क्षत्रिय ~ देश भक्ति की पराकाष्ठा
राजपुताना के क्षत्रियों में देशभक्ति के अनेको ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जो अन्य किसी शासक वर्ग या संस्कृति में मिलने सम्भव ही नही हैं, या यूं कहें कि इस प्रकार की कल्पना करना अन्य किसी के लिए शायद बस में ही नही।
हमने अपने पिछले संस्करणों में पढ़ भी कि, महारावल वीरमदेव सोनगरा द्वारा सिर कट जाने के बावजूद सिर्फ धड़ द्वारा युद्ध करना।
महलो की क्षत्राणियो द्वारा अपने सतीत्व को बचाने के लिये जीवित अग्नि में जल कर जौहर कर लेना।
राजपुत योद्धाओ द्वारा करो या मरो की स्थिति में केसरिया करना। और अंतिम सिपाही के जीवित रहने तक किले में दुश्मन को नही घुसने देने के लिए संघर्षरत रहना।
राणा सांगा के शरीर पर 80 घाव होने, एक आंख बेकार होने, एक हाथ व एक पांव के कट जाने के बावजूद मातृभूमि की रक्षा के लिए युद्धभूमि में उतर कर युद्ध करना। और जीवन मे अनेको युद्धो में विजयश्री प्राप्त करना।
इसके अलावा एक घटना का हम यहां आवश्य जिक्र करना चाहेँगे, जिसकी कल्पना मात्र से ही रूह कांप जाती हैं, किन्तु क्षत्रिय योद्धाओ द्वारा हंसते हंसते अंजाम दे देना।
महाराणा सांगा ने ईडर को फतह कर रायमल राठौड़ को गद्दी पर बिठाया, वहां का शासक निजामुलमुल्क ईडर से भागकर अहमदनगर के किले में शरण ले रहने लगा। राणा सांगा ने अहमदनगर को जा घेरा, मुगल सेना किले के अंदर बन्द होकर युद्ध करने लगी। किले का लोहे का दरवाजा, जिसके आगे बहुत तीक्ष्ण भाले लगे हुए थे, टूट नही रहा था, क्योंकि भालों के कारण हाथी अपने पूरे वेग से प्रहार नही कर पाते थे, इसलिए दरवाजा टूट नही रहा था। इस युद्ध में दरवाजा टूटने से पहले ही महाराणा सांगा के नामी सरदार डूंगर सिंह चौहाण वागड़, बुरी तरह घायल हो चुके थे। डूंगर सिंह चौहान के भाई और भतीजे युध्द में काम आ चुके थे। किले का दरवाजा नही टूटना क्षत्रिय राजपूतों के लिए भारी पड़ रहा था।
इन्ही डूंगर सिंह चौहाण के पुत्र कान्ह सिंह ने किले के दरवाजे के आगे, जहाँ भाले लगे हुए थे, के आगे खड़े होकर महावत से कहा, कि उनके शरीर को मुहरा कर के हाथी को पूरी ताकत से झोंक दे। महावत ने वैसा ही किया, कान्ह सिंह वहीं पर मातृभूमि के लिए शहीद हो गए।
कान्ह सिंह जानते थे, कि उनकी मृत्यु निश्चित हैं, फिर भी उन्होंने रजपूती शान के अनुरूप अपनी मातृभूमि के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया, जबकि उनके पूरा परिवार पहले ही युद्धभूमि में शहीद हो चुका था।
ये मातृभूमि पर बलिदान देने की पराकाष्ठा नही हैं, तो क्या हैं?
इस युद्ध मे राणा सांगा की क्षत्रिय सेना विजयी रही। मुगल सेना को क्षत्रिय सेना ने इतनी बुरी तरह पछाड़ा, कि अहमदनगर का किला छोड़कर, अहमदाबाद भाग गयी।
ऐसे ही अनेको वीरो की गाथाओ से राजपूताना का इतिहास भरा पड़ा हैं। जानने के लिए हमारी क्षत्रिय श्रृंखला पढ़ते रहिये। अपनी प्रतिक्रिया कॉमेंट में जरूर लिखें।
आपका ~ indianculture1
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