दृढ़ संकल्प - मनोबल में वृद्धि के लिए अनुकूल विचारधारा

in #india6 years ago

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दूसरी बात यह है की जब मनुष्य प्रतिज्ञा करने के बाद उसे निभा नहीं पाता तो उसका मन दुःखी ही नहीं होता बल्कि आगे के लिए उसके संकल्पों में दृढ़ता भी नहीं रहती। उसकी वृत्ति में निराशा बनी रहती है और आत्म विश्वास भी नहीं रहता। इसके बजाय यदि मनुष्य थोड़ा समय भी अपने भीतर की दूषित इच्छाओं के तीव्र वेग का दृढ़तापूर्वक सामना करले तो उससे थोड़ी - सी सफलता से भी उसका उत्साह आत्म -विश्वास तथा मनोबल इतना बढ़ेगा कि वह बड़ी -बड़ी कठनाईओं का , आलोचना को तथा मानसिक तूफानों का भी सामना कर सकेगा। इसके लिए यह जरुरी है कि मनुष्य यह याद रखे कि मेरे सामने जो परीक्षाएं आ रही हैं , वे सफलता की सीढ़ियां हैं , वे क्षणिक है। उनको गुज़ार लेने से जीवन में महानता तथा सदगुणों का विकास ही होगा।

जब एक व्यक्ति पुराने मकान की दीवार को गिराने के लिए उसे हथोड़े मारने लगता है तो कई बार ऐसा भी होता है कि पहली चोट से दीवार वहां से नहीं गिरती। यदि ऐसा देख कर काम करना छोड़ दिया जाय तो प्रगति ही रुक जाएगी परन्तु जब मनुष्य अपने संकल्पों में अथवा पुरुषार्थ में दृढ़ता भर लेता है तो ही वह अपने लक्ष्य तक पहुँच पाता है।

सभी जानते हैं कि यदि किसी भवन की नीवं सुदृढ़ न हो तो भवन अधिक समय तक टिक नहीं सकता। ठीक इसी प्रकार , यदि मनुष्य के संकल्पों में दृढ़ता न हो तो उसका पुरुषार्थ भी चिर स्थायी नहीं होता। थोड़ा -सा विघ्न उपस्थित होने पर किंवा थोड़ी -सी बाधा आने पर वह हथियार डाल देता है ; अपने लक्ष्य को छोड़ देता है। यह बहुत बड़ी दुर्बलता है। संसार में दृढ़ विचार वाले व्यक्तियों ने ही उच्च कर्त्तव्य किये हैं। यदि ऐसे व्यक्ति संसार में न होते तो समाज ने वैज्ञानिक , आर्थिक तथा अन्य क्षेत्रों में इतने प्रकार की जो भी प्रगति की है वह आज हमें उपलब्ध न होती।

धन्यवाद
@himanshurajoria

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