सीता स्वयंवर, महर्षि वाल्मिकी‘ द्वारा रचित ‘रामायण‘ का अंश है।
जनकपुरी (मिथिला) में राजा जनक राज्य करते थे। सीता एवं उर्मिला उनकी दो पुत्रियाँ थीं। सीता का जन्म भूमि के अंदर से हुआ था।
जब सीता विवाह योग्य हुई तो उनके लिए उचित वर ढूँढने हेतु राजा जनक ने स्वयंवर का आयोजन किया। राजा जनक के पास भगवान शिव का धनुष ‘पिनाक‘ था जिसे एक बार सीता ने खेल-खेल में उठा लिया था। तभी राजा जनक ने यह प्रतिज्ञा की थी कि जो इस धनुष को उठाकर इसकी प्रत्यंचा चढाा देगा उसी से सीता का विवाह संपन्न होगा। स्वयंवर में दूर-दूर से राजा और अनेक गणमान्य लोग आए हुए थे। उस स्वयंवर में महामुनि विश्वामित्र के साथ राम लक्षमण भी उपस्थित थे।
राजा जनक ने अपनी प्रतिज्ञा के विषय में उपस्थित लोंगो केा बताया। सभी उपस्थित राजा एक-एक करके उठे और बोले-‘‘लगता है यह धरती वीरों से खाली हो गई है।‘‘ राजा जनक की व्यथा को समझतें हुए मुनि विश्वामित्र ने श्रीराम से कहा-‘‘ हे राम! डठो और शिवजी के इस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर राजा जनक के दुःख को दूर करो।‘‘ गुरू की आज्ञा पाकर श्रीराम गुरू के चरणों में सिर झुकाकर धनुष के पास गए। धनुष को उठाकर उन्होनें पं्रत्यंचा खीची, एक भयंकर ध्वनि के साथ धनुष मध्य से टूट गयां राजा जनक हर्ष से गद्दग हो गए। सारे ब्रहृांड में जय-जयकार की ध्वनि गूँज उठी। सीता ने राम के गले में जयमाला डाल दी और उनका विवाह श्रीराम के साथ हो गया।
I hope you like them, Sita Swayam, Maharishi Valmiki 'is a part of' Ramayana '.