'विधि’ और ‘निषेध
'विधि’ और ‘निषेध'-ये दो शब्द वैष्णव समाज में बहुत प्रचलित हैं। प्रायः हम इन दो शब्दों के आसपास ही अपनी जीवन चर्या चलाते हैं।
एक वर्ग ऐसा है, जो यह मानता है कि निषेध का ध्यान रखो। ये न हो, वो न हो, अपराध न हो, प्याज मत खाओ, बाजार का मत खाओ, अपमान मत करो, अहंकार मत करो, प्रतिष्ठा में मत पड़ो
आदि-आदि। इनसे पूछो‘भजन'? बोले वह तो जीव की सामर्थ्य कहाँ है? वह तो गुरुजी करते हैंन ।तुम तो बस अपराधों से बचे रहो। | इस वर्ग के चिन्तन को यदि सूक्ष्मता से अध्ययन किया जाये तो इनके दिमाग में हर समय ये भय या ये चिन्तन घूमता रहता है कि कहीं अपराध न हो जाय।' अपराध अपराध, अपराध,पाप, पाप,
दसरा एक वर्ग ऐसा है कि जो मानता है कि ‘विधि' का पालन करो । पूजा करो, पाठ करो नाम-संकीर्तन करो, गुरु सेवा करो, व्रत करो भजन करो।साथ ही निषेधों का भी पालन करो। निषेधों के पालन सहित यदि भजन किया जायेगा तो भजन में एक डैफ्थ आयेगी, तन्मयता आयेगी। और भजन से अपराध एवं पाप-वृत्ति भी स्वतःही कम होती जायेगी ।नामापराध-नाम से ही तो कटते
ये ऐसा वर्ग है जिसके दिमाग में सदैव भजन, पूजा, सेवा, व्रत का चिन्तन चलता है और इनके दिल-दिमाग में सदैव भजन विराजमान रहता है। मैं भी इसी वर्ग का समर्थक हूँ।
'निषेध यानिये मत करो'कभी भी जीवन का उद्देश्य नहीं हो सकता है। विधि' अर्थात् ये करो ही जीवन का उद्देश्य होता है।उस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये या शीघ्र प्राप्त करने के लिए या ऐसे निराश व्यक्ति के समाधान के लिए ‘निषेधों का
आदेश है, जो यह कहता है कि मैं भजन कर रहा हूँ, लेकिन फल क्यों नहीं मिल रहा? | ‘निषेध’ जीवन का उद्देश्य नहीं हो सकते, अपितु जीवन का उद्देश्य प्राप्त करने में सहायक या उपाय हो सकते हैं। प्रभुपाद ने भी म्लेच्छ एवं आचरण हीन, पापी, व्यभिचारी अंग्रेजों के साथ
प्रारम्भ में यही नीति अपनायी थी ।प्रभुपाद ने इन लोगों से कहा कि तुम ‘हरेकृष्ण' बोलो।नाम जप करो तन्मयता से। और उनके तेज एवं कृपा के प्रभाव से इन अंग्रेजों, विदेशियों के दुराचार कब छूटते गये, पता ही नहीं चले।
व्यक्ति यदि व्यभिचार या पाप छोड़ने को टारगेट करेगा तो उसके दिमाग में व्यभिचार' ‘पाप’ ‘पाप’ ‘पाप’ की घण्टी बजती रहेगी और
दिमाग में पाप-पाप-पाप घूमेगा तो छूटेगा कैसे?
इसके विपरीत- 'नाम', 'भजन', हरे कृष्ण की | घण्टी बजेगी तो पाप के लिए स्थान व चिन्तन | कहाँ है। वैसे भी नाम व भजन में यह शक्ति है कि पाप को नष्ट कर दे।
‘पाप न करने में कोई शक्ति नहीं है। अतः फोकस करें- भजन पर-तीव्रता पूर्वक भजन। | ऐसी तीव्रता कि हर समय दिमाग पर भजन हावी रहे। पापों ने, व्यभिचार ने तो छूटना ही है। सूर्य का चिन्तन करो । अन्धकार हटाने का नहीं ।सूर्य के आते ही अन्धकार कहाँ रुक पायेगा। | इस विचार के द्वारा मैं पाप-दुराचार करने प्याज, मांस खाने की अनुमति नहीं दे रहा हूँ।ये सब तो छोड़ना ही है लेकिन फोकस भजन पर। ये भजन के उपाय हैं। भजन नहीं ।आप उपाय तो करते रहो और भजन करो नहीं तो मिलेगा क्या?
एक विद्यार्थी है-कक्षा में शान्त रहता है, अध्यापक को तंग नहीं करता है।साथी विद्यार्थियों से भी सज्जनता से पेश आता है, कभी लेट नहीं होता है-आदि-आदि ।वह पूरे निषेधों का पालन करता है लेकिन 3 साल से प्रति वर्ष कक्षा में फेल हो जाता है।
यद्यपि उसका यह निषेध-पालन बिलकुल व्यर्थ नहीं है, लेकिन यदि वह कक्षा में पास ही नहीं | हो रहा है तो फिर इनकी सार्थकता भी क्या है।
होना तो यह चाहिए कि उसे कक्षा में अच्छे | नम्बरों से पास होना है। वह बदमाशियाँ न करे–बहुत अच्छी बात है और मैं तो यह कहता हूँ। कि वह खूब बदमाशी करे, यदि कक्षा में टापर है। तो चलेगा।उसकी बदमाशियों ने एक न एक दिन ठण्डा पड़ना ही है आटोमैटिकली। | अच्छा-अच्छा भोजन बना लो और खाओ नहीं तो पेट कैसे भरेगा। और जो पेट नहीं भरा | तो भोजन कितना भी अच्छा हो । इससे तो दो सूखी रोटी अच्छी जो पेट भरेंगी।
अतः सदैव करने पर फोकस करें, इसे टारगेट बनायें ।'न करने वाली बातों को उपाय रूप में ध्यान रखेंइन्हें टारगेट न बनाएँ । एक सज्जन मेरे पास आये, चर्चा हुयी। मैंने कहा आप भजन साधन कुछ करते हैं। बोलेहाँ-मैं सूर्योदय बाद तक सोता नहीं हूँ।झूठ नहीं बोलता । मैंने आज तक किसी का दिल नहीं दुखाया। प्याज, मांस नहीं खाता हूँ।शराब नहीं पीता हूँ। बेईमानी नहीं करता हूँ आदिआदि।।
मैंने कहा ये सब तो वो हैं, जो आप नहीं करते' हो। आप ‘करते' क्या हो । बोले ‘जी ये सब करता तो हूँ। मैंने कहा आप करते कुछ भी नहीं हो ।ये सब तो न करने वाली बातें हैं। इन्हें न करते हुए- कुछ करना
भी तो होता है।बल्कि कुछ करने | के लिए ही ये सब नहीं करना होता है। वह करने वाली चीज है भजन-भक्ति ।भगवद् सेवा।
यदि करने वाला काम ही नहीं है, तो न करने वाले काम तो वैसे ही हैं जैसे एक शान्त शरीफ विद्यार्थी का तीन साल से फेल होना ।चिन्तन कीजिये।