गुरुजी के लिए सभी शिष्य समान हैं।
हमारी कहानी अधूरी है। आज फिर से हम आपकी कहानी शुरू करेंगे। सत्यानंद जी की सेवा करने के लिए दोनों चेले झगड़ने लगे। शंकर ने सोचा कि गुरुजी सोचेंगे कि मैंने तो केवल पूछा ही जबकि मुकुट तो सेवा करने लगा। एक तरफ गुरुजी अस्वस्थ थे। दूसरी तरफ चेले झगड़ा कर रहे थे। बात हाथापाई तक आ पहॅुची। गुरुजी लेटे-लेटे ही बोले, ‘‘अच्छा लड़ो मत। जंगल जाकर तुलसी के पत्ते ले आओ और उन्हे पानी में उबालकर मुझे दे दो।
दोनों चेले आलसी और कामचोर थे। शंकर बोला, ‘‘गुरुजी मुझे मालूम नही तुलसी के पत्ते कैसे होते है ?’’ मुकुट तो शंकर से भी ज्यादा कामचोर था वह बोला ‘‘तू बहुत मूर्ख है, तुलसी के पत्ते, केले के पत्तो जैसे बड़े-बड़े, हरे-हरे होते है।’’
स्वामी जी समझ गए कि दोनों ही जंगल से तुलसी के पत्ते नही लाना चाहते है। गुरुजी ने दोनो को शिक्षा देने का विचार बनाया और बोले, ‘‘मेरे प्यारे शिष्यों! तुम दोनों बहुत भोले-भोले हो। कोई बात नही। तुम्हे नही मालूम, तो मेरी चारपाई दोनों तरफ से उठाकर मुझे ले चलो। मैं खुद ही तुलसी के पत्ते तोड़ लाऊँगा।’’ दोनों शिष्यों ने बात सुनी और एक-दूसरे का मुँह देखने लगे। वे समझ गए कि गुरुजी को हमारे आलस्य और चालाकी का पता चल गया। ऐसे अनेक शिष्य हुए है। जिन्होने अपनी गुरु भक्ति से अपना नाम हमेशा के लिए इस संसार में अमर कर लिया है। ऐसे बालकों को बहुत सारे होते है।
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Enjoy your Saturday. A good story makes us learn something new in life. Welcome to this story.
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