Krushn dyanand

in #post6 years ago

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श्री कृष्ण यादव कुल में पैदा हुए थे जिनको उस समय क्षत्रियों के समान ही माना जाता था और क्षत्रियों तथा यादवों के परस्पर विवाह सम्बन्ध भी होते थे। कृष्ण तो द्वारिका के राजा भी थे
ओर उनका सारा जीवन ही सुदर्शन चक्र के साथ बिता जो श्री कृष्ण अदभुत अस्त्र था। उनका सारा जावन हा युद्ध करने में या युद्ध बन्द करवाने में बीता। दयानन्द ने भी अनेकों काम क्षत्रियों वाले करके दिखायें जिनमें रावकर्ण सिंह की तलवार के दो टुकड़े करना और जनता के रोकने पर भी बीमार में दो भयंकर साण्डों को लडते देख उनके पास जाकर दोनों के सींगपकड़ कर अलगअलग कर देना कृष्ण ने बचपन में
। वेश्यो का एक काम पशुपालन भी है। कृष्ण ने बचपन
गोकुल में गोपालन काम किया जो उनके
महत्वपूर्ण काम गिना जाता है। महर्षि अपने जीवन में
साहित्य छपवाने पर तथा अन्य अवागमन पर जितना खर्च लगता
था उसका एक-एक पैसे का हिसाब रखत थे और दूसरों से लेते
थे जो वैश्यों का प्रधान काम है। कृष्ण सेवा के कार्य में जो शूद्रों
का कहलाया जाता है उसमें हर वक्त आगे रहते थे। युधिष्ठिर के।
रामसूय यज्ञ में अतिथियों का सेवाकार्य कर भार और विद्वानों व
वृद्धजनों के चरण धोने का काम स्वयं ने लिया था। इसी प्रकार
महर्षि भी सेवा के कार्य में हमेशा तत्पर रहते थे। गुरु विरजानन्द
की कुटिया में विद्याध्ययन के समय महर्षि ने जो सेवा गुरु
विरजानन्द की थी वह अकथनीय है और सेवा की प्रकाष्ठा है।
चारों आश्रमों के गुण भी दोनों के जीवन में भरपूर दृष्टिगोचर
होते हैं कृष्ण ब्रह्मचर्य आश्रम में गुरु सन्दीपनि के पास पढ़े थे और वे महर्षि के कहे होते अनुसार गृहस्थी हए भी संयमी होने से
ब्रह्मचारी थे। महर्षि दयानन्द के कथनानुसार श्री कृष्ण ने जन्म से
लेकर मृत्युपर्यन्त कोई गलत काम नहीं किया। वे आप्त पुरुष थे।
इससे बढ़कर ब्रह्मचर्य और क्या हो सकता है ? दयानन्द तो बाल
ब्रह्मचारी थे उनके बारे में कुछ लिखना सूर्य को दीपक दिखाना। कृष्ण तो आदर्श गहस्थी थे ही। उन्होंने रुक्मणि से विवाह करके भी बारह वर्ष तक पति पत्नी ने तपस्या करने के बाद एक
सन्तान उत्पन्न की जिसका नाम प्रद्युम्न था। स्वामी जी ब्रह्मचर्य
से ही सन्यासी बन गये थे।

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