दृण- संकल्प / Determination
हमारी भलाई और महानता दिव्य गुणों की धारणा ही में है। परन्तु दिव्य गुण अनेक हैं और उनकी धारणा की ऊंचाई , जहाँ तक हमें पहुंचना है ,भी बहुत उच्च है। पुनश्च , हरेक गुण भी अपनी जगह महत्त्वपूर्ण हैं , गोया हम यह भी नहीं कह सकते कि अमुक गुण को तो अवश्य धारण करना ही है और अमुक गुण को छोड़ा जा सकता है। परन्तु फिर भी यह अनुभव -सिद्ध बात है कि दृढ़ता के बिना अन्य दिव्य गुण भी हमारे आचरण में स्थायी रूप से स्थापित नहीं हो सकते। अतः दृढ़ता सर्व प्रधान अथवा परमवाश्यक है।
जिस मनुष्य का मनोबल कम हो , जिसके संकल्प में दृढ़ता न हो , वह कोई भी महान कार्य सफलतापूर्वक नहीं कर सकता। वह आज अपने जीवन में कोई अच्छाई धारण करता है तो कल उसे छोड़ देता है। वह प्रातः कोई प्रतिज्ञा करता है तो शाम तक उसे भंग कर देता है। उसमें अच्छा बनने की इच्छा तो होती है परन्तु उसे पूर्ण करने की शक्ति उसमें नहीं होती। अतः पुरुषार्थ के लिए जरुरी है की मनोबल अथवा दृढ़ता बने। परन्तु स्पष्ट है की मनुष्य में , स्वंय में तो बल है नहीं ,अवश्य ही यह बल उसे किसी से लेना होगा। अच्छाई के लिए आत्म -बल अथवा शक्ति तो परमपिता से ही प्राप्त हो सकती है क्योंकि एक वह ही सर्वशक्तिवान है। उससे शक्ति लेने के तरीके को 'योग' कहा जाता है। योग से आत्म बल अथवा मनोबल निश्चय ही प्राप्त होती है।
अगले भाग में मनोबल में वृद्धि के लिए अनुकूल विचारधारा के बारे में होगा।
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