RE: असत्य पैदा करता है अविश्वास (अंतिम भाग #४) | False Unbelief (Final Part # 4)
झूठ और सच की प्रकृति को अगर समझने निकले तो समय लंबा ही बीत जाएगा। और फिर भी कुछ न कुछ शेष रह जाएगा। झूठ और सच का मतलब और उसका परिणाम हर इंसान के लिए अलग - अलग होता है।
कई बार झूठ फायदे का सौदा भी साबित होता है और कई बार तो झूठ मात्र ही रह जाता है। और कई बार सच बड़ा नुकसान भी करा देता है। हम इंसानों की प्रकृति और मनोदशा ही कुछ ऐसी होती है कि हम हमेशा फायदा ही देखते हैं। लेकिन सच सिर्फ सच मात्र ही नहीं है , सच तो एक प्रतिज्ञा है और सच रूपी प्रतिज्ञा के रास्ते पर चलने में दुखी भी होना पड़ेगा , यातनाएं भी सहनी पड़ेंगी , दर्द भी सहना पड़ेगा , रिश्तों के खोने का भी डर होगा और न जाने क्या - क्या सहना होगा। लेकिन इंसान की फायदे वाली और तुरंत प्राप्ति की जो प्रकृति है उसमें जीत कहीं न कहीं झूठ की ही होती है।
न तो इंसान को कोई झूठ बोलने से रोक सकता है और न ही कोई सच बोलने से। लेकिन इंसान को अपना विवेक नहीं खोना चाहिए , उसे हमेशा अपने विवेक से सही रास्ते का चयन करना चाहिए। जो ठीक लगे वो करना ही चाहिए , क्यूंकि इसी का नाम जीवन है... जब आप जीवन में अपनी मर्जी का कुछ करते हैं , आप वो करते हैं जो आपको अच्छा लगता है , और जिसमे आपको ख़ुशी मिलती है। और जरा नज़र उठा के देख लो इस दुनिया में प्रत्येक इंसान प्रत्येक काम सिर्फ और सिर्फ ख़ुशी और सुख के लिए ही कर रहा है।
लेकिन यहाँ पे एक बात जरूर कहना चाहूंगा... कि जीवन में कुछ भी करो , मनमर्जी का करो लेकिन गलत - और पाप का दामन कभी मत थामना।
@deepakmangal आपका कहना एकदम सही है । हमें अपना विवेक नहीं खोना चाहिए, जो सही लगे वही करना चाहिए परन्तु गलत और पाप का काम कभी भी नहीं करना चाहिए।
झूठ और सच तो हमारी सोच पर निर्भर है । इसलिए जिस में भी सभी का हित और मंगल हो, वाही कार्य करना चाहिए ।