Groom's eligibility part 2

in #india6 years ago

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Mandatory Feature

Just as femininity is an essential quality of a new bride
It is believed that the groom is a mandatory groom
Is the specialty. Married young man from marriage bondage
There are many instructions for free stay in the scriptures. Impotent
For the marriage is barren. The man with the mercenary
Referring to the characteristics, it has been said:
Women have been created for children. Woman area
That is, the man is seedman. To the field
needed. Not suitable for seedless male region (female)
It is clear that the Parashar Home formula is
Examination of the characteristics of the organism through the symptoms
But the man who is male and female
The officer is. Though the man is more likely than brahmacharya
Was the feeling of exclusive prequel or virginity
A girl was required or expected, she has never been to the boy.
Likewise a Hindu should have died of his wife
But on being unwell or weak from his body,
The man had the right to marry the second marriage in the moral sense of the wife (Yagnavalkya's memory). Yagnavalkya '
It is said that the second marriage for the man is a necessary duty due to religious reasons, after performing the cremation of his deceased wife in the worship of the house fire, without any kind of delay in the worship of the house fire, duly make a second marriage to the man. . And today the marriage that is going to happen soon is not seen in the society. Therefore, if necessary after sufficient time, it becomes a dujya groom. There are customs in the country to bring relations into many castes.
Recognize more than one marriage in Hindu society
Not found, except for some exceptions
Even the religious belief of the daughter of Kanyadan
Has been mainly. Marriage to the Kumar Man here
Widow
It was considered to be superior and virtuous. It has also been said:
A man who has so far (dead)
The wife has not done the action of the bride, because of the daughter-in-law
Eternal fruit is obtained. Second time to get married
Marrying a man with only Kanyadan
Half of the fruits of virtue are attained, and many
Get married, marry a man like this
It is totally sterile. Kanyadan to such a person
Do not, do not have the importance of attaining virtue
Keeps Indian families hurt by western civilization
Many different concepts towards Kanyadan also
Have started to grow. Some have even begun to make it inappropriate.
In the rest of the next ...

अनिवार्य विशेषता

जिस तरह स्त्रीत्व नव दुल्हन का एक अनिवार्य गुण
माना जाता रहा उसी तरह पौरुष दूल्हे की एक अनिवार्य
विशेषता है। पौरुषहीन युवक को विवाह बंधन से
मुक्त रहने के कई निर्देश शास्त्रों में मिलते हैं । नपुंसकों
के लिए विवाह वर्जनीय है। पौरुष वाले युवक की
विशेषताओं का जिक्र करते हुए कहा गया है:
स्त्रियां सन्तान के लिए बनायी गयी हैं। स्त्री क्षेत्र
है, पुरुष बीजवान है। अतक्षेत्र बीजवान को देना
चाहिए। बीज रहित पुरुष क्षेत्र (स्त्री) के योग्य नहीं
पाराशर गृह सूत्र का तो स्पष्ट निर्देश है कि अपने
अवयवों के लक्षणों के द्वारा पौरुष की परीक्षा करने
पर जो पुरुष पौरुष सम्पन्न हो वह कन्या प्राप्त करने का
अधिकारी है। यद्यपि आदमी से ब्रह्मचर्य की अपेक्षा तो
थी पर अनन्य पूर्वकल्व या कौमार्य की जो भावना
एक लड़की के लिए आवश्यक या अपेक्षित थी, वह लड़के के लिए कभी भी नहीं रही।
इसी तरह एक हिन्दू अपनी पत्नी की मृत्यु होने
पर उसके शरीर से अस्वस्थ या अशक्त होने पर,
नैतिक दृष्टि से पत्नी के पतित होने पर (याज्ञवल्क्य स्मृति) में दूसरा विवाह करने की आदमी को छूट थी। याज्ञवल्क्य'
का कहना है कि पुरुष के लिए द्वितीय विवाह धार्मिक कारणों से आवश्यक कर्तव्य हो अग्नि होत्र से अपनी मृत पत्नी की दाह क्रिया कर गृह अग्नि की पूजा में बिना किसी प्रकार के विलम्ब के, पुरुष को विधिवत दूसरा विवाह कर लेना । । और आज कल जल्दी ही होने वाले विवाह को समाज में अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता। इसलिए पर्याप्त समय के बाद जरूरी हुआ तो वह दूजा दूल्हा बनता है। देहातों में कई जातियों में नाता कर लाने की प्रथा हैं।
हिन्दू समाज में एक से अधिक विवाह को मान्यता
नहीं मिली कुछ अपवादों को छोड़कर इसका कारण
भी कन्यादान के पुण्यार्जन की धार्मिक आस्था ही
मुख्यत: रही है। हमारे यहाँ कुमार पुरुष को विवाह
मण्डप में कन्यादान करना विधुर पुरुष अपेक्षा
अधिक श्रेष्ठ और पुण्यदायी माना जाता था। कहा भी गया है:
ऐसे पुरुष को जिसने अभी तक अपनी (मृत)
पत्नी की दाह क्रिया नहीं की है, कन्यादान करने से
अनन्त फल प्राप्त होता है। दूसरी बार विवाह करने
वाले पुरुष के साथ विवाह करने से केवल कन्यादान
पुण्य का आधा फल ही प्राप्त होता है, और जो अनेक
विवाह कर चुका हो, ऐसे पुरुष के साथ विवाह करना
पूर्णत: निष्फल ही होता है। ऐसे व्यक्ति को कन्यादान
करना, नहीं करना, पुण्य प्राप्ति की दृष्टि से महत्व नहीं
रखता। पश्चिमी सभ्यता से आहत भारतीय परिवारों
में भी कन्यादान के प्रति अनेक तरह की धारणाएँ
बनने लगी हैं। कुछ इसे अनुचित भी ठहराने लगे हैं।
शेष अगले भाग में...

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