बटोहिया
आज हम देखने वाले कवि रघुवीर नारायण की एक कविता । उसके पहले उनकी थोड़ी सी जानकारी
जन्म - १८८४ ( बिहार )
मृत्यु - १९५५
परिचय - रघुवीर नारायण जी प्रथिभाशाली , मृदुभाषी , हिंदी साहत्यकार तथा भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी थे । जन - जागरण गीत की तरह गया जाने वाला यह गीत पूर्वी लोकधुनें में लिखा गया है । आप भोजपुरी की इस कविता से अमर कवियों में शामिल हो गए ।
तो चलिए पढ़ते है उनकी एक कविता
सुंदर सुभूमी भैया भारत के देसवा से
मोरे प्राण बसे हीम खोह रे बटोहिया
एक द्वार घेरे रामा हिम कोत्वलवा से
तीन द्वार शिंधू घाहरावे रेे बटोहिया ।
जाहू - जाहु भैया रे बटोही हिंद देखी आऊ
जहवा कुहुकी कोयल बोले रे बटोहिया
पवन सुघंध - मंद अगर , चंदनवा से
कामिनी बिरह राग गवे रे बटोहिया।
गंगा रे जमुनवा के झिलमिल पनिया से
सूरज झमकी लहरावे रे बटोहिया
ब्रह्मपुत्र - पंचानंद घाहरत नीसी - दिन
सोनभद्र मिटे स्वर गावे रे बटोहिया।
ऊपर आनेक नदी उमड़ी - घुमाडी नाचे
जुगन के जदुआ जगवे रे बटोहिया
आगरा , प्रयाग , काशी , दिल्ली , कलकत्वा से
मोरे प्राण बसे सरजू तीर रे बटोहिया ।
जाऊ - जाऊ भैया रे बटोही हिंद देखी आऊ
जहा ऋषि चारो बेद गावे रे बटोहिया
सीता के बिमल जस , राम जस ,कृष्ण जस
मोरे बाप - दादा के कहानी रे बटोहिया ।
ब्यास , बाल्मीकि , ऋषि गौतम , कपिलमिनी
सूटल अमर के जगावे रे बटोहिया
रामानुज - रामानंद न्यारी - प्यारी रूपकला
ब्रम्ह सुख बन के भवार रे बटोहिया ।
नानक , कबीर गैरी - शंकर , श्री राम - कृष्ण
अखल के बतिया बतावे रे बटोहिया
विद्यापति , कालिदास , सुर , जयदेव कवि
तुलसी के सरल कहानी रे बटोहिया ।
जाऊ जाऊ भैया रे बटोही हिंद लेखी जाऊ
जहां सुख झूले धान रेत रे बटोहिया
बुढ़्देव , पृथु , भिक्रमार्जुं , शिवाजी के
फिरी - फिरी हिय सुध आवे रे बटोहिया ।
आपर प्रदेश , देश , सुभग - सुघर बेश
मोरे हिंद जग के निचोड़ रे बटोहिया
सुन्दर सुभुमी भैया भारत के भूमि जेहि
जन रघुबीर सिर नावे रे बटोहिया ।
ये थी उनकी एक अदभुत रचना
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