Ishq ki kitab...
जब ख़त्म हो जाएँ दुनिया के सारे झगड़े,
तुम फिर शक करके शुरुआत करना!
जब दुनिया में बातें न होंगी, कोई मसले न होंगे,
फिर तुम "और बताओ" बोल के प्रहार करना!
जब ग़ालिब न होंगे, गुलज़ार न होंगे,
तुम "ए सुनों" कहकर मेरे क़िस्सों को पढ़ना!
जब ख़त्म हो जाएँ दुनिया के सारे ख़याली पुलाव,
तुम कानपुर के पोहे पका कर फिर से यलगार करना!
जब जब होगी दुनिया में मोहब्बतों की गर्दिश,
अपना नाम मेरे नाम से जोड़कर इंतिलाह करना!
जब ख़त्म हो जाएँ दुनिया में इश्क़ के क़िस्से,
तो मुझे देख मुस्किया कर, तुम इकरार करना!
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