कहानी- स्कूल, सयाली और वह बच्चा
एक बच्चे की कहानी, जिसने टीचर सयाली की मदद न लेकर उसे हतप्रभ कर लिया।
सयाली को बचपन से ही टीचर बनने का बहुत शौक था। वह शहर के मशहूर स्कूल में प्राइमरी विभाग की इंचार्ज थी।स्कूल में ढ़ेर सारे नए बच्चो ने दाखिला लिया था। उस दिन एक घंटे पहले वह स्कूल पहुच गई थी। उसका स्टाफ रूम दूसरी मंजिल पर था।
दूसरी मंजिल पर वह सीढ़ियों के पास खड़ी होकर फोन पर बात करने लगी। फोन पर बात करते-करते उसने देखा की एक बच्चा मुख्यद्वार से अंदर की तरफ आ रहा है। उसकी चाल कुछ अजीब थी। पर गौर से देखा, तो पाया कि उसके पैरों के दोनों तरफ लोहे की रॉड लगी हुई है।
उसने सोचा, शायद इसके दोनों पैर खराब होंगे। वह बच्चा सीढियो की तरफ आ रहा था। उसे लगा की वह किसी भी क्षण गिर सकता है। देखते-देखते बच्चा सीढियां चढ़ने लगा। सयाली तुरंत फ़ोन बंद करके उसकी मदद के लिए सीढियो से पहली मंजिल की तरफ दौड़ी। जब वह हांफते हुए नीचे पहुची, तो बच्चा रेलिंग पकड़कर ऊपर चढ़ रहा था।
सयाली ने उसका हाथ पकड़ा और कहा, चलो, मैं तुम्हे ले चलती हूं। बच्चा दो मिनट के लिए खड़ा हो गया और सयाली को देखने लगा। सयाली बोली, अरे डरो मत, मैं तुम्हारी टीचर हूं। बच्चा वापस सीढ़ी चढ़ते-चढ़ते बोला, लेकिन मेने आपसे मदद नहीं मांगी मैम। सयाली मुस्कुराई और बोली, अच्छा, तो ये बात है। चलो हम दोस्त बन जाते हैं। फिर तो मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं न। बच्चा बोला, मेरे पापा कहते हैं, जिनकी जिंदगी में सबसे ज्यादा चुनोतियाँ होती है, वे सबसे आगे तक जाते हैं।
इसलिए हमें अपनी चुनोतियो का सामना खुद करना चाहिए, बिना किसी की मदद के। इससे आत्मविश्वास भी बढ़ता है और सोच भी दृढ़ होती है। सयाली बोली, मुझे सचमुच आज तुम्हे बहुत कुछ सिखने को मिला है मेरे प्यारे दोस्त।
चुनोतियो से घबराना नहीं चाहिए। उनका डटकर सामना करना चाहिए।
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Nice story