न सिर्फ हिमाचल में, बल्कि कर्नाटक में भी अब लहलहा रहे हैं सेब के पेड़!

in #bitcoin7 years ago

हिमाचल प्रदेश में मंडी के वरिष्ठ फल वैज्ञानिक चिरंजीत परमार ने दिखा दिया है कि हां, यह संभव है। उन्होंने अपनी बात साबित करने के लिए कर्नाटक के स्थानीय किसानों की मदद ली।

प्रयोग अभी भी चालू हैं और वाणिज्यिक उत्पादन अभी तक शुरू नहीं हुआ है। लेकिन सेब उगाने की संभावना ने इस फल पर जम्मू और कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए नई संभावनाओं का द्वार खोल दिया है।

लेकिन दिलचस्प बात है यह कि यहां लगाए गए हिमाचल सेब के पौधे भ्रमित अवस्था में हैं।

जहां कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में पांच या छह साल में सेब के पेड़ पर फल लगते हैं, वहीं बेंगलुरु और उत्तरी कोडगु में सोमवारपेट में लगाए जाने के दो सालों के भीतर इन पर फूल आना और फल बैठना शुरू हो गए हैं।

दक्षिण कन्नड़ में, सेवानिवृत्त बैंकर कृष्णा शेट्टी अभी भी अपने खेत के फलों का स्वाद लेने का इंतजार कर रहे हैं। वह कहते हैं, "उनमें फूल आना शुरू हो गया है। मुझे अगले साल सेब की फसल मिलनी चाहिए।"

वह आगे कहते हैं, मानसून की लंबी अवधि और कीटों के प्रकोप से वांछित परिणाम नहीं मिल पाया है। शेट्टी ने उप्पिनंगडी के निकट हिरेबंडाडी में अपने खेत में 50 पौध लगाए थे।

उन्होंने बताया कि सेब उन क्षेत्रों में उगाया जा सकता है, जहां तापमान 10 डिग्री से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है। वह कहते हैं, "इंडोनेशिया में, उत्पादक पत्तियों की छंटाई कर देते हैं और प्रति हेक्टेयर 60 टन सेब पैदा करते हैं। हमारे देश में, छंटाई नहीं की जाती है और उपज 6 टन प्रति हेक्टेयर तक सीमित रहती है। तीन साल बाद, उपज अभी भी सीमित है। मुझे वैज्ञानिकों से और अधिक मार्गदर्शन की आवश्यकता है।

महालक्ष्मी लेआउट, बेंगलुरु के नागानन्द के टेरेस गार्डन में सेब के तीन पेड़ हैं। नागानन्दम कहते हैं, "मैंने बसावनाहल्ली, रामनगरम में अपने खेत में कुछ पौधे लगाए है। अच्छी देखभाल के साथ यहां पेड़ों से अच्छे नतीजे मिले हैं, जबकि मेरे खेत में, शायद देखभाल की कमी की वजह से नतीजे इतना उत्सांहजनक नहीं रहे हैं"। उनके पेड़ों पर भी दो साल के भीतर फल आ गए थे।

परमार की लगभग भूमध्य रेखा पर स्थित इंडोनेशिया के बाटू की यात्रा से इस प्रयोग का शुभारंभ हुआ। इस इलाके ने अब सेब उत्पादक क्षेत्र की प्रतिष्ठा हासिल कर ली है। इस "बागवानी आश्चर्य" के बारे में वहां किसानों से जानकारी मिलने के बाद, परमार ने दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में इसे दोहराने की संभावनाओं के बारे में सोचना शुरू किया - जहां सर्दियों का कोई मौसम नहीं होता है।

शेट्टी कहते हैं कि कश्मीर और हिमाचल प्रदेश के विपरीत, सर्दियों की अनुपस्थिति से यहां के उत्पाहदको को साल में दो फसल लेने में मदद मिलती है, क्योंकि सर्दी के कारण होने वाली कोई प्रसुप्तावस्था नहीं होती है।

2010 में यूनाइटेड किंगडम की आपनी यात्रा के दौरान, शेट्टी ने घर के अहाते में सेब के पेड़ देखे थे। शेट्टी कहते हैं, "मैं सोचने लगा, कि ऐसे मेरे घर पर क्यों नहीं हो सकता है, लेकिन बहुत आगे नहीं बढ़ सका। फिर मैंने अदिके पत्रिका में परमार पर एक लेख देखा।"

शेट्टी को हिमाचल प्रदेश से पौधों की सप्लापई मिलती है, और पांच किस्मों के 2500 पौधों की खेप उन तक पहुंच चुकी है। शेट्टी कहते हैं, "पहले, लगभग 500 पौधों के खरीदार थे, और यह संख्या बढ़ रही है। दुर्भाग्य से, पौधे ले जाने वाले लोग मुझे प्रतिक्रिया नहीं देते हैं"।

इस समय, कर्नाटक में दक्षिणा कन्नड़, कोडगु, तुमकुर, बेंगलुरु, तरिकेरे, विजयपुरा और चमाराजनगर में प्रायोगिक आधार पर सेब उगाया जा रहा है।

चिकमगलूर जिले के तरिकेरे के डी जनार्दन ने अपने सुपारी के बागानों में सेब के पेड़ लगाए हैं। तुमकुर के एक अन्य किसान गुरुमूर्ति के बगीचे में भी सेबों से लदे पेड़ हैं।

परमार ने बताया कि जनार्दन ने दो साल पहले सेब के कुछ पेड़ लगाए थे। आगे वह कहते हैं, "तीन दिन पहले जनार्दन ने उन्हें कुछ तस्वीरें भेजी थी जिसमें वह सेब से लदे पेड़ों के पास खड़े दिख रहे थे। जनार्दन ने मुझे बताया कि फल मीठे हैं"। परमार बताते हैं कि कर्नाटक के अन्य स्थानों से भी इसी तरह की सूचना मिली है, जहां उन्होंने चार साल पहले सेब की खेती शुरू की थी।

राज्य राज्योत्सव पुरस्कार विजेता कृषि विशेषज्ञ चंद्र गौड़ा, जो लक्ष्मीपुरा, चिकमंगलूर जिला में रुद्र फार्म के मालिक हैं, बताते हैं, "लगभग दो साल पहले परमार से मेरी मुलाकात हुई थी, जिन्होलने मुझे प्रयोग करने के लिए लगभग 50 पौधे दिए थे। पहले साल फसल कमजोर थी लेकिन इस साल मुझे प्रति पेड़ एक किलो सेब मिल रहा है। पौधे अभी पूरी तरह विकसित नहीं हो पाए हैं। फलों की गुणवत्ता बहुत अच्छी है और फल स्वादिष्ट हैं"।

कर्नाटक में सेब के पेड़ों की वृद्धि दर उच्च है। हिमाचल में सात साल की विकास अवधि के विपरीत दो साल से कम समय में पैदावार मिलने लगती है।

बाद के चरण में सेब उगाने के लिए उच्च घनत्व वाली कृषि पद्धति की सलाह दी जाती है। परमार कहते हैं, "विकास दर अधिक है इसलिए किसानों को वाणिज्यिक वृक्षारोपण के लिए बौने पौधों के रूटस्टॉक का इस्ते माल करना होगा।"

सेब उगाने में स्थान महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसा स्थान, जहां न्यूनतम तापमान सर्दियों में 12 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं जाता है, ग्रीष्म ऋतु बहुत कठोर नहीं होती है (तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से कम रहना चाहिए) और मध्यम बारिश होती है, चुना जाना चाहिए। इसके अलावा, सिवाय इसके मिट्टी के लिए कोई विशिष्ट आवश्यकता

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