Osho Thoughts

in #life6 years ago

**********स्त्रियाँ पुरुष के लिए आकर्षक क्यों बनना चाहती हैं जबकि वे पुरुषों की कामुकता जरा भी पसन्द नहीं करतीं?* *********

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ओशो - इसके पीछे राजनीति है। स्त्रियाँ आकर्षक दिखना चाहती हैं क्योंकि उसमें उन्हें ताकत मालूम होती है। वे जितनी आकर्षक होंगी उतनी पुरुष के आगे ताकतवर सिद्ध होंगी। और कौन ताकतवर बनना नहीं चाहता? सारी जिन्दगी लोग ताकतवर बनने के लिए संघर्ष करते हैं।

तुम धन क्यों चाहते हो? उससे ताकत आती है। तुम देश के प्रधान मन्त्री या राष्ट्रपति क्यों बनना चाहते हो? उससे ताकत मिलेगी। तुम महात्मा क्यों बनना चाहते हो? उससे ताकत मालूम होगी।

लोग अलग-अलग उपायों से ताकतवर बनना चाहते हैं। तुम ने स्त्रियों के पास, ताकतवर बनने का और कोई उपाय ही नहीं छोडा़ है। उनके पास एक ही रास्ता है - उनके शरीर। इसलिए वे निरन्तर अपना आकर्षण बढा़ने की फिक्र में होती हैं।

क्या तुमने एक बात देखी है कि आधुनिक स्त्री आकर्षक दिखने की फिक्र नहीं करती, क्यों? क्यों कि वह और तरह की सत्ता - राजनीति में उलझ रही है। आधुनिक स्त्री पुराने बन्धनों से बाहर आ रही है। वह विश्वविद्यालयों में पुरुष से टक्कर देकर डिग्री प्राप्त करती है। वह बाजार में, व्यवसाय में, राजनीति में पुरुष के साथ संघर्ष करती है। उसे आकर्षक दिखने की बहुत फिक्र करने की जरूरत नहीं है।

पुरुष ने कभी आकर्षक दिखने की फिक्र नहीं की। क्यों? उनके पास ताकत जताने के इतने तरीके थे कि शरीर को सजाना थोडा़ स्त्रैण मालूम पड़ता। साज-श्रृंगार स्त्रियों का ढंग है।

यह स्थिति सदा से ऐसी नहीं थी । अतीत में एक समय था जब स्त्रियाँ उतनी ही स्वतन्त्र थी जितने कि पुरुष। तब पुरुष भी स्त्रियों की भाँति आकर्षक बनने की चेष्टा करते थे। कृष्ण को देखो, खूबसूरत रेशमी वस्त्र, सब तरह के आभूषण, मोर मुकुट, बाँसुरी! उनके चित्र देखो, वे इतने आकर्षक लगते हैं। वे दिन थे जब स्त्री और पुरुष दोनों ही जो मौज हो, वैसा करने के लिए स्वतन्त्र थे।

उसके बाद एक लम्बा अंधकारमय युग आया जब स्त्रियाँ दमित हुई। इसके लिए पुरोहित और तथाकथित साधु-सन्त जिम्मेवार हैं। तुम्हारे सन्त सदा स्त्रियों से डरते रहे हैं। उन्हें स्त्री इतनी ताकतवर मालूम पड़ती है कि वे सन्तों का सन्तत्व मिनटों में नष्ट कर सकती हैं। तुम्हारे सन्तों की वजह से स्त्रियाँ निन्दित हुईं। वे स्त्रियों से भयभीत थे इसलिए स्त्रियों को दबा दो। जीवन में उतरने के, प्रवाहित होने के उनके सारे उपाय छिन गए। फिर एक ही चीज शेष रह गई: उनके शरीर।

और ताकतवर बनना कौन नहीं चाहता? बशर्ते कि तुम समझो कि ताकत दु:ख लाती है, ताकत हिंसक और आक्रामक होती है। यदि समझ पैदा होकर तुम्हारी ताकत की लालसा विलीन हो जाती है तो ही तुम उसे छोड़ सकते हो अन्यथा सभी ताकत चाहते हैं।

स्त्री की ताकत इसी में है कि वह तुम्हारे सामने गाजर की तरह झूलती रहे। कभी मिलती नहीं, हमेशा उपलब्ध रहती है -- इतनी पास लेकिन कितनी दूर। यही उसकी ताकत है। यदि वह फौरन तुम्हारी गिरफ्त में आ जाती है तो उसकी ताकत चली गई। और एक बार तुमने उसके शरीर को भोग लिया, उसका उपयोग कर लिया तो बात खतम हो गई। फिर उसकी तुम्हारे ऊपर कोई ताकत नहीं होती। इसलिए वह आकर्षित करती है और अलग खडी़ होती है। वह तुम्हें उकसाती है, उत्तेजित करती है और जब तुम पास आते हो तो इनकार करती है।

अब यह सीधा-सादा तर्क है। यदि वह हाँ करती है तो तुम उसे एक यन्त्र बना देते हो, उसका उपयोग करते हो। और कोई नहीं चाहता कि उनका उपयोग हो। यह उसी सत्ता - राजनीति का दूसरा हिस्सा है। सत्ता का मतलब है दूसरे का उपयोग करने की क्षमता। और जब कोई तुम्हारा उपयोग करता है तब तुम्हारी ताकत खो जाती है।

तो कोई स्त्री भोग्य वस्तु होना नहीं चाहती। और तुम सदियों से उसके साथ यह करते आए हो। प्रेम एक कुरूप बात हो गई है। प्रेम तो परम गरिमा होना चाहिए लेकिन वह है नहीं। क्यों कि पुरुष स्त्री का उपयोग करता आया है और स्त्री इस बात को नापसन्द करती है, इसका विरोध करती है स्वभावतः वह एक वस्तु बनना नहीं चाहती।

इसलिए तुम देखोगे कि पति पत्नियों के आगे पूँछ हिला रहे हैं, और पत्नियाँ इस मुद्रा में घूम रही हैं कि वे इस सबसे ऊपर हैं -- होलियर दैन दाऊ, पाक, पवित्र। स्त्रियाँ दिखावा करती रहती हैं कि उन्हें सेक्स में, घृणित सेक्स में जरा भी रस नहीं है। वस्तुतः उन्हें भी उतना ही रस है जितना कि पुरुष को लेकिन मुश्किल यह है कि वे अपना रस प्रकट नहीं कर सकतीं अन्यथा तुम तत्क्षण उनकी सारी ताकत खींच लोगे और उनका उपयोग करने लगोगे।

तो स्त्रियाँ बाकी बातों में रस लेती हैं। वे आकर्षक बनेंगी और फिर तुम्हें इनकार कर देंगी। यही ताकत का आनन्द है - तुम्हें खींचना, और तुम इस तरह खिंचे चले आते हो जैसे कच्चे धागे से बँधे हो; और फिर तुम्हें 'ना' कहना। तुम्हें एकदम ताकत-विहीन बना देना। तुम कुत्ते की तरह दुम हिलाते हो और स्त्री अपनी ताकत का आनन्द लेती है। यह पूरा मामला बडा़ ही कुरूप है। इस में प्रेम सत्ता की राजनीति बनकर रह गया है। इसे बदलना होगा।

हमें नई मनुष्यता और नया संसार निर्मित करना है जिस में प्रेम सत्ता का बिषय बिलकुल नहीं होगा। कम से कम प्रेम को तो इस राजनीति से बाहर करो। वहाँ धन रहने दो, राजनीति रहने दो, सब कुछ रहने दो लेकिन प्रेम को वहाँ से बाहर निकाल लो। प्रेम बहुमूल्य चीज है, उसे बाजार का हिस्सा मत बनाओ। लेकिन वही हुआ है।

स्त्री हर प्रकार से सुन्दर बनने की चेष्टा करती है, कम से कम सुन्दर दिखने की चेष्टा तो करती ही है। एक बार तुम उसके जाल में फँस गए तो वह तुमसे बचने लगेगी। सारा खेल यही है। अगर तुम उससे दूर भागने लगे तो वह तुम्हारे पास आएगी। वह तुम्हारा पीछा करेगी। जैसे ही तुम उसके पीछे जाओगे, वह दूर भागेगी। सारा खेल यही है। यह प्रेम नहीं है, यह अमानवीय है। लेकिन यही होता है और युग-युग से यही होता रहा है। इससे सावधान रहना।

कम से कम मेरे कम्यून में तो ऐसा नहीं होना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति की असीम गरिमा है, और कोई भी व्यक्ति वस्तु बन कर नहीं रहेगा। पुरुष का सम्मान करो, स्त्री का सम्मान करो। वे सभी दिव्य हैं।

सुन्दर होना अच्छा है, सुन्दर दिखना कुरूप है। आकर्षक होना अच्छा है लेकिन आकर्षक होने का दिखावा करना असुन्दर है। यह बनावटीपन चालाकी है। और लोग स्वाभाविक रूप से सुन्दर हैं, किसी मेक अप की जरूरत नहीं है। सब मेक अप कुरूप होते हैं। वे तुम्हें कुरूप बनाते हैं। सादगी में, निश्छलता में सुन्दरता है।

स्वाभाविक होना, सहज होना सुन्दर बनाता है। और जब तुम सुन्दर हो जाओ तो उसका सत्ता की राजनीति के लिए उपयोग मत करना। वह पाप है, अपवित्र है ।

सौन्दर्य परमात्मा की देन है। उसे बाँटो लेकिन किसी तरह अधिकार जताने के लिए, दूसरे को वश करने के लिए उसका उपयोग मत करो। *तब तुम्हारा प्रेम प्रार्थना बनेगा और तुम्हारा सौन्दर्य परमात्मा के लिए भोग बनेगा

   💐💐💐💐ओशो💐💐💐💐💐

           *****"फिलोसोफिया पेरेनिस",*****
      

                 *भाग 2,  प्रवचन   # 04#

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