ग़ज़ल

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ग़ज़ल

अजब ये ख़ून के रिश्ते कमाल करते हैं ।
लगाते ज़ख़्म हैं फिर देखभाल करते हैं ।

कभी भी फ़िक्र फ़राइज़ की सताती ही नहीं ,
हक़ूक ख़ूब सभी इस्तेमाल करते हैं ।

ज़ईफ़ख़ाने में आते हैं जो कभी मिलने ,
लगे है माँ को कि बेटे ख़याल करते हैं ।

तमाम रात ख़लाओं में ढूँढता क्या है ,
तमाम रात सितारे सवाल करते हैं ।

तुम्हारे ख़्वाबों को शाइस्तगी नहीं आती ,
हमारी नींद का जीना मुहाल करते हैं ।

नजूम सुन के ही आँसू बहाने लगते हैं ,
बयाँ जो चाँद से हम दिल का हाल करते हैं ।

बग़ीचे वो भला 'नादान' सब्ज़ हों कैसे ,
कि बाग़बाँ ही जिन्हें पायमाल करते हैं ।
राकेश 'नादान'

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