रयासों के बावजूद आज भी गौ-हत्या और गौ-तस्करी बदस्तूर जारी है। इस संबंध में मैं आपसे ये पूछना चाहूँगा कि इस विषय पर आपकी क्या राय है?

  • क्या ये प्रयास अंश मात्र भी गौ-हत्या को रोकने में सफल हुए हैं?
  • क्या कत्लखानों या बूचडखानों पर प्रतिबन्ध गौ-हत्या रोकने हेतु उचित उपाय है या हम समस्या को ठीक से समझ ही नहीं पा रहे हैं?
  • क्या गौ-हत्या प्रतिबंधित करने से जीव-हिंसा रूक सकती है?
  • गौ-हत्या बंद करने का निर्णय किसी धर्म-विशेष से प्रभावित हो लिया जा रहा है या फिर अहिंसा के नैतिक मूल्यों को आधार बना कर लिया जा रहा है?
  • अगर अहिंसा के सिद्धांत का अनुकरण करना मूल ध्येय है तो सिर्फ गौ पर ही इतना आग्रह क्यों? क्या भैंस, बैल, बकरा, भेड़, मुर्गा, सुअर जैसे अन्य प्राणी जीना नहीं चाहते अथवा उनके जीवन का मोल कमतर है?

    आप सभी प्रबुद्ध पाठक मुझे अपने विचारों से अवश्य अवगत करें


    मैं एक अन्य पोस्ट में ठोस तथ्यों के आधार पर ये समझाने का प्रयास करूँगा कि कत्लखानों पर रोक लगाना समस्या का समाधान नहीं अपितु अधिक गंभीर समस्या खड़ी करना है। लेकिन उससे पहले मैं आपके विचार भी जानना चाहता हूँ कि कत्लखानों को प्रतिबंधित करने की प्रचलित मान्यता से आप कितना सहमत हैं। मुझे आपके मत और विचारों का इंतजार रहेगा।
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यदि हम मानवों को दूध और दूध के उत्पादों का इस्तेमाल इसी तरह से करना है जैसे अभी कर रहे है, तो कत्लखाने तो बहुत ही जरुरी है. बिना कत्लखानों के हम दूध का इस्तेमाल इस तरह से नहीं कर सकते. ये कत्लखाने तो हमें दूध पीने में सहयोग ही कर रहे है वरना हम दूध के उत्पादों का इस्तेमाल नहीं कर सकते.

कत्लखाने तो बहुत ही जरुरी है, दूध पीने के लिए.

मुझे आपकी पोस्ट / post का इन्तजार रहेगा.

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शानदार पोस्ट । भारत में शिक्षा का उद्योग जिस तरह पनप रहा है उससे यह हिसाब लगाना असंभव है कि हमें किसी इंसान या जानवर की रक्षा क्यूँ करनी चाहिये या मांस क्यूँ खाना चाहिये ?। शिक्षा प्रणाली हमेशा हमें यही सिखाती आई है कि "मांस खाना पाप है", किताबें यह समझाने में असमर्थ रही हैं कि "क्यूँ नहीं खाना चाहिये"।
तिब्बत में मांस खाया जाता है, वहां तो लामे भी खाते हैं क्योंकि वहां हरी सब्जी उगाना असम्भव है, तो यह वहां के हिसाब से अनुकूल है लेकिन शहरों में जहां हरी सब्जी प्रचुर मात्र में उपलब्ध है वहां भी दौड़ लगी है जानवरों तो काटने की, जोकि यहाँ के पर्यावरण के हिसाब से बिल्कुल ही गलत है ।
सवाल सिर्फ गाय या अन्य जानवर के मांस का नहीं बल्कि सवाल है कि "कैसे युवाओं को जागरूक किया जाएँ कि जब शहरी बाजारों में देश-विदेश की खाद्य सामग्री उपलब्ध है तो क्यूँ किसी जानवर की हत्या करी जाए"।

आपकी शेष सभी बातों से मैं सहमत हूँ किंतु तिब्बत में माँस खाने की बाध्यता से असहमत हूँ। आज उपलब्ध परिवहन एवं भंडारण के आधुनिक साधनों से तिब्बत में पूर्णतः वनस्पति आधारित भोजन करना संभव है।

जिस क्षेत्र में यदि वनस्पति आधारित भोजन दुर्लभ हो तो मानव को उस क्षेत्र में बसना ही नहीं चाहिए।

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India has been consuming milk for thousands of years. Before the British came, Indians used to drink milk without butchering cows. In fact, Hindu kings probably banned the butchering cows and whoever killed them was sent to jail. Moreover, cows can be used for cow dung, urine and so on. Cow dung is the best organic fertilizer, fuel for 'gobar-gas', soap, etc. Next, cow urine has medicinal benefits and has tremendous nutrients in it. There are definitely ingenious ways of utilizing cows without killing them.

Whenever mankind think of "using" an animal for its own interest, animal cruelty is born. Why do we need to find ways for utilizing cows without killing them? Why can't we let them live freely? Any interference in other's lives is unacceptable.

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हिन्दू गाय को माता मानते हैं क्योंकि वो दूध देती है और उस दूध से मानव शिशु भी पलते हैं। शिशु अपनी माता का भी दूध पीते हैं। इस नाते लोग सोचते हैं कि जिस तरह अपनी माता दूध देकर हमे पालती है वैसे ही गाय भी हमे पालती है। इसलिए गाय भी माँ जैसी पवित्र है। परंतु इसमें सोचने वाली बात ये भी है कि हर कोई केवल अपनी माँ को ही माँ कहता है, दुनिया भर की सभी स्त्रियॉं को नहीं। दुनिया भर की बाकी स्त्रियॉं में उसकी बहिन, चाची, ताई, नानी, मौसी और पत्नी, साली भी आ जाती है। वो सभी को तो माता नहीं कहता है। बल्कि वो अपनी माता का दूध पीने पर भी अन्य स्त्रियॉं को कुदृष्टि से देखता है और कई बार तो कुछ नर पशु बलात्कार भी कर बैठते हैं। अतः जिस तरह माँ होने से सभी स्त्रियाँ माँ नहीं हो जाती है वैसे ही दूध पीने से सारी गायें मा नहीं हो सकती है। केवल वो विशेष गाय ही उस व्यक्ति के लिए माता मानी जा सकती है जिसका दूध उस आदमी ने पिया है। सारी दुनिया की गायें कैसे सारे लोगों की माँ हो गयी? ये भी तो हो सकता है कि किसी व्यक्ति ने जीवन भर गाय का दूध ही न पिया हो फिर कैसे गाय उसकी माता हो गयी। ये भी तो गौर करने वाली बात है कि हर स्त्री के साथ रिश्ता होने पर किसी न किसी पुरुष से रिश्ता भी जुड़ता है। फिर वो रिश्ता सांड से भी जुड़ना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं होता है। इसलिए गाय एक प्यारा पशु है, बहुत उपयोगी है पर है तो पशु ही। इसलिए माता शब्द का लोगों को सोच समझकर प्रयोग करना चाहिए। मै स्वयम व्यक्तिगत तौर पर पशुओं को बहुत सम्मान देता हूँ क्योंकि उन्होने मानव समाज को आज की स्थिति तक पहुँचने में अपना अमूल्य योगदान दिया है। मानव को वो अहसान नहीं भूलना चाहिए। इसलिए पशुओं के साथ किसी भी तरह क्रूरता नहीं होनी चाहिए। यदि उनको मांस के लिए मारा भी जाता है तो वहाँ भी न्यूनतम क्रूरता बरती जानी चाहिए।

यदि आप पशुओं के जीवन का सम्मान करते हैं तो उन्हें अपना जीवन जीने दें। जब-जब मानव पशुओं का "उपयोग" कर अपना स्वार्थ-साधना चाहता है, वह उनके शोषणकी शुरुआत करता है।

क्रूरता क्रूरता होती है, न्यूनतम अथवा अधिकतम। सवाल क्रूरता को कम करने का नहीं है, उसे समूल समाप्त करने का है। "मानवीय-हत्या " जैसा कोई शब्द नहीं है।

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