न्यूज़ चैनलो का अर्ध सत्य।
जैसे हर मनुष्य का अपना सत्य होता है, वैसे ही चैंनलों के भी अपने-अपने सत्य होते हैं। आजकल चैंनल समाचारो के काम कम आते हैं, वे अखाड़ो में तब्दील ज्यादा हो चुके हैं। जहां दो विरोधी पहलवानो को तीतर-बटेर की तरह लड़ाया जाता है। बीच-बीच में एंकर उनको चुग्गी डालते रहते हैं। कभी-कभी हालात हाथापाई तक आ पहुचती है।
यह किसी भी चैंनल के लिए आदर्श स्तिथि कहलाती है। जिससे टीआरपी बढ़ती है। कार्यक्रम प्रस्तोता का मार्किट उछाल मारता है। चैंनल वैसे तो स्वयं को स्वतंत्र कहते हैं, लेकिन कुछ चैंनल सदा भक्ति भाव की मुद्रा में रहते हैं,तो कुछ सदा विद्रोही मुद्रा में। कुछ संतुलित साधने की कला माहिर होते है, वे यदि एक खबर सरकार के विरुद्ध दिखाते है, तो पश्चताप स्वरुप तुरंत दूसरी खबर सरकार के पक्ष में दिखा देते हैं।
इससे उनको दूरगामी फायदे भी होते हैं और पापों का पक्षालन भी हो जाता है। चैंनलों का सत्य सर्वथा अलहदा होते हैं। हर एक के आराध्य देव होते हैं। चेंनल उनकी छत्रछाया में ही पनपते हैं। उनके काले कारनामो पर पर्दा डालना, उनकी महत्वकांक्षा को पंख लगाना ही इन माध्यमो का परम गुप्त उद्देश्य है।
प्रायः हर चैंनल के पीछे किसी सफल उद्धोगपति का हाथ होता है। ये चैंनल जनता के हितों की आड़ में अपने मालिको के लिए समर्पण भाव से काम करते हैं। कई बार इनको देखने से अहसास ही नहीं हो पाता की सच क्या है और झूट क्या ? जिसे एक घोटाला बता रहा होता है, दूसरा उसे विकास का नाम दे रहा होता है। एक बता रहा होता है की सड़कों पर गड्ढे हैं और पानी भर जाता है, तो दूसरा उसी समय स्वछता के लिए उस शहर के नाम की चर्चा कर रहा होता है।
पूरा सत्य कभी भी उसके सामने नहीं आ पाता। वह अर्ध सत्य के सहारे ही काम चलाता है। हर लोकप्रिय चैंनल के मालिक की अंतिम ख्वाइश होती है, राज्यसभा या लोकसभा तक पहुचना। चैंनल चलाने का यह अंतिम फलागम है। क्राइम खबरों का प्रस्तोता स्वयं किसी पुराने क्रिमनल से कम नहीं लगता। उसकी डरावनी आवाज़ को टेप करके बच्चो को रात में जल्दी सुलाने के लिए किया है।
हमारे सामाजिक और सांस्कृतिक विकास में इस चैंनलों का भारी योगदान है। अश्लीलता से लेकर आध्यत्म तक।योग से लेकर भोग तक। समाचार से लेकर अफवाह तक और सनसनी से लेकर ओपिनियन पोल तक वे सब कुछ एक कुशल रेस्तरां की तरह परोस रहे हैं। अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप उससे हज़मा खराब करते हैं या पेट भरने का काम चलाते हैं । आप उसे नारद वाणी का मॉर्डन वर्ज़न मानते हैं या खालिस मनोरंजन का साधन।
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@iamindian