सुविचार

in #busy6 years ago

नमस्कार फ्रेंड्स
आपका दिन अच्छा रहा होगा।

दोस्तों हमारे जीवन में हमारे धर्म को हम बहुत अहमियत देते हैं। हम जिस किसी भी धर्म के अनुयायी हैं, उसका अनुकरण करना हमारे लिए अच्छा हैं, किन्तु किसी भी धर्म से जुडे व्यक्ति के व्यक्तिगत विचारों का अंधानुकरण करना बहुत गलत। कोई भी धर्म शायद ऐसा नही होगा जो किसी भी तरह की हिंसा को बढावा देने को प्रोत्साहित करता हो। और यदि कोई धर्म ऐसा करता हैं, तो वो धर्म नही हो सकता। वो केवल एक मानसिक रुप से विकृत व्यक्ति का मत या पंथ हो सकता हैं।
हम किसी भी धर्मावलंबी से पहले एक मानव हैं, मानव से भी पहले एक प्राणी हैं। हमे किसी भी धर्म, पंथ अथवा विचार का अनुसरण करने से पहले एक प्राणी होने के नाते ये सोचना चाहिए, की हमारा धर्म किसी प्राणी को नुकशान पंहुचाने के लिए तो हमे प्रेरित नही करता। यदि एसा करता है, तो वो किसी भी हालत में धर्म नही हो सकता।
आज के वेश्विक परिदृश्य पर नजर डालें तो चारों तरफ अंधानुकरण ही नजर आ रहा हैं। कोई भी एक इन्सान जो या तो मानसिक रुप से विकृत हैं, या अपने स्वार्थ में अन्धा हैं, वो अपने जैसे कुछ लोगो का संगठन बना कर मानवता को नुकशान पहुंचा रहे हैं। उनकी इस मानसिकता के शिकार वो लोग हो रहे हैं, जो न तो धर्म के मर्म को जानते हैं, न उन्हें धर्म के अनुसरण का उन्हें ज्ञान हैं। वो लोग उनकी बातों में आकर धर्म के लिए खुद को आत्मघात करने तक के लिए तैयार कर लेते हैं। उन्हे इस बात का ज्ञान तक नही हैं, कि वो किसी विकृत मानसिक रोगी की विकृति का शिकार मात्र हो रहे हैं।
आज विश्व के प्रत्येक देश को इस बात की आवश्कता हैं, कि ऐसे प्रत्येक व्यक्ति को, जो धर्म के नाम पर भोले भाले नागरिकों को गुमराह कर के कुछ भी गलत करवा रहा हो, उसको पकड़ कर किसी बीच चौराहे पर ठोक देना चाहिए। चाहे वो किसी भी देश अथवा धर्म का ठेकेदार हो।
इस प्रकार की विकृति के कारण परेशान सिर्फ आम नागरिक होता हैं। खास लोगो पर इसका असर नही के बराबर होता हैं। अभी हाल ही में भारत के पुलवामा में हुई घटना से परेशान आम सेनिक हुए, उनको जान गन्वानी पड़ीं, उनका परिवार बेसहारा हुआ, उनके बच्चे यतीमा हुए, उनके बुढे माँ बाप रोए, उनकी पत्नी विधवा हुई। या उनकी व्यथा से व्यथित देश के आम नागरिक हुए, जो उनकी हालत देखकर खून के आंसू रोए। खास को क्या फर्क पड़ा। दे दी श्रधान्जली और फ्री।
इनकी जगह कोई खास मारा गया होता तो अब तक देश की सारी सुरक्षा एजेंसियां दोषियों को खोजने में लग जाती और अब तक सारे दोषी या तो मारे गये होते या जेल में होते। आज पूरा देश न सिर्फ बिलख रहा हैं, बल्कि आक्रोषित भी हैं, की ऐसे हालातों में कोई चुप कैसे रह सकता हैं।
हां ये जरुर सुनने में आ रहा हैं, कि सरकार नें आर्मी को खुली छुट दे रखी हैं, दोषियों पकड़ने की, कुछ नादान लोगो को पकड़ भी लिया जायेगा, पर असली दोषी, जिसने इस हमले की जिम्मेदारी लेने की हिमाकत तक कर ली, उनका क्या? असली दोषी तो वो हैं, क्या देश की इंटेलीजेंस एजेंसियां इतनी नकार हैं, जो उनको खोज न सके। जब बुरा करने वालो के पास आत्मघाती हो सकते हैं, तो अच्छे के लिए शहीद होने वाले मिल नही सकते। उनको वहीं ठोक दो,जहाँ वो बैठे हैं, ओर अपने को सुरक्षित महसूस कर रहें हैं। कुल मिलाकर सौ पचास से ज्यादा नही होंगे, उनको मारने के लिए हमको चार पाँच सौ को भी शहीद होना पडा तो भी सस्ता हैं। पता नही प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से उन्होने मानवता को कितना नुकशान पहुंचाया होगा। न जाने कितने युवाओं को गुमराह किया होगा।कितने मरे और कितने बेमौत मरने को तेयार बैठे होंगे।
हम सभी का भी ये कर्तव्य बनता हैं, कि हम अपनी आनेवाली पीढी को सही और गलत का भेद बता कर रखें। वो कुछ भी करे, पर गुमराह न हो, इस प्रकार की व्यवस्था हमें करनी चाहिए।
पढ्ने के लिए आभार, अपने विचार जरुर लिखियेगा।

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