क्षत्रिय ~ पृथ्वीराज चौहान- भाग~2 EMPEROR PRUTHVIRAJ CHOUHAN
Based on Bharateshwar emperor Prithviraj Chauhan, these information is available from the available texts and from Google. The above information is not copy and paste.
Famous by many names like Bharateshwar, Hindu emperor, Prithviraj Third, Rai Pithora, Pradipalakshwar, Last Hindu Emperor etc., these emperors remained almost the ruler of North India in the second half of the 12th century. After this, such a great empire could not be any Hindu ruler in India.
In Vikram Samvat 1235, at the short life of 15 years, on the throne of Ajmer, Prithviraj established his empire in almost all north India in Digvijay campaign. Defeated Muhammad Ghauri in several wars. But Prithviraj had to face defeat in the final battle, and from here he end his life.
In many texts their queens get different descriptions, but Chandrabardai's Prithviraj Raso describes them as thirteen queens, in which the description of the last and their particular queen Sanyogita is available in every available scripture.
His first wife, Dahiya Kshatriya ruler of Jangloo state, is with Princess Ajaia.
The second wife of Prithviraj, Padmavati, daughter of Yaduvanshi ruler Vijaypal of Seasheikh region, is mentioned in Prithviraj Raso. It is different in other accounts, in which Padmavati has been described as Pallah, the daughter of Parmar Vasiishi. It is also mentioned in an inscription found in Pokhran.
Prithviraj's third marriage is found in Prithviraj Raso from Chandrapundir Pradesh's princess Chandravati.
Prithviraj Raso, the ruler of Kannauj, Jaychand gets a description of Prithviraj being related. They had a stubborn hostility among themselves. The incident of the defeat of Jayachand's daughter Sanyogita is one of the important events in history. Emperor Prithviraj was a very powerful and famous ruler of that time. Jaychand used to have a lot of jealousy, but his daughter Sanyogita was in love with Prithviraj and wanted to marry him. But Jaychand was not ready for it. If Jaychand used to accept Sanyogita at that time, then the history of India would have been different today, but this has not happened.
Jaychand made preparations for the sacrifice of Ashwamegh, which was the plan to selflessness at the time of fatality. Ashwamegh Yagya could have been ruled by the same ruler, until the entire ruler of the horse was allowed to accept his submission, while Jaychand was only the ruler of Kannauj. He wanted to sacrifice Ashwamegh to establish self-determination, Prithviraj opposed it. Jayachand did not send an invite to Prithviraj and made Prithviraj's statue and placed it at the place of the gatekeeper.
When Prithviraj came to know about this, he went to Kannauj and took away the kidnap Sanyogita. Along also, Jayachand and Gauri were also badly beaten. However many warriors of Prithviraj in this war martyr.
After this, Prithviraj had to make many wars, we will all know in the next post. Let us know about your thoughts on this series based on Emperor Prithviraj.
भारतेश्वर, हिन्दू सम्राट, पृथ्वीराज तृतीय, राय पिथोरा, सपादलक्षेवर, अंतिम हिन्दू सम्राट आदि अनेक नामो से विख्यात ये सम्राट 12वी सदी के उत्तरार्ध में लगभग समूचे उत्तर भारत के शासक रहे। इनके पश्चात इतना बड़ा सम्राज्य किसी भी हिन्दू शासक का भारत मे नही रहा।
विक्रम संवत 1235 में 15 वर्ष की अल्पायु में अजमेर के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुए पृथ्वीराज नें दिग्विजय अभियान में लगभग समूचे उत्तर भारत पर अपना साम्राज्य स्थापित किया। मुहमद गौरी को अनेक युद्धो में परास्त किया। लेकिन अंतिम युद्ध मे पृथ्वीराज को पराजय का मुंह देखना पड़ा और यहीं से इनके काल का अंत हो गया।
अनेक ग्रंथो में इनके रानियों का अलग अलग वर्णन मिलता हैं, किन्तु चन्दबरदाई के पृथ्वीराज रासो में इनकी तेरह रानियों का वर्णन हैं, जसमे अंतिम व इनकी खास रानी संयोगिता का वर्णन प्रत्येक उपलब्ध ग्रंथो में हैं।
इनकी प्रथम पत्नी जांगलू प्रदेश के दहिया क्षत्रिय शासको की राजकुमारी अजिया के साथ हुआ।
पृथ्वीराज की दूसरी पत्नी समुद्रसिख प्रदेश के यदुवंसी शासक विजयपाल की पुत्री पद्मावती का उल्लेख पृथ्वीराज रासो में मिलता हैं। अन्य साक्ष्यो में इसका उल्लेख अलग हैं, जिसमे पद्मावती को पाल्हण नामक परमार वंशी की पुत्री बताया गया हैं। इसका उल्लेख पोखरण में मिले एक शिलालेख से भी प्राप्त होता हैं।
पृथ्वीराज का तीसरा विवाह चन्द्रपुण्डीर प्रदेश की राजकुमारी चन्द्रावती से होने का विवरण पृथ्वीराज रासो में मिलता हैं।
पृथ्वीराज रासो में कन्नौज के शासक जयचन्द को पृथ्वीराज का रिश्तेदार होने का वर्णन मिलता हैं। इनकी आपस मे कट्टर दुश्मनी थी। जयचन्द की पुत्री संयोगिता के हरण की घटना इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओ में से एक हैं। सम्राट पृथ्वीराज उस समय का बहुत शक्तिशाली और प्रसिद्ध शासक थे। जयचन्द उनसे बहुत ईर्ष्या भाव रखते थे, किन्तु उसकी पुत्री संयोगिता मन ही मन पृथ्वीराज से प्रेम करती थी और उनके साथ विवाह की इच्छुक थी। पर जयचन्द इसके लिए तैयार नही थे। उस समय जयचन्द संयोगिता की बात मान लेता तो आज भारत का इतिहास कुछ अलग ही होता, पर ऐसा हुआ नही।
जयचन्द ने अश्वमेघ यज्ञ करने की तैयारी की, जिसके पर्णाहूति के समय संयोगिता के स्वयंवर की योजना थी। अश्वमेघ यज्ञ वही शासक कर सकता था, जिसके अश्व के चले जाने तक के सम्पूर्ण शासक उसकी अधीनता स्वीकार कर ले, जबकि जयचन्द तो मात्र कन्नौज का शासक था। उसने स्वप्रतिष्ठा स्थापित करने के लिए अश्वमेघ यज्ञ करना चाहा, पृथ्वीराज ने इसका विरोध किया। जयचन्द ने पृथ्वीराज को निमंत्रण ही नही भेजा और पृथ्वीराज की मूर्ति बनाकर द्वारपाल के स्थान पर लगा दी।
पृथ्वीराज को जब ये सब ज्ञात हुआ तो वो कन्नौज गए और संयोगिता का हरण कर लाये। साथ ही जयचन्द और गौरी को भी बुरी तरह हरा आये। हालांकि इस युद्ध मे पृथ्वीराज के बहुत से योद्धा युद्ध मे काम आ गए।
इसके पश्चात पृथ्वीराज को अनेक युद्ध करने पड़े, इन सबको हम अगली पोस्ट में जानेंगे। सम्राट पृथ्वीराज पर आधारित इस श्रंखला पर अपने विचारों से हमे अवगत कराएं।
Yours ~ indianculture1
Posted using Partiko Android
Woww Really good ... @indianculture1!
Thanks and wel come @zindiqqiu .
Posted using Partiko Android