जीव की गति ~ 2
प्रश्न ~ जो मनुष्य पूजा पाठ, मन्त्र-नाम जप, प्रभु सेवा में लगे रहते हैं, क्या उनका सभी का मोक्ष हो जाता हैं ?
उत्तर ~ गीता के चौथे पाठ के सत्रहवें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण ने फरमाया हैं, कि 'गहना कर्मणो गति:'
अर्थात कर्मो की गति बहुत गहन हैं, बड़े बड़े विद्वान भी कर्म गति को पहचानने में भूल कर जाते हैं।
जो मनुष्य सदा पूजा- आराधना में लगे रहते हैं, भजन कीर्तन करते हैं, उस जीव की गति का निर्धारण इस बात पर निर्भर करता हैं, कि वो जीव ये सब जीवन यापन के लिए दिखावे स्वरूप कर रहा हैं, अथवा वास्तव में उसका मन प्रभु भजन में लगा हुआ हैं, और वो अपने कल्याण के लिए ये सब कर रहा हैं।
आजकल धर्मस्थलों पर देखा जाता हैं कि वहाँ के सेवक पूजक का प्रभु से वास्तविक लगाव नही होता, उनका प्रभु प्रेम व्यवसायिक होता हैं। वो उन भक्तो को ज्यादा तजरिह देते हैं, जो चढ़ावे में ज्यादा धन-सामग्री देते हैं। उन भक्तो में यदि कोई साधक गरीब हैं, उसके पास चढ़ावे में चढाने के लिए ज्यादा सामग्री नही हैं, तो वहां के सेवको को उस भक्त में कोई रुचि नही होती।
आजकल तो ईश्वर और परमार्थ के नाम पर बड़े बड़े धंधे चल रहे हैं। चाहे किसी भी धर्म के धार्मिक स्थलों पर चले जाओ, वहां पर आपका सम्मान आपकी जेब के आकार पर निर्भर होता हैं।
इस प्रकार की दिखावे की भक्ति से जीव का कल्याण अथवा मोक्ष सम्भव नही हैं। हाँ ये जरूर हैं, कि दिखावे के लिए ही सही, प्रभु भक्ति कभी निरर्थक नही जाती।उस जीव पर ईश्वरीय कृपा जरूर होती हैं, ओर उसको मोक्ष के मार्ग पर चलने के अवसर प्रदान करती हैं।
भूत, प्रेत, पिसाच, जिन्न, चुड़ैल या पितृ, किसी भी अधोगति में गए जीव ने यदि मनुष्य शरीर में रहते हुए भूल से भी कोई सद्कर्म, नामजप, सत्संग, दयाभाव सेवाभाव से कोई कर्म किया हुआ हो, तो उस अधोगति में गए जीव पर जरूर प्रभु कृपा होती हैं, और उसको अपने कुकर्मो का फल भोगने के पश्चात मोक्ष प्राप्त होता हैं।
फोटो साभार यमुना मिशन से।
विशेष ~ उपरोक्त सारी जानकारी स्वामी रामसुखदास जी महाराज के ग्रंथ 'गीता दर्पण' से ली गई है। इस जानकारी के संबंध में आपकी कोई जिज्ञासा है, तो कृपया कॉमेंट में अपनी जिज्ञासा लिखें अपवोट करना नहीं भूले।
आपका ~ indianculture1
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