जय माता दी
सो परत्र दुख पावइ
सिर धुनि धुनि पछिताई।
कालहि कर्महि ईस्वरहि
मिथ्या दोष लगाइ॥
वह परलोक में दुःख पाता है, सिर पीट-पीटकर पछताता है तथा (अपना दोष न समझकर) काल पर, कर्म पर और ईश्वर पर मिथ्या दोष लगाता है॥
जो न तरै भव सागर
नर समाज अस पाइ।
सो कृत निंदक मंदमति
आत्माहन गति जाइ॥
जो मनुष्य ऐसे साधन पाकर भी भवसागर से न तरे, वह कृतघ्न और मंद बुद्धि है और आत्महत्या करने वाले की गति को प्राप्त होता है॥