संरक्षक

in #love6 years ago

नमस्कार दोस्तों,
भारत की मुगल शासन से पहले की ग्रामीण व्यवस्था को उजागर करने वाली मेरी इस तथ्यात्मक शब्दमाला को पढकर अपने विचार जरुर लिखियेगा।
ठाकुर साहब को अभी अभी समाचार मिला कि गांव के ही रामू मेहतर की घरवाली के प्रसव पीड़ा हैं, गांव की दाई से प्रसव हो नही पा रहा हैं। गांव के वैद्य नें भी किसी कुसल दाई को लाने के लिए बोला हैं। काफी समय हो गया हैं, जच्चा-बच्चा की जान खतरे में पड़ सकती है।
ठाकुर साहब को बहुत देर से समाचार पहुंचे, वे बाहर थे, कामदार को समाचार मिलते ही उन्होने घुड़सवार को भेज कर समाचार दिये।
ठाकुर साहब ने तुरन्त अपने संदेशे के साथ अपनी घोड़ा गाड़ी पास के गांव से दाई लाने के लिए भेज दी। पास के गांव के ठाकुर साहब ने तुरन्त अपने गांव की दो कुशल दाइयों को व वैद्य को रवाना किया। पूरा गांव चिंतित हो रहा था, समय पर प्रसव नही हुआ तो क्या होगा। शाम के छ: बज रहे थे, ठंड बढती जा रही थी, अभी तक गांव में एक भी चूल्हा नही जला था।
पास के गांव के दाई और वैद्य पहुंच चुके थे। दाई कुशल थी, उसने थोड़ी देर में प्रसव करवा दिया। लड़की हुई हैं, रामू को सभी नें बधाई दी, घर में लक्ष्मी आई हैं। ठाकुर साहब ने भी चैन की सांस ली। पडौस के गांव की दाई को व वैद्य को उचित इनाम देकर रवाना करना चाहा, पर दाई और वैद्य ने कुछ भी लेने से साफ मना कर दिया। उन्होने स्पष्ट कहा, वो प्रसव करवाने के बदले कभी भी कुछ नही लेते। वैसे भी उनकी आजीविका इस पेशे पर निर्भर नही हैं। वो अपना कमा कर खाते हैं। इस काम को वो सिर्फ सेवा भावना से करते हैं। भगवान ने समझ और हुनर दिया हैं, तो इसका उपयोग जन सेवा के लिए होना चाहिए।
ठाकुर साहब भी जानते थे, कि हमारे यहाँ किसी भी गांव की दाई, प्रसव करवाने के बदले कुछ भी नही लेती। इस प्रकार के मामलो में वैद्य भी कुछ नही लेते।
रामू मेहतर के भी जान में जान आई। किसी भी औरत के लिए माँ बनना सौभाग्य की बात हैं, पर सफल प्रसव उसका दुसरा जन्म हैं। वैसे भी रामू का गुजारा गांव में साफ सफाई रखने के बदले मिलने वाले अनाज व अन्य सामन से ही चलता था। हालांकी समाज में उसको हेय दृष्टी से नही देखा जाता था, गांव को उसकी आवश्यकता थी, गांव उसकी आवश्यकता था। पर पूरे गांव को उसकी इतनी चिंता हैं, ये आज समझ में आया। गांव के सभी लोग कितने चिंतित थे उसके लिए। वो एक मेहतर हैं, फिर भी गांव की सभी महिलाएं कितनी तत्पर थी उसकी पत्नी के प्रत्येक काम के लिए। आज ठाकुर साहब यदि दाई का इन्तजाम नही करते, तो वो क्या कर पाता। ये ही तो हमारे संरक्षक हैं, जो सभी के लिए हर समय तत्पर रहते है।
गांव के किसी भी एक घर में भी कोई तकलीफ हैं, तो जबतक उसका समाधन हो कर वो परिवार भोजन नही कर ले, तब तक ठाकुर साहब भोजन नही करेंगें।गांव का अनाज और अन्य उत्पादन इनकी बदौलत ही तो बिक पाते हैं। आवश्यकता का पूरा सामान बालद वालों से ये ही इन्तजाम करवाते हैं। वैसे गांव मे किसी को पैसे की आवश्यकता ही नही हैं, एक दुसरे की आवश्यकताएं सामान के आदान प्रदान से ही पूरी हो जाती हैं। आज रामू को ही नही, पूरे गांव को अपने संरक्षक पर नाज हैं।

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