क्षत्रिय
प्रारंभिक ऋग्वेद वैदिक काल में मानव कबीलों में जीवन व्यतीत करता था। उस समय शासन व्यवस्था अपने प्रारंभिक अवस्था में थी। कबीले के लोग मिलकर अपने लिए एक मुखिया अथवा सरदार नियुक्त करते थे। मुखिया अथवा सरदार का मुख्य कर्तव्य तत्कालीन का कबीले के जन व पशुधन की रक्षा करना था। कबीले के सरदार को "राजन" कहा जाता था। उस समय समाज वर्ण व्यवस्था में विभाजित नही था।
उत्तर वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था प्रचलन में आयी, जिसमे चार वर्ण हुआ करते थे- 1~ब्राह्मण, 2 ~ क्षत्रिय, 3 ~ वैश्य और 4 ~ शूद्र।
ब्राह्मण वर्ग का कार्य समाज को शिक्षित करना। धार्मिक व वैदिक कर्मकाण्ड करवाना, क्षत्रिय वर्ग को शासन के योग्य शिक्षा देना व उन्हें अस्त्र शस्त्र का अभ्यास करवाना होता था। क्षत्रिय वर्ग का काम समाज में जन व धन को सुरक्षा प्रदान करना व सुशासन देना होता था। वैसे ही वैश्य वर्ग का कार्य व्यापार व कृषि उत्पादों द्वारा समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति के कार्य हुआ करता था। शुद्र वर्ग समाज में साफ सफाई करना व समाज को आवश्यक सेवाएं देना होता था।
वर्ण व्यवस्था में कोई भी जन्म से ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य व शुद्र नही होता था, प्रत्येक व्यक्ति को उसकी योग्यता के आधार पर कर्म करने की समाज इजाजत प्रदान करता था। तब तक मनुष्य काफी हद तक सामाजिक प्राणी बन चुका था व स्थायी आवास बनाकर समूहों में रहने लगा था।
हालांकि उत्तर वैदिक काल में क्षत्रिय शब्द का प्रयोग कम और राजन्य शब्द का प्रयोग अधिक मिलता हैं, जिसका शाब्दिक अर्थ शासन से जुड़ा हुआ माना गया हैं।
धर्मशास्त्र काल से पूर्व क्षत्रिय को वर्ण व्यवस्था में पहले स्थान प्राप्त था, कुछ गर्न्थो में इसका वर्णन मिलता हैं।
वैसे क्षत्रिय शब्द का पाली रूप क्खत्रिय हैं। ये शब्द सनातन धर्म में द्वितीय वर्ण जो शासन से जुड़ा हुआ हैं, से हैं। क्षेत्र का मूलतः अर्थ वीर्य अथवा परित्राण शक्ति हैं। अर्थात बीज से जुड़ाव हैं। किंतु बाद में ये शब्द एक वर्ण विशेष के लिए प्रयुक्त होने लगा, जो अन्य वर्णो की शस्त्रास्त्रों से परिरक्षण करता था।
पारम्परिक रूप से क्षत्रिय शब्द शासन व सैनिक वर्ग के लिए प्रयुक्त होता रहा हैं, जो समाज को सुरक्षा प्रदान करना अपना प्रमुख कर्तव्य मानते रहे हैं। युद्ध काल में समाज को सुरक्षा प्रदान करना तथा शांति काल मे सुशासन प्रदान करना क्षत्रियों का प्रमुख कर्तव्य रहा हैं।
क्षत्रिय शब्द की उत्पत्ति ही एक भावना से जुड़ी हुई हैं, अर्थात क्षत्रिय मतलब, जो दूसरों को क्षत होने से बचाये।
"क्षतात त्रायते इति क्षत्य" अर्थात क्षत आघात से त्राण देने वाला क्षत्रिय।
गीता में कहा गया हैं-
" शौर्य तेजोधृति दिक्ष्यम युद्धे चाप्यपलायनम।
दानमीश्वर भावश्च क्षत्रम कर्म स्वभावजम।।"
अर्थात शूरवीरता, तेज, धैर्य, युद्ध में चतुरता, युद्ध से न भागना, दान, सेवा, शास्त्रानुसार राज्यशासन, पुत्र के समान प्रजा का पालन - ये सब क्षत्रियों के परम कर्तव्य कहे गए हैं।
राजपूत शब्द जो क्षत्रिय शब्द का पर्याय माना जाता हैं, के सम्बंध में मतभेद हैं, किन्तु अधिकतर गर्न्थो में राजपुत्र शब्द का वर्णन मिलता हैं, जो बाद में अपभ्रंस स्वरूप राजपूत बन गया।
क्षत्रिय शब्द की शब्दो मे विवेचना सम्भव नही हैं, एक छोटा सा प्रयास किया हैं, इस पर आपकी प्रतिक्रिया सादर आमंत्रित हैं।
आपका ~ indianculture1
Posted using Partiko Android
bahut achha sir ji aisa hi karte rahiye lekin thoda dekh kar lagaiye bot me kyo loss karwa rahe ho aap.
स्वागत rehanji, धन्यवाद
आप बताओ, bot में नही जाए तो कैसे करे। इसके बारे में आपको ज्यादा ओर अच्छी जानकारी हो तो मेरा मार्गदर्शन कीजिये
Posted using Partiko Android
agar aap ko 10% se jyada ka ROI nahi mila to loss hoga. Fir lagaane ka koi faayda nahi hai.
नही लगाएं तो भी रैंकिंग नही बढ़ रही हैं। रैंकिंग बढ़ाने का दूसरा क्या उपाय हैं।
Posted using Partiko Android