येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम् ।
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रता: ।।
- अच्छे कर्म करने पर पुण्य फल और बुरे कर्म करने पर पाप फल मिलता है । इस प्रकार जैसे-जैसे जो जैसा कर्म करता जाता है वैसा ही फल प्राप्त होता है । इस प्रकार हमारा मन पाप और पुण्य फलों से भर जाता है । परंतु जब हम साधना के पथ पर चल पड़ते हैं तो पाप फल अपने आप ही समाप्त हो जाते हैं । हमारे मन में केवल अच्छे विचार ही आएंगे अच्छे कर्म ही हम करेंगे । पाप फल कट जाने के कारण सर्दी गर्मी ,अच्छा बुरा, दुख सुख, लाभ हानि आदि के विचार समाप्त हो जाते हैं । इस प्रकार शुद्ध चित्त वाला साधक दृढ़ संकल्प से मुझे भजता है ।
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