हमारा परम धर्म : दान ---- (भाग – ३)

in #life6 years ago

हमारा परम धर्म : दान ---- (भाग – ३)

हमीर के हठ को कौन नहीं जानता? दिल्ली के शक्तिशाली बादशाह औरंगजेब के कोप से बचने के लिए जब उसका एक मुसलमान सम्बन्धी भागते-भागते रणथम्भौर के गढ़ में राजा हमीर की शरण में आया तब हमीर ने क्षण मात्र के लिए भी यह विचार नहीं किया कि सारे भारत के बादशाह, अत्यंत क्रूर मानव, औरंगजेब की विशाल वाहिनियों के सामने वह उस शरणागत की रक्षा कहां तक कर पाएगा ? उसने तो एक ही विचार किया – मेरा धर्म है शरणागत को अभयदान देना । उसने वह दान दिया । बाद में जो घटनाएं घटित हुई उसके परिणामस्वरूप हमीर को अपना शीश स्वयं काटकर चढ़ा देना पड़ा किन्तु उसने अभयदान तो दिया ही । ऐसे श्रेष्ठ अभयदान के समक्ष एक जीवन का क्या महत्त्व ? इसी परमदान के पुण्य स्मरण में आज इतिहास उच्च स्वर से उस महादानी का यशोगान करता है ।

तिरिया तेल हमीर हठ चढ़े न दूजी बार ... ।
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भगवान महावीर के पट्टधर शिष्य सुधर्मा स्वामी ने कहा है कि –

“दाणण – सेटठ अभयप्प दाणं ।”

सब दानों में अभयदान श्रेष्ठ है ।

हम यदि भूखे को भोजन-दान देते है, उसका एक दिन का जीवन निर्वाह हो जाता है । किसी नंगे को यदि हम वस्त्र-दान देते हैं, उसका कुछ दिन या कुछ महीने के लिए शीत-धाम से बचाव हो जाता है । निश्चय ही यह बड़े पुण्य का कार्य है । इसी प्रकार हम किसी को विद्या-दान देते हैं तो उसका जीवन निर्माण हो जाता है । ये सभी दान श्रेष्ठ हैं । किन्तु इनमें अभयदान तो दान-माला की मणि के समान ही है । अभयदान प्राप्त प्राणी की जीवन-रक्षा होती है । इसीलिए अभयदान को जैनधर्म का प्राण ही कहा गया है । आचार्य अमितगति ने उपासकाचार में फरमाया है – “अभयदान पाकर प्राणी को जो सुख प्राप्त होता है वह सुख संसार में वर्तमान में कोई दूसरा न हुआ है, न है, न होगा ।”

एक दयामान मानव जो कि समस्त प्राणियों पर दया का यह अमृतदान बरसाया करता है, वह भगवान का ही रूप बन जाया करता है । भगवान महावीर ने अपने जीवनकाल में न किसी प्राणी को कभी कोई कष्ट दिया, न दिलवाया । यही नहीं, उस समय यज्ञ आदि में अनगिन मूक, निरीह, निर्दोष प्राणियों की जो बलि चढाई जाती थी, उसे रोकने के लिए, उन प्राणियों की प्राण-रक्षा करने के लिए, उन्होंने भव्य पुरुषार्थ किया । भारत में अश्वमेघ आदि हिंसाकारी यज्ञों को निर्मुंल करने में भगवान महावीर का अभयदान-सम्बन्धी भव्य, महान प्रयत्न ही मूल आधार था ।

अत: प्रत्येक व्यक्ति का यह प्रथम परम कर्तव्य एवं धर्म है कि वह मरते हुए प्राणियों की रक्षा करे । भूख और प्यास से मरते हुए मूक प्राणियों की सहायता अन्न व जल से करे । गौशाला आदि स्थापित करने में अपने धन एवं शक्ति का पूरा-पूरा उपयोग कर तथा जीव दया के कार्य में आगे-से-आगे बढ़े ।

आज का युग कितना विषम हो गया है । सर्वत्र सारे विश्व में पुन: हिंसा का वातावरण बनता चला जा रहा है । इस दूषित होते चले जा रहे पापमय वातावरण को हम लोग ही यदि नहीं सुधारेगे तो फिर कौन सुधारेगा ? जो भी भाई जहाँ भी है , जिस स्थिति में भी है, उसका पुनीत कर्तव्य हो जाता है कि वह सर्वत्र अहिंसा एवं करुणा के वातावरण को बनाने में सहयोग दे, प्रयत्न करे । यदि हमारे प्रयत्न से किसी भी दु:खी प्राणी का तनिक भी दुःख दूर हुआ, उसकी रक्षा हुई तो विचार कीजिए कि उसे कितना हर्ष होगा ? कितना सुख मिलेगा । उसके सुख में हम भागीदार होंगे, हमें परम पुण्य लाभ मिलेगा । हमारे मन को अकथनीय शान्ति प्राप्त होगी ।

इससे आगे की दान की बात अगली पोस्ट में करेंगे ।

पिछली दो पोस्टों का जुड़ाव है https://busy.org/@mehta/pnmud
https://busy.org/@mehta/7q2yrt

Steeming परम धर्म : दान

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वर्तमान विश्व में हिंसा लगातार बढ़ रही है। अहिंसा की इस दुनिया को बहुत जरूरत है।

It is really good to see that someone write a post on this languages...
And not just that also motivate the others with the post..
And also give the regional knowledge...
Hey Dear @mehta am i Know from where you this type of beautiful ideas..
It's Really a Great through.

Raja Hameer ki kahaniya maine pahle kabhi nhi suni thi.
Ye hai Bharat ka Gaurav ki apna pran Chala Jaye par sharan me aaye huye ko bachana hai. @mehta Bhai aap need ye Jo series shuru Kiya hai.
Yu hi continue rakhen..

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Hame apne jeevan me hamesha Daan jaise acche karya ko karte rahna chahiye.bina daan ke hamare jeevan ka koi mahatya nii hai. Agar jeevan me daan hai to santusti hai.

bahut acha gyan pradan kiya apne satya ahinsa ke marg par chalte huy kamay gay dhan se dsansh dan karna punya h. kintu ajkal avaidh karobar kar log dhan kamate h aur uska dan karte h jo ki galat h khud to pap ke bhagidar h hi wahi dusro ko dekar bhagidar banate h. to sabse yahi kamna h sahi rah chal kar dhan kamay aur dan ka sahi labh le evam jiwan ko sukhad banay. pls support me upvote me

@mehta thanks for sharing such wonderful post.It really teaches us very important lessons in our life which will be very beneficial if we implement in our life .सच में हमारा परम धर्म दान ही होना चाइये

ज्यादा पुण्य करने के लिए ज्यादा धन चाहना गलती है । कीचड़ लगा कर धोने की अपेक्षा कीचड़ न लगाना ही बढ़िया है । दान-- पुण्य करना एक टैक्स है, जो धनी लोगों पर ही लागू होता है । टैक्स देने के लिए धन कौन चाहता है ?

सबके सुखकी इच्छा बहुत बड़ा दान है । निर्धनता धन आने से नहीं मिटती, प्रत्युत धनकी इच्छा छोड़ने से मिटती हैं । सेवासे जड़ता मिटती है और चिन्मयता आती है ।
संसार की जितनी जानकारी ( साक्षरता ) बढ़ेगी, उतने राग-द्वेष, अशान्ति संघर्ष बढेंगे । संसार की जानकारी काम की नहीं है । उससे ज्यादा आफत होगी । भगवान की जानकारी बढ़ेगी तो शान्ति होगी ।

Again knowledgeable post, Arvind sir, you are playing leading role on steemit platform for Indian steemain your work motivate all-new Indian steemain. please share some helpful tips so we can grow with you.

Bro post padhke desi vaali feeling aa gai...
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