A Poetry About Missing Our Childhood Days !

in #poetry5 years ago


मुझको यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं,
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं !
एक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे नाता तोड़ लिया,
एक वो दिन जब पेड़ की शाख़ें बोझ हमारा सहती थीं !
एक ये दिन जब सारी सड़कें रूठी-रूठी लगती हैं,
एक वो दिन जब आओ खेलें सारी गलियाँ कहती थीं !
एक ये दिन जब जागी रातें दीवारों को तकती हैं,
एक वो दिन जब शामों की भी पलकें बोझल रहती थीं !
एक ये दिन जब लाखों ग़म और काल पड़ा है आँसू का,
एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ बहती थीं !
एक ये दिन जब ज़हन में सारी अय्यारी की बातें हैं,
एक वो दिन जब दिल में भोली-भाली बातें रहती थीं !!

@ankitjnv

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