मेरे विचार
जो गीता और वेद पुराण छोड़कर संविधान पढ़ना ज्यादा जरूरी समझते हैं वास्तव में वो जीवन और जीवन मूल्यों को कभी नहीं समझ सकते हमारे धार्मिक ग्रंथों में हमें वास्तविक जीवन जीने का स्वरुप सिखाते हैं यह मानव निर्मित लिखित नहीं जो अपने इच्छित सब सेट किया जाए संविधान मानव निर्मित लिखित है जिसने मानव जीवन में समस्याएं पैदा कर दी हैं जिसमें छोटी सी जिंदगी को लड़ते झगड़ते बर्बाद कर देने के सारे रास्ते दिए हैं अब तो संविधान में नये। नये विक्षिप्त मनुष्य को खुश करने के कानून भी बनाकर जोड़ दिए जा रहे हैं समलैंगिक विवाह लिविंग रिलेशन और न जाने क्या क्या जोड़ेंगे धर्म संस्कृति बर्बाद करने के लिए शिक्षा में धार्मिक संस्कार संस्कृति को अनिवार्य कर देना चाहिए तो फिर इस फितूर न्याय व्यवस्था में बैठे लोगों को करने का मौका ही नहीं मिलेगा बेकार के कायदे थोपे नहीं जाएंगे।
पारिवारिक सामाजिक व्यहवारिक धार्मिक संस्कार संस्कृति को बहुत नुकसानदायक हैं विक्षिप्त मनुष्य जिन्हें स्वच्छंदता चाहिए विक्षिप्त लोगों का सामाजिक वहिष्कार करें।
अभी कुछ दिनों पहले एक वयोवृद्ध स्टेज पर बैठे भाई बहन का अजीब प्यार दिखाने लगा था सार्वजनिक रूप से तो मान्यता प्राप्त पति पत्नी भी कभी ऐसा प्यार नहीं कर सकते शर्मशार कर दिया इस वृद्ध ने धर्म और रिश्ते को अभिव्यक्ति की आजादी लगेंगे गिनाने इनके चमचे भी जो एक बार तो हतप्रभ असहज महसूस कर रहे थे इसकी इस हरकत से।
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