गौ माता की नुमाइश! कौन कितना दूध निचोड़ सकता है!steemCreated with Sketch.

in #steempress5 years ago


गौ माता की नुमाइश हाल ही में हरियाणा के राष्ट्रीय डेयरी मेला 2020 में हुई जहाँ यह प्रदर्शन करने की होड़ थी कि कौन कितना दूध अपनी गौमाता से निचोड़ सकता है।

इस तरह के सरकारी आयोजन डेयरी उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए किये जाते हैं लेकिन इसका एक दूसरा पहलू जिसका जिक्र इस ब्लॉग की हर पोस्ट में किया जाता है वह है कथित गौ माता का उत्पीड़न। इस तरह के आयोजन को अगर गौ माता की नज़रों से देखा जाए तो शायद यह गाय माता की पीड़ा और बेबसी का भोंडा प्रदर्शन ही कहा जाएगा।

गौ माता की पुकार ! बंद करो यह अत्याचार!

जब प्रतियोगिता और प्रदर्शन इस बात का हो कि एक गाय से कितना दूध निकला जा सकता है तो क्या गाय की अपने बछड़े के लिए प्राकृतिक दूध देने की क्षमता का अप्राकृतिक रूप से दोहान करना नहीं कहा जाएगा?

इस तरह के आयोजन आमजन में बहुत ही सामान्य माने जाते है और इसमें भाग लेने वाले प्रतिभागी न केवल अपने आप को गौ सेवक कहलाने में गर्व महसूस करते हैं बल्कि उनके द्वारा जाने अनजाने में दूध के लिए पशुओं पर किये जाने वाले अत्याचारों को "गाय माता" के चोले के पीछे छिपाने का असफल प्रयास भी करते हैं।

विडंबना यह है कि डेयरी में किया जाने वाला कोई भी अप्राकृतिक कार्य न केवल नज़रअंदाज ही किया जाता है बल्कि उसे इतना सहज मान लिया गया है कि वह हर दृष्टि से गाय के भले के लिए उठाया गया कदम ही लगता है।

गाय का कृत्रिम गर्भाधान !

यह किसी भी डेयरी में आम नज़ारा है, क्योंकि इसके बिना किसी भी डेयरी का अस्तित्व असंभव है। वैसे तो किसी भी मादा के जननांगों से छेड़-छाड़ असभ्यता ही कही जायेगी लेकिन डेयरी उद्योग में गौ वंश संवर्धन के नाम पर गायों के लिए कल्याणकारी बता कर इस बलात्कार रूपी प्रक्रिया को भी जायज ठहराया जाता है।

माँ और बछड़े का वियोग!

अगर गाय का बछड़ा माँ से दूर खूंटे पर बंधा भूखा मर रहा हो तब भी स्पष्टीकरण यही होता है कि "यह तो बछड़े के भले के लिए है। अगर उसे माँ के पास रहने दिया जायेगा तो वह सारा दूध पी लेगा और मर जायेगा !"

अप्राकृतिक भोजन, दवाइयाँ और हार्मोन !

गायों को डेयरी में दूध के व्यापर और अधिकाधिक मुनाफे के लिए आजीवन बंदी बना कर रखा जाता है, लेकिन इसे भी गायों के लिए कल्याणकारी बताया जाता है। हरी घास और चारा गायों का प्राकृतिक भोजन होता है लेकिन अधिक दूध के लालच में प्रतिदिन फ़ास्ट फ़ूड जैसा और पका हुआ भोजन दिया जाता है।

न केवल अप्राकृतिक भोजन बल्कि अनावश्यक कैल्शियम, हॉर्मोन और अन्य दुग्ध वर्धक दवाइयां भी नियमित रूप से दी जाती है ताकि गायों से ज्यादा से ज्यादा दूध निकाल कर मुनाफा कमाया जा सके। यहाँ बछड़े की भूमिका बिलकुल नज़रअंदाज कर दी जाती है कि गाय के दूध पर पहला अधिकार उसका है। अगर मादा बछिया है तो उसका सिर्फ उतना ही ख्याल रखा जाता है जितना उसके जीवित रहने के लिए पर्याप्त होता है। यहाँ नर बछड़े का कोई भविष्य नहीं होता सिर्फ तिल-तिल मरने के सिवाय।

गाय इंसानों के लिए दूध पैदा करती है: हकीकत या मिथ्या?

"राष्ट्रीय डेयरी मेला" डेयरी व्यवसाय के लिए अथवा गाय माता के कल्याण के लिए?

ज्यादा दूध पैदा करने वाली कृत्रिम नस्लों की प्रदर्शनी जिसे "राष्ट्रीय डेयरी मेला" कहा गया है वह सिर्फ और सिर्फ डेयरी उद्योग को बढ़ावा देने के लिए है लेकिन इसे प्रचारित इस तरह किया जाता है कि फलां गाय की नस्ल इतना ज्यादा दूध देती है और इसे गायों के प्रति इंसानों के प्रेम के रूप में दिखाया जाता है।

सौ बात की एक ही बात है कि इंसान गायों पर कितने ही प्रयोग कर उसके दूध उत्पादन की क्षमता बढ़ा ले लेकिन इस तथ्य को कभी अनदेखा नहीं किया जा सकता कि गाय दूध तभी पैदा करेगी जब उसके बच्चा पैदा होगा। एक गाय को सिर्फ गौ माता कह देने से गाय को कोई मतलब नहीं उसे तो सिर्फ अपने बच्चे से मतलब है।

जब उसे उसके बछड़े से जुदा कर इंसान उसका बछड़ा बनने की कोशिश करता है तो शायद उसे यह बिलकुल भी रास नहीं आता, वह तो अपने बछड़े के वियोग में करहाती है लेकिन इंसान के आगे मजबूर होती है वह सब कुछ दुर्व्यवहार सहने के लिए जो कुछ इंसान अपने स्वार्थ और लालच के लिए उसके साथ करता है।



Posted from my blog with SteemPress : https://ditchdairy.in/dairy/cow-mothers-show-who-can-squeeze-how-much-milk/

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