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in #prithviraj6 years ago

Prithviraj Chouhan
Prithviraj Chauhan history
पृथ्वीराज चौहान

नमस्कार दोस्तों,

     आज हम एक ऐसे वीर की बात करेंगे जिन्होंने अपने स्वाभिमान के वजह से बहुत ही चर्चा में रहे हैं और उनका बहुत ही प्रचलित कहानियां हमें हर जगह पढ़ने को मिल जाएंगी। एकमात्र वह ऐसे वीर थे जिन्होंने अपने जीवन काल में 18 बार युद्ध लड़ा था। कहा जाता है  की जीत भी उन्हीं की हुई थी 17 बार। 18वें युद्ध में उनके शत्रुओं द्वारा इस वीर को शिकस्त खानी पड़ी थी। दोस्तों आप इस पोस्ट को पढ़ें और जानें उनके बारे में तो चलिए दोस्तों चलते हैं हम अपने पोस्ट के तरफ हम जिन सपूत बात कर रहे हैं उनका नाम राजा पृथ्वीराज चौहान जी हैं। आज के दौर में  शायद ही कोई ऐसा हो  जो उनका नाम नहीं जानता हो। जिन्होंने मुगलों से कभी हार नहीं मानी और अपने जीवन के अंत समय में भी बिना सैन्य बल के अपने शत्रु पर विजय पाई। पृथ्वीराज चौहान भारतीय इतिहास मे एक बहुत ही अविस्मरणीय नाम है। चौहान वंश मे जन्मे पृथ्वीराज आखिरी हिन्दू शासक भी थे। महज 11 वर्ष की उम्र में, उन्होनें अपने पिता की मृत्यु के पश्चात दिल्ली और अजमेर का शासन संभाला और उसे कई सीमाओं तक फैलाया भी था, परंतु अंत मेें वे राजनीति का शिकार हुये और अपनी रियासत हार बैठे, परंतु उनकी हार के बाद कोई हिन्दू शासक उनकी कमी पूरी नहीं कर पाया। पृथ्वीराज को "राय पिथोरा" भी कहा जाता था। पृथ्वीराज चौहान बचपन से ही एक कुशल योध्दा थे। उन्होने युध्द के अनेक गुण सीखे थे। उन्होनेें अपने बाल्यकाल से ही शब्ध्भेदी बाण विद्या का अभ्यास किया था। 

पृथ्वीराज चौहान का जन्म
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पृथ्वीराज चव्हाण

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            धरती के महान शासक पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1149 में हुआ था। पृथ्वीराज के पिता अजमेर के महाराज सोमेश्र्वर और माता कपूरी देवी थी। पृथ्वीराज का जन्म उनके माता पिता के विवाह के 12 वर्षों के पश्चात हुआ था। इससे राज्य   में खलबली मच गया और राज्य मेें उनकी मृत्यु को लेकर जन्म से ही षड्यंत्र रचे जाने लगें, क्योंकि  महाराज सोमेश्वर के  12 वर्ष पश्चात भी  कोई पुत्र ना होने की वजह से  उनके शत्रुओं द्वारा  उनके राज्य पर अधिकार करने की लालच  उत्पन्न हो चुकी थी । ऐसे में जब  पृथ्वीराज जी का जन्म हुआ  तो सब लोग  हैरान और परेशान हो गए परंतु वे बचते चले गए। मात्र 11 वर्ष की आयु में पृथ्वीराज के सिर से पिता का साया उठ गया था, उसके बाद भी उन्होनें अपने दायित्व अच्छी तरह से निभाए और लगातार अन्य राजाओं को पराजित कर अपने राज्य का विस्तार करते गए। पृथ्वीराज के बचपन के मित्र चंदबरदाई उनके लिए किसी भाई से कम नहीं थे। चंदबरदाई तोमर वंश के शासक अनंगपाल की बेटी के पुत्र थे। चंदबरदाई बाद में दिल्ली के शासक हुये और उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के सहयोग से पिथोरगढ़ का निर्माण किया, जो आज भी दिल्ली मेें पुराने किले नाम से विद्यमान है। 

पृथ्वीराज चौहान का इतिहास

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         अजमेर की महारानी कपुरीदेवी अपने पिता अंगपाल की एकलौती संतान थी। इसलिए उनके सामने सबसे बड़ी समस्या यह थी, कि उनकी मृत्यु के पश्चात उनका शासन कौन संभालेगा। उन्होंने अपनी पुत्री और दामाद के सामने अपने दोहित्र को अपना उत्तराअधिकारी बनाने की इच्छा प्रकट की और दोनों की सहमति के पश्चात युवराज पृथ्वीराज को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। यह बात सन् 1166 की हैै, जब महाराज अंगपाल की मृत्यु के पश्चात पृथ्वीराज चौहान की दिल्ली की गद्दी पर राज्याभिषेक किया गया और उन्हेें दिल्ली का कार्यभार सौपा गया।

पृथ्वीराज चौहान का विवाह
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संयोगीता का पृथ्वीराज के मूर्ति को वर चुनना

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              पृथ्वीराज चौहान और उनकी रानी संयोगिता का प्रेम आज भी राजस्थान के इतिहास में अविस्मरणीय है। दोनों ही एक दूसरे से बिना मिले केवल चित्र देखकर एक दूसरे के प्यार में मोहित हो चुके थे। वहीं संयोगिता के पिता जयचंद्र पृथ्वीराज के साथ ईर्ष्या भाव रखते थे। तो अपनी पुत्री का पृथ्वीराज चौहान से विवाह का विषय तो दूर दूर तक सोचने योग्य बात नहीं थी। जयचंद्र केवल पृथ्वीराज को नीचा दिखाने का मौका ढूंढते रहते थे। यह मौका उन्हेें अपनी पुत्री के स्व्यंवर में मिला। राजा जयचंद्र ने अपनी पुत्री संयोगिता का स्व्यंवर आयोजित किया| इसके लिए उन्होनेें पूरे देश से राजाओं को आमंत्रित किया, केवल पृथ्वीराज चौहान को छोड़कर। पृथ्वीराज को नीचा दिखाने के उद्देश्य से उन्होनें स्व्यंवर में पृथ्वीराज की मूर्ति द्वारपाल के स्थान पर रखी।

Prithviraj Chouhan
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पृथ्वीराज का संयोगिता का हरण करना

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                परंतु इसी स्व्यंवर मे जयचंद को अपनी ही पुत्री  से  तथा अपने ही सभा में  लज्जित होना पड़ा। क्योंकि  संयोगिता  पृथ्वीराज चौहान से  मन ही मन  बहुत प्रेम करती । उन्हें अपना जीवनसाथी मान चुकी थी।  इसलिए  जब स्वयंवर में  उन्होंने पृथ्वीराज चौहान को  नहीं देखा तो वह माला लेकर द्वार की तरफ गई जहां पर पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति रखी हुई थी द्वारपाल के रूप में और उन्होंने उन्हें माला पहनाकर अपना जीवन साथी चुना। जब यह खबर पृथ्वीराराज चौहान को मिली। पृथ्वीराज तो पहले से ही जानते थे कि संजोगिता मुझसे विवाह करना चाहती हैं परंतु जब उन्होंने इस घटना को सुना तो वे संयोगिता को अपनाने के लिए संयोगिता की इच्छा से उनका अपहरण भरी महफिल में किया और उन्हें भगाकर अपनी रियासत ले आए और दिल्ली आकर दोनों का पूरी विधि से विवाह संपन्न हुआ। इसके बाद राजा जयचंद और पृथ्वीराज के बीच दुश्मनी और भी बढ़ गयी। 

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संयोगीता हरण के दौरान शत्रुओं से युद्ध करते हुए

History Of Prithviraj Chouhan
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         पृथ्वीराज की सेना बहुत ही विशालकाय थी, जिसमें 3 लाख सैनिक और 300 हाथी थे। कहा जाता है कि उनकी सेना बहुत ही अच्छी तरह से संगठित थी, इसी कारण इस सेना के बूते उन्होनें कई युध्द जीते और अपने राज्य का विस्तार करते चले गए। परंतु अंत में कुशल घुड़सवारों की कमी और जयचंद्र की गद्दारी तथा अन्य राजपूत राजाओं के सहयोग के अभाव में वे मुहम्मद गोरी से द्वितीय युध्द हार गए। 

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तराई के युध्द क्षेत्र में

पृथ्वीराज और गोरी का प्रथम युध्द :
अपने राज्य के विस्तार को लेकर पृथ्वीराज चौहान हमेशा सजग रहते थे और इस बार अपने विस्तार के लिए उन्होंने पंजाब को चुना था। इस समय संपूर्ण पंजाब पर मुहम्मद शाबुद्दीन गोरी का शासन था। वह पंजाब के भटिंडा से अपने राज्य पर शासन करता था। गोरी से युध्द किए बिना पंजाब पर शासन नामुमकिन था। तो इसी उद्देश्य से पृथ्वीराज ने अपनी विशाल सेना को लेकर गोरी पर आक्रमण कर दिया। अपने इस युध्द में पृथ्वीराज ने सर्वप्रथम हांसी, सरस्वती और सरहिंद पर अपना अधिकार किया। परंतु इसी बीच अनहिलवाड़ा में विद्रोह हुआ और पृथ्वीराज को वहां जाना पड़ा और उनकी सेना ने अपनी कमांड खो दी और सरहिंद का किला फिर खो दिया। अब जब पृथ्वीराज अनहिलवाड़ा से वापस लौटे, उन्होनें दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिये। युध्द में केवल वही सैनिक बचे, जो मैदान से भाग खड़े हुये। इस युध्द में मुहम्मद गोरी भी अधमरा हो गया। परंतु उनके एक सैनिक ने उनकी हालत का अंदाजा लगाते हुये, उन्हें घोड़े पर डालकर अपने महल ले गया और उनका उपचार कराया। इस तरह यह युध्द परिणामहीन रहा। यह युध्द सरहिंद किले के पास तराइन नामक स्थान पर हुआ। इसलिए इसे तराइन का युध्द भी कहते हैं। इस युध्द में पृथ्वीराज ने लगभग 7 करोड़ रूपये की संपदा अर्जित की, जिसे उसने अपने सैनिकों में बांट दिया।

Prithviraj Chouhan
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युध्द क्षेत्र तराईन

गोरी और पृथ्वीराज चौहान का दूसरा विश्व युध्द
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         अपनी पुत्री संयोगिता के अपहरण के बाद राजा जयचंद्र के मन में पृथ्वीराज के लिए कटुता बड़ी भारी थी। उसने पृथ्वीराज को अपना दुश्मन बना लिया। वो पृथ्वीराज के खिलाफ अन्य राजपूत राजाओं को भी भड़काने लगा। जब उसे मुहम्मद गोरी और पृथ्वीराज के युध्द के बारे में पता चला, तो वह पृथ्वीराज के खिलाफ गोरी के साथ खड़ा हो गया| दोनों ने मिलकर 2 साल बाद सन 1192 में पुनः पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण किया। यह युध्द भी तराई के मैदान में हुआ। इस वजह से उनके सबसे घनिष्ठ मित्र चंदबरदाई ने अन्य राजपूत राजाओं से मदत मांगी, तो संयोगिता के स्व्यंबर में हुई घटना के कारण उन्होनें ने भी उनकी मदत करने से इंकार कर दिया। ऐसे में पृथ्वीराज चौहान अकेले पड़ गए और उन्होंने अपने 3 लाख सैनिकों के द्वारा गोरी की सेना का सामना किया। क्यूँकि गोरी की सेना में अच्छे घुड़सवार थे। उन्होनें पृथ्वीराज की सेना को चारो ओर से घेर लिया| ऐसे में वे न आगे पढ़ पाये न ही पीछे हट पाये, और जयचंद्र के गद्दार सैनिकों ने राजपूत सैनिकों का ही संहार किया और पृथ्वीराज की हार हुई। (कहीं-कहीं ऐसा भी कहा जाता है कि मोहम्मद गोरी का  युद्ध में  गायों का  उपयोग किया गया था । इसके वजह से  पृथ्वीराज चौहान  अच्छे से युद्ध ना कर पाए । क्योंकि  हिंदू धर्म  गायों का अति सम्मान करता है।  इसलिए  शत्रुओं ने इसका भरपूर लाभ उठाया  और  गायों को सामने  लाकर  छल से युद्ध को जीत लिया) युध्द के बाद पृथ्वीराज और उनके मित्र चंदबरदाई को बंदी बना लिया गया। राजा जयचंद्र को भी उसकी गद्दारी का परिणाम मिला और उसे भी मार डाला गया। अब पूरे पंजाब, दिल्ली, अजमेर और कन्नोज में गोरी का शासन था। इसके बाद में कोई राजपूत शासक भारत में अपना राज्य लाकर अपनी वीरता साबित नहीं कर पाया। 

पृथ्वीराज चौहान
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पृथ्वीराज चौहान की मृत्यु (Prithviraj Chauhan death):
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पृथ्वीराज रासो
मुहम्मद गोरी से युध्द के पश्चात पृथ्वीराज को बंदी बनाकर उनके राज्य ले जाया गया। वहा उन्हें बहुत यातनाएं दी गयीं। नमन हो इस वीर सपूत की जिसने अपनी हर पीड़ा को अपने शान से कम समझा। पृथ्वीराज की आँखों को लोहे के गर्म सरियों द्वारा जलाया गया। इससे वे अपनी आँखों की रोशनी खो बैठे। जब पृथ्वीराज से उनकी मृत्यु के पहले आखरी इच्छा पूछी गयी, तो उन्होंने भरी सभा में अपने मित्र चंदबरदाई के शब्दों पर शब्दभेदी बाण का उपयोग करने की इच्छा प्रकट की। इसी प्रकार चंदबरदाई द्वारा बोले गए इस दोहे का प्रयोग करते हुये-
"चार हाथ चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण,
ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान।"
उन्होनें मुहम्मद गोरी की हत्या भरी सभा में कर दी। इसके पश्चात अपनी दुर्गति से बचने के लिए दोनों ने एक दूसरे की जीवन लीला भी समाप्त कर दी। जब संयोगिता ने यह खबर सुनी, तो उसने भी अपना जीवन समाप्त कर लिया। इस तरह इस वीर की कहानी का अंत होता है। मगर इनके बारे में जितना भी लिखा जाए उतना ही कम है। क्योंकि इनके ऊपर एक बहुत ही भारी किताब बन चुकी है। जिसका नाम "पृथ्वीराजरासो" है। अगर आपको इस किताब को प्राप्त करना है, तो हमारे वेबसाइट पर डाउनलोड बटन पर क्लिक करके आप वहां से डायरेक्ट डाउनलोड कर सकते हैं।इनके संपूर्ण जीवन के बारे में और भी विस्तार से जानकारी प्राप्त हो सकती है। दोस्तों आज का पोस्ट आपको कैसा लगा अगर आपको पोस्ट पसंद आया हो तो हमें कमेंट जरूर करें, साथ ही साथ अपने ईमेल द्वारा हमारे ब्लॉग को सब्सक्राइब कर लें, जिससे कि हमारे आगे आने वाले पोस्ट की जानकारी आपको तुरंत मिले। मैं हमेशा से यही कोशिश करता हूं कि आप लोगों को एक रोचक और अच्छी कहानियां जोकि पुराण, इतिहास से या फिर किसी ग्रंथ से उपलब्ध कराता रहूँ। तो दोस्तों बस आज के लिए इतना ही मिलते हैं हम अपने अगले पोस्ट में तब तक के लिए धन्यवाद!

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