:-मनुष्य होना ही महान नही है:-
:-मनुष्य होना ही महान नही है:-
:-कश्यप एक ऋषि का पुत्र था।एक दिन किसी रथ की चपेट में आकर वह गिर गया और उसे चोट लगी। दुखी होकर वह कहने लगा,गरीब आदमी का जीना ही व्यर्थ है।इसके बजाय मुझे आत्मघात कर लेना चाहिए।
:-ऋषिपुत्र को दुखी देखकर इंद्रा गीदड़ के वेश में उनके पास आये और उससे कहने लगे,मनुष्य शरीर पाने के लिए तो सभी उत्तशुक रहते है।
:-ऐसा दुर्लभ शरीर पाकर उसे यो ही नष्ट कर देना भला कहा कि बुद्धिमानी है।भगवान की बड़ी दया समझिये की आप किसी दूसरी योनि में नही उत्तपन हुए।हे कश्यप आत्महत्या करना महापाप है।
:-यही सोचकर में वैसा नही कर रहा हूं; अन्यथा देखए,मुझे ये कीड़े काट रहे है,लेकिन हाथ न होने से में इनसे अपनी रक्षा नही कर सकता।आपको अपने वेदोक्त कर्म का वास्तविक फल मिलेगा।
:-आप सावधानी से स्वाध्याय और अग्निहोत्र कीजिये ।मुझे देखिये,यह श्रीगाल योनि मेरे कुकर्मो का परिणाम है।मैं कोई ऐसी साधना करना चाहता हू, जिससे आप जैसा मनुष्य हो सकूं जबकि आप मनुष्य योनि से छुटकारा पाना चाहते है।
:-कश्यप को मानव देह की महत्ता का पता चला।उसे यह भी मालूम चल गया कि उसे समझाने वाला यह कोई श्रृंगाल नही।अपितु श्रृंगाल वेश में शचीपति इंद्रा ही है।उसने उनकी पूजा की और उनकी आज्ञा पाकर घर लौट आया।
:- मनुष्य योनि का मिलना ही एक मनुष्य के लिए सबसे बड़ा धन है।
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