Bottle milk or mother's milk
Mother's milk is the best and perfect for babies
Is a natural diet. Breastfeeding is for the mother and
Along with the economic interest of the country and the family, it is also beneficial for the environment, but in spite of the bottle
The trend of feeding is continuously increasing. Aadhaar in 1991, under the aegis of the Indian Medical Association
Studies show that infants in the last decade
Especially during the first four months of his life
There is a decrease in breast feeding. This study
According to the children of four months of age half children
The bottle is made of milk.
Mother's milk baby diarrhea, malnutrition
Lack of water in the diabetic body, severe respiratory disease
Protects against dangerous diseases like Sids and Cancer
is . It is the complete mental and physical condition of infants
Help in nutrition and development. Breastfeeding
Protecting mothers from fatal diseases such as breast cancer
Might be possible. Not only here, breastfeeding family planning
And also important role in environmental protection
Plays.
Breastfeeding is the most effective way of contraception. Pregnant women prevent breastfeeding alone, as all other remedies of contraceptives stop pregnancy.
Bottle-making
The interval decreases. 50 percent of breastfeeding
Decreases increase fertility rates by 17 to 37 percent.
Mother's milk is also environmentally friendly
The best diet is. It has been estimated that children
To get unwanted bottle milk from our country
About 110 million liters of breast milk are being wasted.
According to the price of powdered milk, its approx.
Two thousand crores will sit
However, the breast milk powder is good in every aspect of milk. Heavy quantity of nutritious ingredients will be used to make such quantity of powder milk and heavy packaging on its packaging.
Approximately half a kilogram of milk in such a box
To pack 36 million tonnes of half kilogram
Packets will be required as well as on the nipple of milk bottles
About 276 crores will be spent for so many milk
About 1.5 million cattle and 75,000 acres of grassland
Will be needed. About 330 million cattle
Will be spent on food and maintenance. Not here,
110 crore rupees spent in boiling the bottle
Will take on the burners and thus a family has three
Monthly on every child of the month giving artificial milk
450 will have to be spent.
मा का दूध शिशुओं के लिए सर्वोत्तम तथा सम्पूर्ण
प्राकृतिक आहार है। स्तनपान स्वयं माता के लिए तथा
देश और परिवार के आर्थिक हित के साथ साथ पर्यावरण के लिए भी लाभप्रद है, लेकिन इसके बावजूद बोतल से
दूध पिलाने की प्रवृति लगातार बढ़ रहीं है । ईडियन मेडिकल एसोसिएशन के तत्वाधान में 1991 में कराए गए एक
अध्ययन से पता चलता है कि पिछले दशक में शिशुओं
को खासकर उनके जीवन के पहले चार महीनों में
स्तनपान कराने की प्रवृति में कमी आई है। इस अध्ययन
के अनुसार चार माह की उम्र के बच्चों में से आधे बच्चों
को बोतल से दुग्धपान कराया जाता है।
मां का दूध बच्चे की डायरिया, कुपोषण
मधुमेह शरीर में पानी की कमी गम्भीर श्वसन रोग
सिड्स और कैंसर जैसे खतरनाक रोगों से रक्षा करता
है । यह शिशुओं के सम्पूर्ण मानसिक और शारीरिक
पोषण तथा विकास में सहायक है। स्तनपान कराने
से माताओं की स्तन कैंसर जैसे घातक रोगों से रक्षा
हो सकती है। यहीं नहीं, स्तनपान परिवार नियोजन
तथा पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण भूमिका
निभाता है।
स्तनपान गर्भनिरोधक का सर्वाधिक प्रभावशाली तरीका है। गर्भनिरोधक के दूसरे सभी उपाय जितने गर्भधारण रोकते हैं, उससे अधिक गर्भधारण अकेले स्तनपान रोकता हैं।
बोतल से दुगध पान कराने पर बच्चों के जन्म का
अन्तराल कम हो जाता है। स्तनपान में 50 प्रतिशत की
कमी करने पर प्रजनन दर में 17 से 37 प्रतिशत की वृद्धि हो जाती हैं।
मां का दूध पर्यावरण की दृष्टि से भी बच्चों का
सर्वोत्तम आहार हैं। अनुमान लगाया गया है कि बच्चों
को अवांछित बोतल दुग्ध पान कराने से हमारे देश में
लगभग 110 करोड़ लीटर स्तन-दूध बर्बाद हो रहा है।
पाउडर दूध की कीमत के हिसाब से इसकी लगभग
दो हजार करोड़ रूपए बैठेगी
हालांकि स्तनदूध पाउडर दूध से हर दृष्टिकोण में अच्छा है। इतनी मात्रा में पाउडर दूध बनाने के लिए भारी मात्रा में पौष्टिक तत्व तो लगेंगे ही तथा इसके पैकेजिंग पर भी भारी खर्च आएगा।
अनुमानत: इतने दूध को आधा किलोग्राम के डिब्बे में
पैक करने के लिए आधा किलोग्राम के 36 करोड़ टन
के पैकेट जरूरी होंगे साथ ही दूध बोतलों के निपलों पर
करीब 276 करोड़ रूपए खर्च होंगे इतने दूध के लिए
करीब 15 लाख मवेशियों तथा 75000 एकड चारागाह
की जरूरत होगी। करीब 330 करोड़ रूपए मवेशियों
के भोजन तथा रख-रखाव पर खर्च होगा। यहीं नहीं,
110 करोड़ रूपए बोतल को उबालने में खर्च हुए
जलावन पर लगेंगे और इस तरह एक परिवार को तीन
महीने के प्रत्येक बच्चे को कृत्रिम दूध पिलाने पर प्रतिमाह
450 रूपए खर्च करने होंगे।
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