सुप्रभात GOOD MORNING
नमस्कार दोस्तों,
आपका दिन शुभ व मंगलमयी हो।
आजकल हम ये देख रहे हैं, कि मानवता और इंसानियत शब्द मात्र रह गये हैं। आनेवाली पीढी को अब संस्कारित घर के बड़े बुजुर्ग नही कर रहे हैं, बल्कि इंटरनेट, मोबाइल और टेलिविजन जैसे उपकरण कर रहे हैं। क्योंकि बहुत कम घरों में बच्चो को अपने दादा-दादी, ताऊ-ताई के साथ रहने का मौका मिलता हैं। यहाँ तक कि व्यस्तता के चलते माँ और पिताजी भी बच्चो को पूरा समय नही दे पाते। इस प्रकार के हालातों में आनेवाली पीढ़ी में संस्कार कहां से आएंगे। उन्होने तो जब से होश संभाला है, टीवी पर और उप्लब्ध उपकरणो पर मारधाड देखी हैं। मरते और मारते हुए देखा हैं। फेसबुक पर दुर्घटना में घायल व्यक्ति का फोटो या वीडियो, जो उसके फेसबुक फ्रेंड्स ने पोस्ट किया हुआ हैं, को देखा हैं।
अब इन हालातों में पली बढी पीढी से दुर्घटना में घायल या अन्य किसी विशेष परिस्थिती में जरुरतमंद की सहायता की उम्मीद करना औचित्यहीन हैं।
दोष उनका नही हैं। हमें अपने बड़े बुजुर्गों से ये सीख मिली हैं, कि जरुरतमंद की सहायता करनी चाहिए, इसलिये हमारे लिए सहायता करना ठीक हैं। इस पीढी को उपकरणो से ये सीख मिली हैं, कि वीडियो बनानी या फोटो खींच कर पोस्ट करनी चाहिए, तो उनके लिए वो ठीक हैं, इसलिये वो ऐसा कर रहे हैं।
आजकल के मातपिता अपने बच्चो को ऐसे पाल रहे हैं, जैसे हम सोने के पिंजरे में तोते को पालते हैं। उसको सभी प्रकार की सुविधायें उप्लब्ध करवा देते हैं। रटना उनको अन्ग्रेजी माध्यम के स्कूल सीखा देते हैं। जीवन की वास्तविक कठिनाईयों का अनुभव उन्हे हो ही नही पाता हैं। और वो ही बालक आगे जाकर किसी प्रशासनिक पद पर पहुंच गया, समझो किसी कोढ वाले को खुजली की बिमारी लग गयी। क्योंकि जीवन की वास्तविक परिस्थितियों के अनुभव के अभाव में लिए जाने वाले निर्णय वास्तविक धरातल पर सिर्फ तुगलकी फरमान ही होंगे।
मेरा निवेदन ये हैं, की बालको को सभी सुविधायें उप्लब्ध करवाये, पर साथ ही उनको समाज के बड़े बुजुर्गो के साथ समय बिताने की परिस्थितियां भी बनाये। उनको वास्तविक जीवन में आनेवाली परिस्थितियों से दो-चार होने दें। किन हालातों में क्या करना चाहिए, ये सिखायें। इससे न सिर्फ आपका बच्चा और परिवार सुधरेगा बल्कि देश और समाज की सोच बदलेगी।
उक्त पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया से मुझे अवगत करायें।
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