एक जगह मैने बनाया है
किसी ना किसी पल मेरे होने का
जीक्र तो आएगा
दूरी कितनी ही हो
मन तो मुझे बुलाएगा
मेरे शब्द ही दस्तक बन जाएँगे
तुझे नींद से जगाएँगे
गर कभी मेरी पहचान भूलने लगो
तो ये शब्द ही तुझे बताएँगे
एक जगह मैने बनाया है,
जहाँ कुछ यादें हैं,
जब बोझिल होने लगे मन
तब तुम जाना वहाँ,
यहाँ वही पल मिलेंगे,
जिसे हमने साथ बिताया था.
जब रूठने लगे खुशी तुमसे
तब तुम जाना वहाँ,
यहाँ वही पल मिलेंगे,
जिसने कभी तुम्हे हंसाया था.
जब अंधेरे से निकल ना पाओ,
तब तुम जाना वहाँ,
यहाँ वही रोशनी मिलेगी
जिसने कभी तुम्हे चाँदनी से नहलाया था.
जब थकने लगो जिंदगी से
तब तुम जाना वहाँ,
यहाँ वही उर्जा मिलेगी
जिसने पर दिए थे तुम्हे और
आकाश मे उड़ाया था.
जब नींद ना आने लगे
तब तुम जाना वहाँ
यहाँ वही खवाब मिलेंगे
जिसने तुम्हे कभी सुलाया था.
जब अकेलापन सताने लगे
तब तुम जाना वहाँ
यहाँ मेरे कुछ शब्द गूंजते मिलेंगे
जिसने कभी मन बहलाया था
Wah! that is great start. Can you change the spellings of jikr in the beginning? The poem is a good love poem. This is something you should continue to build.