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अपनी महिला साथी को सेक्स में कैसे संतुष्ट करें।पूरा पढ़ें फिर अपनी राय जरुर प्रकट करें

👉 अनेक पुरुषों को यह भ्रम बना रहता है कि उनके समान ही स्त्रियां भी स्खलित होती हैं। यह धारणा भ्रामक, निराधार और मजाक भी है। पुरुषों के समान स्त्रियों में चरमसुख की स्थिति बिल्कुल अलग है। भारत में ऐसी बहुत स्त्री हैं जो

जीवन में कभी भी चरम सुख को प्राप्त ही नहीं कर पाती हैं इसका मुख्य कारण है सैक्स एजुकेशन की कमी और लोगों का सेक्स के विषय पर खुलकर बात न करना

नारी की पूर्ण संतुष्टि के लिए आवश्यक है कि फॉर प्ले अर्थात सेक्स करने से पहले की क्रिया जैसे होंठो की किस महिला के स्तन दबाना और पूरे बदन पर किस करना महिला की योनि में उंगली डालकर उसे सेक्स के लिए उत्तेजित करना आदि ये सभी क्रियाएं ही अंग्रेजी में फोर प्ले कहलाती हैं।

महिला साथी को कलात्मक फोर प्ले द्वारा इतना कामोत्तेजित कर दिया जाये कि वह सेक्स संबंध बनाने के लिए स्वयं आतुर हो उठे एवं चंद घर्षणों के पश्चात ही आनन्द के चरम शिखर पर पहुंच जाएं।

नारी को उत्तेजित करने के लिए केवल आलिंगन, चुम्बन एवं स्तन मर्दन ही पर्याप्त नहीं होता। यूं तो नारी का सम्पूर्ण शरीर कामोत्तेजक होता है, पर उसके शरीर में कुछ ऐसे संवेदनशील स्थान अथवा बिन्दु हैं जिन्हें छेड़ने, सहलाने एवं उद्वेलित करने में अंग-प्रत्यंग में कामोत्तेजना प्रवाहित होने लगती है।

नारी के शरीर में कामोत्तेजना के निम्नलिखित स्थान संवेदनशील होते हैं-

महिला की योनि (सर्वाधिक संवेदनशील), भगोष्ठः बाह्य एवं आंतरिक, जांघें, नाभि क्षेत्र, स्तन (चूचक अति संवेदनशील), गर्दन का पिछला भाग, होंठ एवं जीभ, कानों का निचला भाग जहां आभूषण धारण किए जाते हैं, कांख, रीढ़, नितम्ब, घुटनों का पृष्ठ मुलायम भाग, पिंडलियां तथा तलवे।

इन अंगों को कोमलतापूर्वक हाथों से सहलाने से नारी शीघ्र ही द्रवित होकर पुरुष से लिपटने लगती है हाथों एवं उंगलियों द्वारा इन अंगों को उत्तेजित करने के साथ ही यदि इन्हें चुम्बन आदि भी किया जाए तो नारी की कामाग्नि तेजी से भड़क उठती है एवं फोर प्ले (फोर प्ले को हिन्दी में रति क्रीड़ा भी बोलते हैं) के आनन्द में अकल्पित वृद्धि होती है।

यह आवश्यक नहीं कि सभी अंगों को होंठ अथवा जिव्हा से आनंदित किया जाए यह प्रेमी और प्रिया की परस्पर सहमति एवं रुचि पर निर्भर करता है कि प्रणय-क्रीड़ा के समय किन स्थानों पर होठ एवं जीभ का प्रयोग किया जाए। उद्देश केवल यही है कि प्रत्येक रति-क्रीड़ा में नर और नारी को रोमांचक आनन्द की उपलब्धि समान रूप से होनी चाहिए।
राही

नारी की चित्तवृत्ति सदा एक समान नहीं रहती। किसी दिन यदि वह मानसिक अथवा शारीरिक रूप से क्षुब्ध हो, रति-क्रीड़ा के लिए अनिच्छा जाहिर करे तो किसी भी प्रकार की मनमानी नहीं करनी चाहिए। सामान्य स्थिति में भी प्रिया को पूर्णतः सेक्स के लिए उत्तेजित कर लेने के पश्चात् ही यौन-क्रीड़ा(संभोग) में संलग्न होना चाहिए।

संभोग के लिए प्रवृत्ति या इच्छा-

स्त्री भले ही सम्भोग के लिए जल्दी मान जाए, परन्तु यह जरूरी नहीं है कि वह इस क्रिया में भी जल्द अपना मन बना ले।
पुरुषों के लिए यह बात समझना थोड़ी मुश्किल है। स्त्री को शायद सम्भोग में इतना आनन्द नहीं आता जितना कि सम्भोग से पूर्व काम-क्रीड़ा, अलिंगन, चुम्बन और प्रेम भरी बातें करने में आता है। जब तक पति-पत्नी दोनों सम्भोग के लिए व्याकुल न हो उठें तब तक सम्भोग नहीं करना चाहिए।

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राही

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