Ghazal 40steemCreated with Sketch.

in #prameshtyagi7 years ago

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भाव महफिल में दिखाता हूँ अमीरों की तरह
छुप के ख़ैरात भी लेता हूँ फ़क़ीरों की तरह

दूर के ढोल नज़र आयें कहीं मुझको बस
उठ के आदाब में बजता हूँ मजीरों की तरह

नक्श पानी पे बनाता हूँ इसी हसरत में
कोई कह दे इन्हें पत्थर की लकीरों की तरह

रात दिन बस तिरी यादों के थपेड़े खाकर
क़ैद हूँ आज समन्दर में जज़ीरों की तरह

ढाई आखर का मुझे इल्म नहीं है फिर भी
चाहता हूँ कि पढ़ा जाउँ कबीरों की तरह

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