समर्पण
परमात्मा के प्रति समर्पित होने से सदा कल्याण
एक बार एक नवविवाहित दंपत्ति में यात्रा कर रहा था। अचानक जोर का तूफान उठा और जहाज डगमगाने लगा। सभी लोग घबरा गए लेकिन वह युवक हर्षितमुख बना रखा। उसकी पत्नी ने पूछा कि क्या आपको चिंता नहीं हो रही है ? युवक ने तलवार निकाली और पत्नी की गर्दन पर टिका दी। लेकिन वह घबराई नहीं। युवक ने पूछा जब तलवार की नोंक तुम्हारी गर्दन पर है तब तुम घबराती क्यों नहीं ? उसने उत्तर दिया कि आप मुझसे इतना प्रेम करते हैं कि में सोच भी नहीं सकती कि आपके हाथों मेरा नुकसान होगा। युवक ने कहा , "उसी तरह परमात्मा का मुझसे असीम प्रेम है और उनके द्वारा मेरा कुछ भी नुकसान नहीं हो सकता। जो भी होगा उसमें मेरा कल्याण ही छिपा होगा। अतः इसलिए मैं निश्चिंत हूँ।"
परमात्मा के हाथों में अपने को छोड़ देने पर दुःखद घटनाएं भी सुखद बन जाती हैं। श्राप वरदान बन जाता है विष -- अमृत। अपनी और से चिंतित होकर हम विपत्तियों को बढ़ाते ही तो हैं। इसके अनेकों भौतिक दृष्टांत भी हैं। युवा या वृद्ध पुरुष जब ऊंचाई से गिरते हैं तो उनकी हड्डियां टूट जाती हैं। लेकिन जब छोटा बच्चा गिरता है तो उसे कुछ कम चोट आती है। क्यों ? युवा व्यक्ति बुद्धिमान है। वह अपने को बचाने का प्रयत्न करता है। गिरते समय अपने को बचाने के प्रयत्न में उसकी हड्डियां कड़ी हो जाती है; जमीन की चोट से कड़ी हड्डियां टूट जाती हैं। उसकी बुद्धि ही उसके लिए खतरनाक सिद्ध होती है। बच्चे में ऐसी बुद्धि नहीं होती है। गिरते समय भी वह निश्चिंत रहता है तथा उसमें अपनी रक्षा का कोई भी विचार नहीं उठता। उसकी हड्डियां मुलायम बनी रहती हैं और तभी उसे कोई भी विशेष चोट नहीं आती।
धन्यवाद
@himanshurajoria
इस तरह की भक्ति होना ज़रूरी है जिसमे भकत और परत्मत्मा दोनों मिल जाय।😀 बहुत अच्छा लगा। धन्यवाद।
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जी हाँ , आपने सही कहा। ...
कमेंट के लिए धन्यवाद।