कांवड़ यात्रा और दिल्ली विवाद :

in #new6 years ago

कांवड़ यात्रा और दिल्ली विवाद :

लोगों के साथ दिक्कत ये है वो किसी भी मुद्दे को समझते बाद में हैं कमिट पहले कर जाते हैं...जबकि कायदा कहता है कि नए तथ्यों की आढ़ में विवेचना भी होनी चाहिए...याद है २ या ३ साल पहले दिल्ली मेट्रो में एक पुलिस वाले का नशे की हालात में वीडियो वायरल हुआ था..सबने उसकी लानत मलामत की..सिस्टम को दोष दिया..इस देश का कुछ नहीं हो सकता है कहा..अपनी जानुओं के साथ पिज़्ज़ा खाये और उसकी नौकरी से इस्तीफे की मांग के साथ उस मुद्दे को भूल गए..3 महीने बाद पता चला कि दरअसल उस पुलिसवाले को ऐसी बीमारी थी जिसमें वो अपनी मांसपेशियों से नियंत्रण खो देता था और बहुत हाई डोज की दवाइयों से उसका इलाज चल रहा था..लेकिन सच्चाई पता चलने पे अपनी गलती करेक्ट करने का साहस कितने लोग कर पाते हैं..वैसा ही उस केस में हुआ..

दूसरा केस याद आता है रोहतक सिस्टर्स का जिसमें वो एक वीडियो में बस में ३ लड़कों पे बेल्ट बरसाती नज़र आयीं..हमने भी उन्हें बहादुर बेटियां कहा..बाद में पता चला कि उन बहादुर बेटियों ने अपनी बदमाशी दिखाने के चक्कर में उन तीन लड़कों का अलावा पहले भी कई कॅरियर बर्बाद कर दिए थे..

तीसरा केस याद आता है जब केजरीवाल की पार्टी की एक कार्यकर्त्ता ने एक लड़के को लालबत्ती पे खड़े होने पे आधा अधूरा वीडियो ऐसा वायरल करवा दिया कि पूरे हिन्दुस्तान को उस लड़के में शक्ति कपूर और लड़की में तापसी पन्नू नज़र आने लगी..जब तक पूरी सच्चाई आयी कि असली शक्ति कपूर लड़की थी वो लड़का बेचारा अदालतों के चक्कर काट रहा था..आज भी काट रहा है..

चौथा केस याद आता है आपटार्डों का..जिनमें से बहुत से आज भी आपटार्ड सिर्फ इसलिए हैं क्यूंकि उनकी जंतर मंतर की टोपी वाली फोटो पे 161 लाइक आये थे जो सामान्यतः उनकी पोस्टों पे आने वाले २, ४ लाइक से कई गुना ज्यादा थे. तो अब वो कैसे मान लें कि उनसे गलती हो गयी थी.

वैसा ही केस ये कांवड़ वाला है..पहली बार में वीडियो देख के मुझे भी गुस्सा आया कि हे भगवान् ये कैसे लोग हैं जो एक सिविल से आदमी की कार पे झुण्ड में हमला कर रहे हैं..इनको जेल में फेंक देना चाहिए...फिर बाद में अन्य तथ्य सामने आये कि जो सिविल थे वो दरअसल विजय दीनानाथ के वंशज थे जिनमें इतनी हिम्मत है कि वो टक्कर भी मारें और थप्पड़ भी तो लगा कि गलती दोनों पक्षों की है..इसमें एकतरफा कावड़ियों को दोष नहीं दिया जा सकता.

लेकिन प्रॉबलम यही है...लोग अपने स्टैंड को अंगद का पैर समझने लगते हैं..कि अब इस से कदम नहीं डिगा सकते..जबकि नए तथ्यों की रौशनी में किसी भी मुद्दे को दोबारा से री-एनालाइज करना बेसिक कॉमन सेन्स है. और हम सब एक ही तरह की गलतियां बार बार कर रहे हैं.

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