Ghazal

in #prameshtyagi6 years ago

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आज कर बैठे हैं, शिक़वा हम बहारों से
लिपट के रो लिये जब थोड़ी देर ख़ारों से

अश्क़ों की भी रवानी,न साथ देती है अब
कब तक बहते भला,मुसलसल ये धारों से

अब आसमाँ को मनाना भी मुमकिन नहीं
कोई सुनता नहीं इल्तिज़ा बेइख्तियारों से

नहीं ज़हाँ में कोई ख़ामोश गुफ़्तगू के लिये
अब तो होती है बात, रात भर सितारों से

नहीं अहम् है मेरे वास्ते ज़हाँ की खुशियाँ
जब रिश्ता तर्क़ हुआ अपने राज़दारों से

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very nice gazal

Waah waah babut khoob waah

होसला अफजाई के लिए धन्यवाद

isme kam kaise karte

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