दीपावली-मिलन और जलेबी-भाजन

in #india5 years ago (edited)

दोस्त्तों!

एक बड़ी ही प्रसिद्ध व्यंग्यात्मक उक्ति है जो कई बार, टेढ़े और उलझे हुए व्यक्तित्व के धनी या फिर घुमा-फिरा कर बातों को लपेट कर पेश करने वाले व्यक्तियों पर कसी जाती है:

ये जलेबी की तरह सीधा है!

बस, इसी उक्ति से मुझे जलेबी की बनावट में ही खोट नज़र आने लगी और जलेबी मेरी पसंदीदा मिठाइयों की सूची से बाहर हो गई। मुझे ऐसा प्रतीत होने लगा था कि मैं टेढ़ी और उलझी हुई मिठाई का भक्षण कर रहा हूँ।

लेकिन आज जलेबी-सी सीधी-सादी मिठाई मुझे कोई और नहीं लगी।
कितनी रसीली, मीठी, स्वादिष्ट और सुगम!
आओ, उसका स्वाद आपसे भी साझा करूं।

इन दिनों दिवाली के त्यौहार का समां चल रहा है। धनतेरस से लेकर भैया-दूज तक, दिवाली के पाँच दिन कुछ अधिक ही रौनक रहती है। इसके अलावा, सभी मित्रों, रिश्तेदारों, परिचितों, क्लब-संगठनों आदि के मिलन हेतु समारोह भी आयोजित किये जाते रहते हैं।

इसी उपलक्ष पर मेरे चिर-परिचित मित्र श्री चेतन पाडलिया @chetanpadliya ने आज कुछ मित्रों को अपने हाथों से बनाई गई ताजा और निरवद्य जलेबी खिलाने के लिए निमंत्रित किया। सौभाग्य से उन मित्रों की सूची में मेरा भी नाम था। बस, अपने तो वारे-न्यारे हो गए!

मेरे मित्र चेतन जी पाक कला में माहिर हैं। और वे कुछ बनाते हैं तो बड़े ही शौक, प्रेम और भाव से। मिठाई में मिठास तो उनके प्रेम से ही आ जाती है। चाहे वे किसी व्यंजन को पहली बार ही बना रहे हों, वो हमेशा स्वादिष्ट पकवान का रूप ले लेता है। अतः मैं प्रातः उठते ही दौड़ लगा कर उनके घर पहुँच गया।

देखा तो पाया कि मेरे एक अन्य मित्र श्री निमित्त काबरा जी वहाँ मुझसे पहले ही विराजमान थे। लेकिन राहत की बात यह थी कि मुझे अधिक विलम्ब नहीं हुआ था और जलेबियाँ अब तक परोसी नहीं गई थी। मेरे पहुँचते ही गरमा-गर्म जलेबियों से मेज़ सज गई।


बाएं से दायें: निमित्त, चेतन और मैं - आज जलेबी ही हमारी मंजिल थी जिसे हमने हासिल कर लिया!
फोटो स्रोत: @chetanpadliya का ब्लॉग

जलेबियाँ भी क्या खूब लग रही थी। मानो किसी कलाकार ने सहेज कर घोल की एक-एक बूँद तेल में टपका कर उसे आकार दिया हो। इस पर चेतन जी का इन्हें खाने के लिए प्रेम-भरा आग्रह! आह! इससे बेहतर सवेरे का आगाज भी हो सकता है?

मैंने एक खाई, लेकिन वो खत्म भी न हुई होगी कि दूसरी और ले ली। और उसके बाद भी लेता ही चला गया। मैं तो भूल ही गया कि मुझे सिर्फ चखना है या नाश्ता करना है या फिर पूरा भोजन!

साथ ही चेतन जी बता रहे थे कि कैसे वे 36 घंटों तक मैदे के घोल को खमीर उठने के लिए छोड़ देते हैं, जिससे जलेबियों में प्राकृतिक खट्टापन आ जाता है। और राईस-ब्रान तेल के चयन से वे तेल के स्वाद और सुगंध को भी गौण कर देते हैं। और भी न जाने क्या-क्या!

लेकिन मेरा ध्यान तो सिर्फ खाने पर था। मैं तो सोच रहा था कि हरेक जलेबी इतनी शानदार और कुरकुरी कैसे बनी।

खैर, अंततः थाल खाली हो गया। मेरे मित्र निमित्त जी भी विदा हो लिए। लेकिन मैं फिर भी और की आस में आसन जमाये बैठा रहा। भगवान ने मेरी सुनी। श्री अरविन्द जी @mehta का सपत्नी आगमन हुआ। फिर कढाई चढ़ाई गई और फिर थाल भरा गया।

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@mehta जी को खाने में आनंद, तो @chetanpadliya जी को खिलाने में आनंद की अनुभूति

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@mehta जी की जीवनसंगिनी श्रीमती सविता को जलेबी खिलाते हर्षित होते @chetanpadliya जी

गरमा-गर्म जलेबी की महफ़िल फिर सजी और मैंने पूरा लुत्फ़ उठाया। कसम से, इतनी जलेबियाँ तो मैंने आजीवन नहीं खाई।

आज मुझे पता चला कि जलेबी बनाना इतना जटिल है नहीं, जितना कि उसके आकार को देख कर लगता है। केवल मैदे-पानी के घोल को तेल में तल कर, चाशनी में डूबोने मात्र से, ये तैयार हो जाती है।

कितनी सीधी-सादी निरवद्य विधि है! पता नहीं, जलेबी क्यों बदनाम होती है अपने रूप-आकार के कारण!

  • वैसे आपको कौन-सी मिठाई अधिक पसंद है?
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Thank you for being here for me, so I can be here for you.
Enjoy your day and stay creative!
Botty loves you. <3

वाह! क्या खूब लिखा है आपने जलेबी के बारे में , बनाने, खाने और खिलने वाले के बारे में. जैसी जलेबी की मिठास वैसी ही आपकी लेखनी में भी!

सब आपकी मेजबानी से प्राप्त उर्जा है ...बहुत बहुत धन्यवाद आपका!

Happy Diwali sir
And happy bhaidooj

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On this Diwali 🙏

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जलेबी पर आपकी पोस्ट बहुत ही अच्छी है. पढ़कर आनन्द आ गया.

पढ़ने और तारीफ़ करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया!

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